महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-059
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सृञ्जयम्प्रति नारदेन राममङिमानुवर्णनम्।। 1 ।।
नारद उवाच। | 5-59-1x |
रामं दाशरथिं चैव मृतं सृञ्जय शुश्रुम। यं प्रजा अन्वमोदन्त पिता पुत्रमिवौरसम्। असङ्ख्येया गुणा यस्मिन्नासन्नमिततेजसि।। | 5-59-1a 5-59-1b 5-59-1c |
यश्चतुर्दशवर्षाणि निदेशात्पितुरच्युतः। वने वनितया सार्धमवसल्लक्ष्मणाग्रजः।। | 5-59-2a 5-59-2b |
जघान च जनस्थाने राक्षसान्मनुजर्षभः। तपस्विनां रक्षणार्थं सहस्राणि चतुर्दश।। | 5-59-3a 5-59-3b |
तत्रैव वसतस्तस्य रावणो नाम राक्षसः। जहार भार्यां वैदेहीं सम्मोह्यैनं सहानुजम्।। | 5-59-4a 5-59-4b |
`रामो हृतां राक्षसेन भार्यां श्रुत्वा जटायुषः। आतुरः शोकसन्तप्तो रामोऽगच्छद्धरीश्वरम्।। | 5-59-5a 5-59-5b |
तेन रामः सुसङ्गम्य वानरैश्च महाबलैः। आजगामोदधेः पारं सेतुं कृत्वा महार्णवे।। | 5-59-6a 5-59-6b |
तत्र हत्वा तु पौलस्त्यान्ससुहृद्गणबान्धवान्। मायाविनं महाघोरं रावणं लोककण्टकम्'।। | 5-59-7a 5-59-7b |
सुरासुरैरवध्यं तं देवब्राह्मणकण्टकम्। जघान स महाबाहुः पौलस्त्यं सगणं रणे।। | 5-59-8a 5-59-8b |
`हत्वा तत्र रिपुं सङ्ख्ये भार्यया सह सङ्गतः। स च लङ्केश्वरं चक्रे धर्मात्मानं विभीषणम्।। | 5-59-9a 5-59-9b |
भार्यया सह संयुक्तस्ततो वानरसेनया। अयोध्यामागतो वीरः पुष्पकेण विराजता।। | 5-59-10a 5-59-10b |
तत्र राजन्प्रविष्टः सन्नयोध्यायां महायशाः। मातॄर्वयस्यान्सचिवानृत्विजः सपुरोहितान्।। | 5-59-11a 5-59-11b |
शुश्रूषमाणः सततं मन्त्रिभिश्चाभिषेचितः। विसृज्य हरिराजानं हनुमन्तं सहाङ्गदम्।। | 5-59-12a 5-59-12b |
भ्रातरं भरतं वीरं शत्रुघ्नं चैव लक्ष्मणम्। पूजयन्परया प्रीत्या वैदेह्या चाभिपूजितः।। | 5-59-13a 5-59-13b |
दशवर्षसहस्राणि दशवर्षशतानि च। चतुःसगारपर्यन्तां पृथिवीमन्वशासत।। | 5-59-14a 5-59-14b |
अश्वमेधशतैरीजं क्रतुभिर्भूरिदक्षिणैः। यश्च विप्रप्रसादेन सर्वकामानवाप्य च'।। | 5-59-15a 5-59-15b |
सम्प्राप्य विधिवद्राज्यं सर्वभूतानुकम्पनः। `सर्वद्वीपानवष्टभ्य प्रजा धर्मेण पालयन्'।। | 5-59-16a 5-59-16b |
स निर्गलं मुख्यतममश्वमेधशतं प्रभुः। आजहार सुरेशस्य हविषा मुदमाहरन्। अन्यैश्च विविधैर्यज्ञैरीजे बहुगुणैर्नृपः।। | 5-59-17a 5-59-17b 5-59-17c |
क्षुत्पिपासेऽजयद्रामः सर्वरोगांश्च देहिनाम्। सततं गुणसम्पन्नो दीप्यमानः स्वतेजसा।। | 5-59-18a 5-59-18b |
