महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-118
दिखावट
← द्रोणपर्व-117 | महाभारतम् सप्तमपर्व महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-118 वेदव्यासः |
द्रोणपर्व-119 → |
|
सात्यकिना सुदर्शननाम्नो राज्ञो वधः।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 5-118-1x |
द्रोणं स जित्वा पुरुषप्रवीर-- स्तथैव हार्दिक्यमुखांस्त्वदीयान्। प्रहस्य सूतं वचनं बभाषे शिनिप्रवीरः कुरुपुङ्गवाग्र्य।। | 5-118-1a 5-118-1b 5-118-1c 5-118-1d |
निमित्तमात्रं वयमद्य सूत दग्धा रथाः केशवफल्गुनाभ्याम्। हतान्निहन्मेह नरर्षभेण वयं सुरेशात्मसमुद्भवेत।। | 5-118-2a 5-118-2b 5-118-2c 5-118-2d |
सञ्जय उवाच। | 5-118-3x |
तमेवमुक्त्वा शिनिपुङ्गवस्तदा महामृधे सोऽग्र्यधनुर्धरोऽरिहा। किरन्समन्तात्सहसा शरान्बली समापतच्छयेन इवामिषाशया।। | 5-118-3a 5-118-3b 5-118-3c 5-118-3d |
तं यान्तमश्वैः शशिशङ्खवर्णै-- र्विगाह्य सैन्यं पुरुषप्रवीरम्। नाशक्नुवन्वारयितुं समन्ता-- दादित्यरश्मिप्रतिमं रथाग्र्यम्।। | 5-118-4a 5-118-4b 5-118-4c 5-118-4d |
असह्यविक्रान्तमदीनसत्वं सर्वे गणा भारत ये त्वदीयाः। सहस्रनेत्रप्रतिमप्रभावं दिवीव सूर्यं जलदव्यपाये।। | 5-118-5a 5-118-5b 5-118-5c 5-118-5d |
अमर्षपूर्णस्त्वतिचित्रयोधी शरासनी काञ्चनवर्मधारी। सुदर्शनः सात्यकिमापतन्तं न्यवारयद्राजवरः प्रसह्य।। | 5-118-6a 5-118-6b 5-118-6c 5-118-6d |
तयोरभूद्भारतसम्प्रहारः सुदारुणस्तं समतिप्रशंसन्। योधास्त्वदीयाश्च हि सोमकाश्च वृत्रेन्द्रयोर्युद्धमिवामरौघाः।। | 5-118-7a 5-118-7b 5-118-7c 5-118-7d |
शरैः सुतीक्ष्णैः शतशोऽभ्यविध्य-- त्सुदर्शनः सात्वतमुख्यमाजौ। अनागतानेव तु तान्पृषत्कां-- श्चिच्छेद राजञ्शिनिपुङ्गवोऽपि।। | 5-118-8a 5-118-8b 5-118-8c 5-118-8d |
तथैव शक्रप्रतिमोऽपि सात्यकिः सुदर्शने यान्क्षिपति स्म सायकान्। द्विधा त्रिधा तानकरोत्सुदर्शनः शरोत्तमैः स्यन्दनवर्यमास्थितः।। | 5-118-9a 5-118-9b 5-118-9c 5-118-9d |
तान्वीक्ष्य बाणान्निहतांस्तदानीं सुदर्शनः सात्यकिबाणवेगैः। क्रोधाद्दिधक्षन्निव तिग्मतेजाः शरानमुञ्चत्तपनीयचित्रान्।। | 5-118-10a 5-118-10b 5-118-10c 5-118-10d |
पुनः स बाणैस्त्रिभिरग्निकल्पै-- राकर्णपूर्णैर्निशितैः सुपुङ्खैः। विव्याध देहावरणं विभिद्य ते सात्यकेराविविशुः शरीरम्।। | 5-118-11a 5-118-11b 5-118-11c 5-118-11d |
तथैव तस्यावनिपालपुत्रः सन्धाय बाणैरपरैर्ज्वलद्भिः। आजघ्निवांस्तान्रजतप्रकाशां-- श्चतुर्भिरश्वांश्चतुरः प्रसह्य।। | 5-118-12a 5-118-12b 5-118-12c 5-118-12d |
तथा तु तेमाभिहतस्तरस्वी नप्ता शिनेरिन्द्रसमानवीर्यः। सुदर्शनस्येषुगणैः सुतीक्ष्णै-- र्हयान्निहत्याशु ननाद नादम्।। | 5-118-13a 5-118-13b 5-118-13c 5-118-13d |
अथास्य सूतस्य शिरो निकृत्य भल्लेन शक्राशनिसन्निभेन। सुदर्शनस्यापि शिनिप्रवीरः क्षुरेण कालानलसन्निभेन।। | 5-118-14a 5-118-14b 5-118-14c 5-118-14d |
सकुण्डलं पूर्णशशिप्रकाशं भ्राजिष्णु वक्त्रं विचकर्त देहात्। यथा पुरा वज्रधरः प्रसह्य बलस्य सङ्ख्येऽतिबलस्य राजन्।। | 5-118-15a 5-118-15b 5-118-15c 5-118-15d |
निहत्य तं पार्थिवपुत्रपौत्रं रणे यदूनामृषभस्तरस्वी। मुदा समेतः परया महात्मा रराज राजन्सुरराजकल्पः।। | 5-118-16a 5-118-16b 5-118-16c 5-118-16d |
ततो ययावर्जुनमेव वीरो निवार्य सैन्यं तव मार्गणौघैः। सदश्वयुक्तेन रथेन राजँ-- ल्लोकं विसिस्मापयिषुर्नृवीरः।। | 5-118-17a 5-118-17b 5-118-17c 5-118-17d |
तत्तस्य विस्मापयनीयमग्र्य-- मपूजयन्योधवराः समेताः। प्रवर्तमानानिषुगोचरेऽरी-- न्ददाह बाणैर्हुतभुग्यथैव।। | 5-118-18a 5-118-18b 5-118-18c 5-118-18d |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि चतुर्दशदिवसयुद्धे अष्टादशाधिकशततमोऽध्यायः।। 118 ।। |
द्रोणपर्व-117 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-119 |