महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-136
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भीमेन चित्रोपचित्रादिदुर्योधनानुजवधः।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 5-136-1x |
तवात्मजांस्तु पतितान्दृष्ट्वा कर्णः प्रतापवान्। क्रोधेन महताऽऽविष्टो निर्विण्णोऽभूत्स जीवितो।। | 5-136-1a 5-136-1b |
आगस्कृतमिवात्मानं मेने चाधिरथिस्तदा। यत्प्रत्यक्षं तव सुता भीमेन निहता रणे।। | 5-136-2a 5-136-2b |
भीमसेनस्ततः क्रुद्धः कर्णस्य निशिताञ्शरान्। निचखान् स सम्भ्रान्तः पूर्ववैरमनुस्मरन्।। | 5-136-3a 5-136-3b |
स भीमं पञ्चभिर्विद्ध्वा राधेयः प्रहसन्निव। पुनर्विव्याध सप्तत्या स्वर्णपुङ्खैः शिलाशितैः।। | 5-136-4a 5-136-4b |
अविचिन्त्याथ तान्बाणान्कर्णेनास्तान्वृकोदरः। रणे विव्याध राधेयं शरेणानतपर्वणा।। | 5-136-5a 5-136-5b |
पुनश्च विशिखैस्तीक्ष्णैर्विद्ध्वा मर्मसु पञ्चभिः। धनुश्चिच्छेद भल्लेन सूत पुत्रस्य मारिष।। | 5-136-6a 5-136-6b |
अथान्यद्धनुरादाय कर्णो भारत दुर्मनाः। इषुभिश्छादयामास मीमसेनं परन्तपः।। | 5-136-7a 5-136-7b |
तस्य भीमो हयान्हत्वा विनिहत्य च सारथिम्। प्रजहास महाहासं कृतप्रतिकृतं महत्।। | 5-136-8a 5-136-8b |
इषुभिः कार्मुकं चास्य चकर्त पुरुषर्षभः। तत्पपात महाराज स्वर्णपृष्ठं महास्वनम्।। | 5-136-9a 5-136-9b |
अवारोहद्रथात्तस्मादथ कर्णो महारथः। गदां गृहीत्वा समरे भीमाय प्राहिणोद्रुषा।। | 5-136-10a 5-136-10b |
तामापतन्तीमालक्ष्य भीमसेनो महागदाम्। शरैरवारयद्राजन्सर्वसैन्यस्य पश्यतः।। | 5-136-11a 5-136-11b |
ततो बाणसहस्राणि प्रेषयामास पाण्डवः। सूतपुत्रवधाकाङ्क्षी त्वरमाणः पराक्रमी।। | 5-136-12a 5-136-12b |
तानिषूनिषुभिः कर्णो वारयित्वा महामृधे। कवचं भीमसेनस्य पाटयामास सायकैः।। | 5-136-13a 5-136-13b |
अथैनं पञ्चविंशत्या नाराचानां समार्पयत्। पश्यतां सर्वसैन्यानां तदद्भुतमिवाभवत्।। | 5-136-14a 5-136-14b |
ततो भीमो महाबाहुर्नवभिर्नतपर्वभिः। प्रेषयामास सङ्क्रुद्धः सूतपुत्रस्य मारिष।। | 5-136-15a 5-136-15b |
ते तस्य कवचं भित्त्वा तथा बाहुं च दक्षिणम्। अभ्ययुर्धरणीं तीक्ष्णा वल्मीकमिव पन्नगाः।। | 5-136-16a 5-136-16b |
स च्छाद्यमानो बाणौधैर्भीमसेनधनुश्च्युतैः। पुनरेवाभवत्कर्णो भीमसेनात्पराङ्मुखः।। | 5-136-17a 5-136-17b |
तं पराङ्मुखमालोक्य पदातिं सूतनन्दनम्। कौन्तेयशरसञ्छन्नं राजा दुर्योधनोऽब्रवीत्।। | 5-136-18a 5-136-18b |
त्वरध्वं सर्वतो यत्ता राधेयस्य रथं प्रति। ततस्तव सुता राजञ्श्रुत्वा भ्रातुर्वचो द्रुतम्।। | 5-136-19a 5-136-19b |
अभ्ययुः पाण्डवं युद्धे विसृजन्तः शिलीमुखान्। चित्रोपचित्रश्चित्राक्षश्चारुचित्रः शरासनः।। | 5-136-20a 5-136-20b |
चित्रायुधश्चित्रवर्मा समरे चित्रयोधिनः। तानापतत एवाशु भीमसेनो महारथः।। | 5-136-21a 5-136-21b |
