महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-065
दिखावट
← द्रोणपर्व-064 | महाभारतम् सप्तमपर्व महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-065 वेदव्यासः |
द्रोणपर्व-066 → |
|
नारदेन सृञ्जयम्प्रति शशिबिन्दुयशोनुवर्णनम्।। 1 ।।
नारद उवाच। | 5-65-1x |
शशिबिन्दुं च राजानं मृतं सृञ्जय शुश्रुम। य ईजे विविधैर्यज्ञैः श्रीमान्सत्यपराक्रमः।। | 5-65-1a 5-65-1b |
तस्य भार्यासहस्राणां शतमासीन्महात्मनः। एकैकस्यां च भार्यायां सहस्रं तनयाभवन्।। | 5-65-2a 5-65-2b |
ते कुमाराः पराक्रान्ताः सर्वे नियुतयाजिनः। राजानः क्रतुभिर्मुख्यैरीजाना वेदपारगाः।। | 5-65-3a 5-65-3b |
हिरण्यकवचाः सर्वे सर्वे चोत्तमधन्विनः। सर्वेऽश्वमेधैरीजानाः कुमाराः शाशिबिन्दवाः।। | 5-65-4a 5-65-4b |
तानश्वमेधे राजेन्द्रो ब्राह्मणेभ्योददत्पिता। शतंशतं रथगजा एकैकं पृष्ठतोऽन्वयुः।। | 5-65-5a 5-65-5b |
राजपुत्रं तदा कन्यास्तपनीयस्वलङ्कृताः। कन्याङ्कन्यां शतं नागा नागेनागे शतं रथाः।। | 5-65-6a 5-65-6b |
रथेरथे शतं चाश्वा बलिनो हेममालिनः। अश्वेअश्वे गोसहस्रं गवां पञ्चाशदाविकाः।। | 5-65-7a 5-65-7b |
एतद्धनमपर्याप्तमश्वमेधे महामस्वे। शशिबिन्दुर्महाभागो ब्राह्मणेभ्यो ह्यमन्यत।। | 5-65-8a 5-65-8b |
वार्क्षाश्च यूपा यावन्त अश्वमेधे महामखे। ते तथैव पुनश्चान्ये तावन्तः काञ्चनाभवन्।। | 5-65-9a 5-65-9b |
भक्ष्यान्नपाननिचयाः पर्वताः क्रोशमुच्छ्रिताः। तस्याश्वमेधे निर्वृत्ते राज्ञः शिष्टास्त्रयोदश।। | 5-65-10a 5-65-10b |
तुष्टपुष्टजनाकीर्णां शान्तविघ्नामनामयाम्। | 5-65-11a |
शशिबिन्दुरिमां भूमिं चिरं भुक्त्वा दिवं गतः।। | 5-65-11a |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरस्तुभ्यं मा पुत्रमनुतप्यथाः। अयज्वानमदक्षिण्यमभि श्वैत्येत्युदाहरत्।। | 5-65-12a 5-65-12b 5-65-12c |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि अभिमन्युवधपर्वणि षोडशराजकीये पञ्चषष्टितमोऽध्यायः।। 65 ।। |
5-65- त्रयोदशास्त्र निचयाः शिष्टाः।। 5-65- पञ्चषष्टितमोऽध्यायः।। 65 ।।
द्रोणपर्व-064 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-066 |