महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-135
दिखावट
← द्रोणपर्व-134 | महाभारतम् सप्तमपर्व महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-135 वेदव्यासः |
द्रोणपर्व-136 → |
|
भीमेन दुर्मर्षणादिदुर्योधनानुजानां पञ्चानां हननम्।। 1 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-135-1x |
दैवमेव परं मन्ये धिक्पौरुषमनर्थकम्। यत्राधिरथिरायत्तौ नातरत्पाण्डवं रणे।। | 5-135-1a 5-135-1b |
कर्णः पार्थान्सगोविन्दाञ्जेतुमुत्सहते रणे। न च कर्णसमं लोके पश्यामि कञ्चन। इति दुर्योधनस्याहमश्रौषं जल्पतो मुहुः।। | 5-135-2a 5-135-2b 5-135-2c |
कर्णो हि बलवाञ्छूरो दृढधन्वा जितक्लमः। इति मामब्रवीत्सूत मन्दो दुर्योधनः पुरा।। | 5-135-3a 5-135-3b |
वसुषेणसहायं मां नालं देवाऽपि संयुगे। किं नु पाण्डुसुता राजन्गतसत्वा विचेतसः।। | 5-135-4a 5-135-4b |
तत्र तं निर्जितं दृष्ट्वा भुजङ्गमिव निर्विषम्। युद्धात्कर्णमपक्रान्तं किंस्विद्दुर्योधनोऽब्रवीत्।। | 5-135-5a 5-135-5b |
अहो दुर्मुखमेवैकं युद्धानामविशारदम्। प्रावेशयद्धुतवहं पतङ्गमिव मोहितः।। | 5-135-6a 5-135-6b |
अश्वत्थामा मद्रराजः कृपः कर्णश्च सङ्गताः। न शक्त्याः प्रमुखे स्थातुं नूनं भीमस्य सञ्जय।। | 5-135-7a 5-135-7b |
तेऽपि चास्य महाघोरं बलं नागायुतोपमम्। जानन्तो व्यवसायं च क्रूरं मारुततेजसः।। | 5-135-8a 5-135-8b |
किमर्थं क्रूरकर्माणं यमकालान्तकोपमम्। बलसंरम्भवीर्यज्ञाः कोपयिष्यन्ति संयुगे।। | 5-135-9a 5-135-9b |
कर्णस्त्वेको महाबाहुः स्वबाहुबलदर्पितम्। भीमसेनमनादृत्य रणेऽयुध्यत सूतजः।। | 5-135-10a 5-135-10b |
योऽजयत्समरे कर्णं पुरन्दर इवासुरम्। न स पाण्डुसुतो जेतुं शक्यः केनचिदाहवे।। | 5-135-11a 5-135-11b |
द्रोणं यः सम्प्रमथ्यैकः प्रविष्टो मम वाहिनीम्। भीमो धनञ्जयान्वेषी कस्तमार्च्छेज्जिजीविषु।। | 5-135-12a 5-135-12b |
को हि सञ्जय भीमस्य स्थातुमुत्सहतेऽग्रतः। उद्यताशनिहस्तस्य महेन्द्रस्येव दानवः।। | 5-135-13a 5-135-13b |
प्रेतराजपुरं प्राप्य निवर्तेतापि मानवः। न भीमसेनं सम्प्राप्य निवर्तेत कदाचन।। | 5-135-14a 5-135-14b |
पतङ्गा इव वह्निं ते प्राविशन्नल्पचेतसः। ये भीमसेनं सङ्क्रुद्धमन्वधावन्विमोहिताः।। | 5-135-15a 5-135-15b |
यत्तत्सभायां भीमेन मम पुत्रवधाश्रयम्। उक्तं संरम्भिणोग्रेण कुरूणां शृण्वतां तदा।। | 5-135-16a 5-135-16b |
तन्नूनमभिसञ्चिन्त्य दृष्ट्वा कर्णं च निर्जितम्। दुःशासनः सह भ्रात्रा भयाद्भीमादुपारमत्।। | 5-135-17a 5-135-17b |
यश्च सञ्जय दुर्बुद्धिरब्रवीत्समितौ मुहुः। कर्णो दुःशासनोऽहं च जेष्यामो युधि पाण्डवान्।। | 5-135-18a 5-135-18b |
स नूनं विरथं दृष्ट्वा कर्णं भीमेन निर्जितम्। प्रत्याख्यानाच्च कृष्णस्य भृशं तप्यति पुत्रकः।। | 5-135-19a 5-135-19b |
दृष्ट्वा भ्रातॄन्हतान्सङ्ख्ये भीमसेनेन दंशितान्। आत्मापराधात्सम्मूढो नूनं तप्यति पुत्रकः।। | 5-135-20a 5-135-20b |
