महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-005
दिखावट
← द्रोणपर्व-004 | महाभारतम् सप्तमपर्व महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-005 वेदव्यासः |
द्रोणपर्व-006 → |
|
दुर्योधनपृष्टेन कर्णेन तम्प्रति द्रोणस्य सैनापत्यकरणविधानम्।। 5 ।।
सञ्जय उवाच। | 5-5-1x |
रथस्थं पुरुषव्याघ्रं दृष्टा कर्णमवस्थितम्। हृष्टो दुर्योधनो राजन्निदं वचनमब्रवीत्।। | 5-5-1a 5-5-1b |
सनाथमिव मन्येऽहं भवता पालितं बलम्। अत्र किं नु समर्थं यद्धितं तत्सम्प्रधार्यताम्।। | 5-5-2a 5-5-2b |
कर्ण उवाच। | 5-5-3x |
ब्रूहि नः पुरुषव्याघ्र त्वं हि प्राज्ञतमो नृषु। यथा चार्थपतिः कृत्यं पश्यते न तथेतरः।। | 5-5-3a 5-5-3b |
ते स्म सर्वे तव वचः श्रोतुकामा नरेश्वर। नान्याय्यं हि भवान्वाक्यं ब्रूयादिति मतिर्मम।। | 5-5-4a 5-5-4b |
दुर्योधन उवाच। | 5-5-5x |
भीष्मः सेनाप्रणेताऽऽसीद्वयसा विक्रमेण च। श्रुतेन चोपसम्पन्नः सर्वैर्योधगणैस्तथा।। | 5-5-5a 5-5-5b |
तेनातियशसा कर्ण घ्नता शत्रुगणान्मम। सुयुद्धेन दशाहानि पालिताः स्मो महात्मना।। | 5-5-6a 5-5-6b |
तस्मिन्नसुकरं कर्म कृतवत्यास्थिते दिवम्। कं तु सेनाप्रणेतारं मन्यसे तदनन्तरम्।। | 5-5-7a 5-5-7b |
न विना नायकं सेना मुहूर्तमपि तिष्ठति। `आहवेषु विशेषेण भ्रष्टनेत्रेष्विवाञ्जनम्।' आहवेष्वाहवश्रेष्ठ नेतृहीनेव नौर्जले।। | 5-5-8a 5-5-8b 5-5-8c |
यथा ह्यकर्णधारा नौ रथश्चासारथिर्यथा। द्रवेद्यथेष्टं तद्वत्स्यादृते सेनापतिं बलम्।। | 5-5-9a 5-5-9b |
अदेशिको यथा सार्थः सर्वः कृच्छ्रं समृच्छति। अनायका तथा सेना सर्वान्दोषान्समर्च्छति।। | 5-5-10a 5-5-10b |
स भावन्वीक्ष्य सर्वेषु मामकेषु महात्मसु। पश्य सेनापतिं युक्तमनु शान्तनवादिह।। | 5-5-11a 5-5-11b |
यं हि सेनाप्रमेतारं भवान्वक्ष्यति संयुगे। तं वयं सहिताः सर्वे करिष्यामो न संशयः। | 5-5-12a 5-5-12b |
कर्ण उवाच। | 5-5-13x |
सर्व एव महात्मान इमे पुरुषसत्तमाः। सेनापतित्वमर्हन्ति नात्र कार्या विचारणा।। | 5-5-13a 5-5-13b |
कुलसंहननज्ञानैर्बलविक्रमबुद्धिभिः। युक्ताः श्रुतज्ञा धीमन्त आहवेष्वनिवर्तिनः।। | 5-5-14a 5-5-14b |
युगपन्न तु ते शक्याः कर्तुं सर्वे पुरःसराः। एक एव तु कर्तव्यो यस्मिन्वैशेषिका गुणाः।। | 5-5-15a 5-5-15b |
अन्योन्यस्पर्धिनां ह्येषां यद्येकं त्वं करिष्यसि। शेषा विमनसो व्यक्तं न योत्स्यन्ति हितास्तव।। | 5-5-16a 5-5-16b |
अयं च सर्वयोधानामाचार्यः स्थिवरो गुरुः। युक्तः सेनापतिः कर्तुं द्रोणः शस्त्रभृतां वरः।। | 5-5-17a 5-5-17b |
को हि तिष्ठति दुर्धर्षे द्रोणे शस्त्रभृतां वरे। सेनापतिःस्यादन्योस्माच्छुक्राङ्गिरसदर्शनात्।। | 5-5-18a 5-5-18b |
न च सोऽप्यस्ति ते योधः सर्वराजसु भारत। द्रोणं यः समरे यान्तमनुयास्यति संयुगे।। | 5-5-19a 5-5-19b |
एष सेनाप्रणेतॄणामेष शस्त्रभृतामपि। एष बुद्धिमतां चैव श्रेष्ठो राजन्गुरुस्तव।। | 5-5-20a 5-5-20b |
एवं दुर्योधनाचार्यमाशु सेनापतिं कुरु। जिगीषन्तो सुरान्सङ्ख्ये कार्तिकेयमिवामराः।। | 5-5-21a 5-5-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि द्रोणाभिषेकपर्वणि पञ्चमोऽध्यायः।। 5 ।। |
5-5-8 नेता कर्णधारः।। 5-5-10 अदेशिकोऽग्रेसररहितः। 5-5-14 संहननं शरीरम्।। 5-5-18 शुक्राङ्गिरसदर्शनाच्छुक्रबृहस्पतितुल्यात्। 5-5-5 पञ्चमोऽध्यायः।।
द्रोणपर्व-004 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-006 |