अतिसर्वाणि भूतानि रामो दाशरथिर्बभौ। ऋषीणां देवतानां च मानुषाणां च सर्वशः। पृथिव्यां सह वासोऽभूद्रामे राज्यं प्रशासति।। | 5-59-19a 5-59-19b 5-59-19c |
नाहीयत तदा प्रामः प्राणिनां न तदा व्यथा। प्राणापानौ समावास्तां रामे राज्यं प्रशासति।। | 5-59-20a 5-59-20b |
पर्यदीप्यन्त तेजांसि तदाऽनर्थाश्च नाभवन्। दीर्घायुषः प्रजाः सर्वा युवा न म्रियते तदा।। | 5-59-21a 5-59-21b |
वेदैश्चतुर्भिः सुप्रीताः प्राप्नुवन्ति दिवौकसः। हव्यं कव्यं च विविधं निष्पूर्तं हुतमेव च।। | 5-59-22a 5-59-22b |
अदंशमशका देशा नष्टव्यालसरीसृपाः। नाप्यु प्राणभृतां मृत्युर्नाकाले ज्वलनोऽदहत्।। | 5-59-23a 5-59-23b |
अधर्मरुचयो लुब्धा मूर्खा वा नाभवंस्तदा। शिष्टेष्टप्राज्ञकर्माणः सर्वे वर्णास्तदाऽभवन्।। | 5-59-24a 5-59-24b |
स्वधां पूजां च रक्षोभिर्जनस्थाने प्रणाशिताम्। प्रादान्निहत्य रक्षांसि पितृदेवेभ्य ईश्वरः।। | 5-59-25a 5-59-25b |
सहस्रपुत्राः पुरुषा दशवर्षशतायुषः। न च ज्येष्ठाः कनिष्ठेभ्यस्तदा श्राद्धानि कुर्वते।। | 5-59-26a 5-59-26b |
श्यामो युवा लोहिताक्षो मत्तमातङ्गविक्रमः। आजानुबाहुः सुभुजः सिंहस्कन्धो महाबलः।। | 5-59-27a 5-59-27b |
दशवर्षसहस्राणि दशवर्षशतानि च। सर्वभूतमनःकान्तो रामो राज्यमकारयत्।। | 5-59-28a 5-59-28b |
रामो रामो राम इति प्रजानामभवत्कथा। रामभूतं जगदभूद्रामे राज्यं प्रशासति।। | 5-59-29a 5-59-29b |
चतुर्विधाः प्रजा रामः स्वर्गं नीत्वा दिवं गतः। आत्मेच्छया प्रतिष्ठाप्य राजवंशमिहाष्टधा।। | 5-59-30a 5-59-30b |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरस्तुभ्यं मा पुत्रमनुतप्यथाः। अयज्वानमदक्षिण्यमभि श्वैत्येत्युदाहरत्।। | 5-59-31a 5-59-31b 5-59-31c |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि अभिमन्युवधपर्वणि षोडशराजकीये एकोनषष्टितमोऽध्यायः।। 59 ।। |
5-59-17 स निरर्गलजान्मुख्यानश्वमेधाञ्शतं प्रभुः इति ङ. पाठः। आजहार महाजज्ञं प्रजा धर्मेण पालयन्। निरर्गलं सजारूथ्यमश्वमेधं च तं विभुः इति झ. पाठः। आजहार रमेशस्य इति ङ. पाठः।। 5-59-19 पृथिव्यां मानुषाणां प्रत्यक्षा देवादयो विचरन्ति पुण्यातिशयात्।। 5-59-20 प्राणो बलम्।। 5-59-22 निष्पूर्तं जठीकारामादि। हुतमिष्ठम्। सुप्रीता ब्राह्मणाः शाखपारगाः इति ङ. पाठः।। 5-59-29 रामाद्रामं जगदभूत् इति घ.झ.पाठः। तत्र रामं अभिरामम्।। 5-59-59 एकोनषष्टितमोऽध्यायः।। 59 ।।
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