को हि जीवितमन्विच्छन्प्रतीपं पाण्डवं व्रजेत्। भीमं भीमायुधं क्रुद्धं साक्षात्कालमिव स्थितम्।। | 5-135-21a 5-135-21b |
बडबामुखमध्यस्थो मुच्येतापि हि मानवः। न भीममुखसम्प्राप्तो मुच्येदिति मतिर्मम।। | 5-135-22a 5-135-22b |
न पार्था न च पञ्चाला न च केशवसात्यकी। जानते युधि संरब्धा जीवितं परिरक्षितुम्।। | 5-135-23a 5-135-23b |
अहो मम सुतानां हि विपन्नं सूत जीवितम्।। | 5-135-24a |
सञ्जय उवाच। | 5-135-25x |
यस्त्वं शोचसि कौरव्य वर्तमाने महाभये। त्वमस्य जगतो मूलं विनाशस्य न संशयः।। | 5-135-25a 5-135-25b |
स्वयं वैरं महत्कृत्वा पुत्राणां वचने स्थितः। उच्यमानो न गृह्णीषे मर्त्यः पथ्यमिवौषधम्।। | 5-135-26a 5-135-26b |
स्वयं पीत्वा महाराज कालकूटं सुदुर्जरम्। तस्येदानीं फलं कृत्स्नमवाप्नुहि नरोत्तम।। | 5-135-27a 5-135-27b |
यत्तु कुत्सयसे योधान्युध्यमानान्महाबलान्। तत्र ते वर्तयिष्यामि यथा युद्धमवर्तत।। | 5-135-28a 5-135-28b |
दृष्ट्वा कर्णं तु पुत्रास्ते भीमसेनपराजितम्। नामृष्यन्त महेष्वासाः सोदर्याः पञ्च भारत।। | 5-135-29a 5-135-29b |
दुर्मर्षणो दुःसहश्च दुर्मदो दुर्धरो जयः। पाण्डवं चित्रसन्नाहास्तं प्रतीपमुपाद्रवन्।। | 5-135-30a 5-135-30b |
ते समन्तान्महाबाहुं परिवार्य वृकोदरम्। दिशः शरैः समावृण्वञ्शलभानामिव व्रजैः।। | 5-135-31a 5-135-31b |
आगच्छतस्तान्सहसा कुमारान्देवरूपिणः। प्रतिजग्राह समरे भीमसेनो हसन्निव।। | 5-135-32a 5-135-32b |
तव दृष्ट्वा तु तनयान्दुर्मर्षणपुरोगमान्। अभ्यवर्तत राधेयो भीमसेनं महाबलम्।। | 5-135-33a 5-135-33b |
विसृजन्विशिखांस्तीक्ष्णान्स्वर्णपुङ्खांञ्छिलाशितान्। तं तु भीमोऽभ्ययात्तूर्णं वार्यमाणः सुतैस्तव।। | 5-135-34a 5-135-34b |
कुरवस्तु ततः कर्णं परिवार्य समन्ततः। अवाकिरन्भीमसेनं शरैः सन्नतपर्वभिः।। | 5-135-35a 5-135-35b |
तान्बाणैः पञ्चविंशत्या साश्वान्राजन्नरर्षभान्। ससूतान्भीमधनुषो भीमो निन्ये यमक्षयम्।। | 5-135-36a 5-135-36b |
प्रापतन्स्यन्दनेभ्यस्ते सार्धं सूतैर्गतासवः। चित्रपुष्पधरा भग्ना वातेनेव महाद्रुमाः।। | 5-135-37a 5-135-37b |
तत्राद्भुतमपश्याम भीमसेनस्य विक्रमम्। संवार्याधिरथिं बाणैर्यज्जघान तवात्मजान्।। | 5-135-38a 5-135-38b |
स वार्यमाणो भीमेन शितैर्बाणैः समन्ततः। सूतपुत्रो महाराज भीमसेनमवैक्षत।। | 5-135-39a 5-135-39b |
तं भीससेनः संरम्भात्क्रोधसंरक्तलोचनः। विष्फार्य सुमहच्चापं मुहुः कर्णमवैक्षत।। | 5-135-40a 5-135-40b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि चतुर्दशदिवसयुद्धे पञ्चत्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। 135 ।। |
5-135-9 यमः संयमनव्यापारः कालः कलनव्यापरः अन्तको मारणव्यापारः तदुपमम्।। 5-135-135 पञ्चत्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः।।
द्रोणपर्व-134 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-136 |