महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-004
दिखावट
← द्रोणपर्व-003 | महाभारतम् सप्तमपर्व महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-004 वेदव्यासः |
द्रोणपर्व-005 → |
|
भीष्मानुज्ञातस्य कर्णस्य युद्धायाऽऽगमनम्।। 4 ।।
सञ्जय उवाच। | 5-4-1x |
तस्य लालप्यमानस्य कुरुवृद्धः पितामहः। देशकालोचितं वाक्यमब्रवीत्प्रीतमानसः।। | 5-4-1a 5-4-1b |
भीष्म उवाच। | 5-4-2x |
समुद्र इव सिन्धूनां ज्योतिषामिव भास्करः। सत्यस्य च यथा सन्तो बीजानामिव चोर्वरा।। | 5-4-2a 5-4-2b |
पर्जन्य इव भूतानां प्रतिष्ठा सुहृदां भवान्। बान्धवास्त्वाऽनुजीवन्तु स्वादुवृक्षमिवाण्डजाः।। | 5-4-3a 5-4-3b |
मानहा भव शत्रूणां मित्राणां नन्दिवर्धनः। कौरवाणां भव गतिर्यथा विष्णुर्दिवौकसाम्।। | 5-4-4a 5-4-4b |
स्वबाहुबलवीर्येण धार्तराष्ट्रप्रियैषिणा। कर्ण राजपुरं गत्वा काम्भोजा निर्जितास्त्वया।। | 5-4-5a 5-4-5b |
गिरिव्रजगताश्चापि नग्नजित्प्रमुखा नृपाः। अम्बष्ठाश्च विदेहाश्च गान्धाराश्च जितास्त्वया।। | 5-4-6a 5-4-6b |
हिमवद्दुर्गनिलयाः किराता रणकर्कशाः। दुर्योधनस्य वशगास्त्वया कर्ण पुरा कृताः।। | 5-4-7a 5-4-7b |
उत्कला मेकलाः पौण्ड्राः कलिङ्गान्ध्राश्च संयुगे। निषादाश्च त्रिगर्ताश्च बाह्लीकाश्च जितास्त्वया | 5-4-8a 5-4-8b |
तत्रतत्र च संग्रामे दुर्योधनहितैषिणा। बहवश्च जिताः कर्ण त्वया वीरा महौजसा।। | 5-4-9a 5-4-9b |
यथा दुर्योधनस्यातः सज्ञातिकुलबान्धवः। तथा त्वमपि सर्वेषां कौरवाणां गतिर्भव।। | 5-4-10a 5-4-10b |
शिवेशनाभिवदामि त्वां गच्छ युध्यस्व शत्रुभिः। अनुशास्य कुरून्सर्वान्धत्स्व दुर्योधने जयम्।। | 5-4-11a 5-4-11b |
भवान्पौत्रसमोऽस्माकं यथा दुर्योधनस्तथा। तवापि धर्मतः सर्वे यथा तस्य वयं तथा।। | 5-4-12a 5-4-12b |
यौनात्सम्बन्धकाल्लोके विशिष्टं सङ्गतं सताम्। सद्भिः सङ्गममिच्छन्ति तस्मात्प्राज्ञाः परैरपि।। | 5-4-13a 5-4-13b |
स सत्यसङ्गरो भूत्वा ममेदमिति निश्चितः। कुरूणां पालय बलं यथा दुर्योधनस्तथा।। | 5-4-14a 5-4-14b |
`यथा च कुरवो युद्धे योधयन्ति स्म पाण्डवान्। तथा कर्ण त्वया कार्यं दुर्योधनहितैषिणा'।। | 5-4-15a 5-4-15b |
निशम्य वचनं तस्य चरणावभिवाद्य च। ययौ वैकर्तनः कर्णस्तूर्णमायोधनं प्रति।। | 5-4-16a 5-4-16b |
सोऽभिवीक्ष्य नरौघाणां स्थानमप्रतिमं महत्। व्यूढप्रहरणोरस्कं सैन्यं तत्समबृंहयत्।। | 5-4-17a 5-4-17b |
हृषिताः कुरवः सर्वे दुर्योधनपुरोगमाः। उपागतं महाबाहुं सर्वानीकपुरःसरम्।। | 5-4-18a 5-4-18b |
कर्णं दृष्ट्वा महात्मानं युद्धाय समुपस्थितम्। क्ष्वेडितास्फोटितरवैः सिंहनादरवैरपि। धनुःशब्दैश्च विविधैः कुरवः समपूजयन्।। | 5-4-19a 5-4-19b 5-4-19c |
5-4-3 अर्थपतिः प्रधानस्वामी।।
द्रोणपर्व-003 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-005 |