महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-090
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अर्जुनेन दुःशासनपराजयः।। 1 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-90-1x |
तस्मिन्प्रभग्ने सैन्याग्रे वध्यमाने किरीटिना। केतु तत्र रणे वीराः प्रत्युदीयुर्धनञ्जयम्।। | 5-90-1a 5-90-1b |
आहोस्विच्छकटव्यूहं प्रविष्टा मोघनिश्चयाः।। द्रोणमाश्रित्य तिष्ठन्ति प्राकारमकुतोभयाः।। | 5-90-2a 5-90-2b |
सञ्जय उवाच। | 5-90-3x |
तथाऽर्जुनेन सम्भग्ने तस्मिंस्तव बलेऽनघ। हतवीरे हतोत्साहे पलायनकृतक्षणे।। | 5-90-3a 5-90-3b |
पाकशासनिनाऽभीक्ष्णं वध्यमाने शरोत्तमैः। न तत्र कश्चित्सङ्ग्रामे शशाकार्जुनमीक्षितुम्।। | 5-90-4a 5-90-4b |
ततस्तव सुतो राजन्दृष्ट्वा सैन्यं तथागतम्। दुःशासनो भृशं क्रुद्धो युद्धायार्जुनमभ्यगात्।। | 5-90-5a 5-90-5b |
सकाञ्चनविचित्रेण कवचेन समावृतः। जाम्बूनदशिरस्त्राणः शूरस्तीव्रपराक्रमः।। | 5-90-6a 5-90-6b |
नागानीकेन महता ग्रसन्निव महीमिमाम्। दुःशासनो महाराज सव्यसाचिनमावृणोत्।। | 5-90-7a 5-90-7b |
हादेन गजघण्टानां शङ्खानां निनदेन च। ज्याक्षेपनिनदैश्चैव विरावेण च दन्तिनाम्।। | 5-90-8a 5-90-8b |
भूर्दिशश्चान्तरिक्षं च शब्देनासीत्समावृतम्। `युवराजो बलश्लाघी पिङ्गलः प्रियदर्शनः'। स मुहूर्तं प्रतिभयो दारुणः समपद्यत।। | 5-90-9a 5-90-9b 5-90-9c |
तान्दृष्ट्वा पततस्तूर्णमङ्कुशैरभिचोदितान्। व्यालम्बहस्तान्संरब्धान्सपक्षानिव पर्वतान्।। | 5-90-10a 5-90-10b |
सिंहनादेन महता नरसिंहो धनञ्जयः। `तदाचलघनप्रख्यं पताकाशतसङ्कुलम्'। गजानीकममित्राणामभितो व्यधमच्छरैः।। | 5-90-11a 5-90-11b 5-90-11b |
महोर्मिणमिवोद्धूतं श्वसनेन महार्णवम्। किरीटी तद्गजानीकं प्राविशन्मकरो यथा।। | 5-90-12a 5-90-12b |
खमाश्रित इवादित्यः प्रतपन्स युगक्षये। ददृशे दिक्षु सर्वासु पार्थः परपुरञ्जनः।। | 5-90-13a 5-90-13b |
खुरशब्देन चाश्वानां नेमिघोषेण तेन च। तेन चोत्क्रुष्टशब्देन ज्यानिनादेन तेन च।। | 5-90-14a 5-90-14b |
नानावादित्रशब्देन पाञ्चजन्यस्वनेन च। देवदत्तस्य घोषेण गाण्डीवनिनदेन च। मन्दवेगा नरा नागा बभूवुस्ते विचेतसः।। | 5-90-15a 5-90-15b 5-90-15c |
शरैराशीविषस्पर्शैर्निर्भिन्नाः सव्यसाचिना। ते गजाः समसीदन्त मग्नाः पङ्कार्णवेष्विव।। | 5-90-16a 5-90-16b |
युगपच्च समाविष्टैः शरैर्गाण्डीवधन्वनः। अनेकशतसाहस्रैर्द्रुमा मधुकरैरिव। `पुङ्खावशिष्टैर्बहुभिः शोणितोत्पीडवाहिभिः'।। | 5-90-17a 5-90-17b 5-90-17c |
आरावं परमं कृत्वा वध्यमानाः किरीटिना। निपेतुरनिशं भूमौ छिन्नपक्षा इवाद्रयः।। | 5-90-18a 5-90-18b |
अपरे दन्तवेष्टेषु कुम्भेषु च कटेषु च। शरैः समर्पिता नागाः क्रौञ्चवद्व्यनदन्मुहुः।। | 5-90-19a 5-90-19b |