एकैकेन शरेणाजौ पातयामास ते सुतान्। ते हता न्यपतन्भूमौ वातरूग्णा इव द्रुमाः।। | 5-136-22a 5-136-22b |
दृष्ट्वा विनिहतान्पुत्रांस्तव राजन्महारथान्। अश्रुपूर्णमुखः कर्णः क्षत्तुः सस्मार तद्वचः।। | 5-136-23a 5-136-23b |
रथं चान्यं समास्थाय विधिवत्कल्पितं पुनः। अभ्ययात्पाण्डवं युद्धे त्वरमाणः पराक्रमी।। | 5-136-24a 5-136-24b |
तावन्योन्यं शरैर्भित्त्वा स्वर्णपुङ्खैः शिलाशितैः। व्यभ्राजेतां यथा मेघौ संस्यूतौ सूर्यरश्मिभिः।। | 5-136-25a 5-136-25b |
षट्त्रिंशद्भिस्ततो भल्लैर्निशितैस्तिग्मतेजनैः। व्यधमत्कवनं क्रुद्धः सूतपुत्रस्य पाण्डवः।। | 5-136-26a 5-136-26b |
सूतपुत्रोऽपि कौन्तेयं शरैः सन्नतपर्वभिः। पञ्चाशता महाबाहुर्विव्याध भरतर्षभ।। | 5-136-27a 5-136-27b |
रक्तचन्दनदिग्धाङ्गौ शरैः कृतमहाव्रणौ। शोणिताक्तौ व्यराजेतां कालसूर्याविवोदितौ।। | 5-136-28a 5-136-28b |
तौ शोणितोक्षितैर्गात्रैः शरैश्छिन्नतनुच्छदौ। विवृताङ्गौ व्यराजेतां निर्मुक्ताविव पन्नगौ।। | 5-136-29a 5-136-29b |
`क्रोधाग्नितेजसा दिप्तौ संरम्भाद्रक्तलोचनौ। व्यभ्राजेतां महाराज विधूमाविव पावकौ'।। | 5-136-30a 5-136-30b |
व्याघ्राविव नरव्याघ्रौ दंष्ट्राभिरितरेतरम्। शरधारासृजौ वीरौ मेघाविव ववर्षतुः।। | 5-136-31a 5-136-31b |
वारणाविव चान्योन्यं विषाणाभ्यामरिन्दमौ। निर्भिन्दन्तौ स्वगात्राणि सायकैश्चारु रेजतुः।। | 5-136-32a 5-136-32b |
नादयन्तौ प्रहर्षन्तौ विक्रीडन्तौ परस्परम्। मण्डलानि विकुर्वाणौ रथाभ्यां रथिषूत्तमौ।। | 5-136-33a 5-136-33b |
वृषाविवाथ नर्दन्तौ बलिनौ वासितान्तरे। सिंहाविव पराक्रान्तौ नरसिंहौ महाबलौ।। | 5-136-34a 5-136-34b |
परस्परं वीक्षमाणौ क्रोधसंरक्तलोचनौ। युयुधाते महावीर्यौ शक्रवैरोचनी यथा।। | 5-136-35a 5-136-35b |
ततो भीमो महाबाहुर्बाहुभ्यां विक्षिपन्धनुः। व्यराजत रणे राजन्सविद्युदिव तोयदः।। | 5-136-36a 5-136-36b |
सनेमिघोषस्तनितश्चापविद्युच्छराम्बुभिः। भीमसेनमहामेघः कर्णपर्वतमावृणोत्।। | 5-136-37a 5-136-37b |
ततः शरसहस्रेण सम्यगस्तेन भारत। पाण्डवो व्यकिरत्कर्णं भीमो भीमपराक्रमः।। | 5-136-38a 5-136-38b |
तत्रापश्यंस्तव सुता भीमसेनस्य विक्रमम्। सुपुङ्खैः कङ्कवासोभिर्यत्कर्णं छादयञ्शरैः।। | 5-136-39a 5-136-39b |
स नन्दयन्रणे पार्थं केशवं च यशस्विनम्। सात्यकिं चक्ररक्षौ च भीमः कर्णमयोधयत्।। | 5-136-40a 5-136-40b |
विक्रमं भुजयोर्वीर्यं धैर्यं च विदितात्मनः। पुत्रास्तव महाराज दृष्ट्वा विमनसोऽभवन्।। | 5-136-41a 5-136-41b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि चतुर्दशदिवसयुद्धे षट्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। 136 ।। |
5-136-10 अवारोहदवातरत्।। 5-136-20 चित्रोपचित्रः चित्रश्चासावुपचित्रश्चेति चित्रोपचित्रः।। 5-136-136 षट्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः।।
द्रोणपर्व-135 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-137 |