गजस्कन्धगतानां च पुरुषाणां किरीटिना। छिद्यन्ते चोत्तमाङ्गानि भुल्लैः सन्नतपर्वभिः।। | 5-90-20a 5-90-20b |
सकुण्डलानां पततां शिरसां धरणीतले। पद्मानामिव सङ्घातैः पार्थश्चक्रे निवेदनम्।। | 5-90-21a 5-90-21b |
यन्त्रबद्धा विकवचा व्रणार्ता रुधिरोक्षिताः। भ्रमत्सु युधि नागेषु मनुष्या विललम्बिरे।। | 5-90-22a 5-90-22b |
केचिदेकेन बाणेन सुयुक्तेन सुपत्रिणा। द्वौ त्रयश्च विनिर्भिन्ना निपेतुर्धरणीतले।। | 5-90-23a 5-90-23b |
अपरे मदसंरब्धा मातङ्गाः पर्वतोपमाः। सारोहा न्यपतन्भूमौ द्रुमवन्त इवाचलाः।। | 5-90-24a 5-90-24b |
मौर्वी ध्वजं धनुश्चैव युगमीषां तथैव च। रथिनां कुट्टयामास भल्लैः सन्नतपर्वभिः।। | 5-90-25a 5-90-25b |
न सन्दधन्न चाकर्षन्न विमुञ्चन्न चोद्वहन्। मण्डलेनैव धनुषा नृत्यन्पार्थः स्म दृश्यते।। | 5-90-26a 5-90-26b |
अतिविद्धाश्च नाराचैर्वमन्तो रुधिरं मुखैः। मुहूर्तान्न्यपतन्नन्ये वारणा वसुधातले।। | 5-90-27a 5-90-27b |
उत्थितान्यगणेयानि कबन्धानि समन्ततः। अदृश्यन्त महाराज तस्मिन्परमसङ्कुले।। | 5-90-28a 5-90-28b |
सचापाः साङ्गुलित्राणाः सखङ्गाः साङ्गदा रणे। अदृश्यन्त भुजाश्छिन्ना हेमाभरणभूषिताः।। | 5-90-29a 5-90-29b |
सूपस्करैरधिष्ठानैरीषादण्डकबन्धुरैः। चक्रैर्विमथितैरक्षैर्भग्नैश्च बहुधा युगैः।। | 5-90-30a 5-90-30b |
चर्मचापधरैश्चैव व्यवकीर्णैस्ततस्ततः। स्रग्भिराभरणैर्वस्त्रैः पतितैश्च महाध्वजैः।। | 5-90-31a 5-90-31b |
निहतैर्वारणैरश्वैः क्षत्रियैश्च निपातितैः। अदृश्यत मही तत्र दारुणप्रतिदर्शना।। | 5-90-32a 5-90-32b |
एवं दुःशासनबलं वध्यमानं किरीटिना। सम्प्राद्रवन्महाराज व्यथितं सहनायकम्।। | 5-90-33a 5-90-33b |
`एवं बले द्रुते याते राजपुत्रं महारथम्। विव्याध दशभिर्बाणैस्तिष्ठतिष्ठेति चाब्रवीत्।। | 5-90-34a 5-90-34b |
जीवितेन कथं गन्ता दुरुक्तं यावदद्य ते। तद्वाक्यसदृशं कर्म कुरु त्वं यदि मन्यसे।। | 5-90-35a 5-90-35b |
एवमुक्त्वा ततो राजा पार्थः पार्थिवमर्दनः। भृशं क्रुद्धो महाराज अविध्यत्तनयं तव'।। | 5-90-36a 5-90-36b |
ततो दुःशासनस्त्रस्तः सहानीकः शरार्दितः। द्रोणं त्रातारमाकाङ्क्षञ्शकटव्यूहमभ्यगात्।। | 5-90-37a 5-90-37b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि चतुर्दशदिवसयुद्धे नवतितमोऽध्यायः।। 90 ।। |
5-90-3 पलायने कृतः क्षणोऽवसरो येन।। 5-90-9 प्रतिभयो भयङ्करः। दारुणः क्रूरः।। 5-90-19 दन्तवेष्टेषु दन्तमूलेषु। कटेषु कटिषु।। 5-90-21 निवेदनमुपाहारम्।। 5-90-22 यन्त्रबद्धा यन्त्रैरालिखिताः।। 5-90-90 नवतितमोऽध्यायः।।
द्रोणपर्व-089 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-091 |