महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-119
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सात्यकिपराक्रमवर्णनम्।। 1 ।।
`सञ्जय उवाच। | 5-119-1x |
निर्जित्य कृतवर्माणं भारद्वाजं च संयुगे। स सात्यकिः सत्यधृतिर्महात्मा शिनिपुङ्गवः।। | 5-119-1a 5-119-1b |
*दुर्योधनं च निर्जित्य शूरं चैव सुयोधनम्। जलसन्धं निहत्याजौ शूरसेनं च पार्थिवम्।। | 5-119-2a 5-119-2b |
म्लेच्छांश्च बहुधा राजन्काश्यपुत्रं च संयुगे। निषादांस्तङ्कणांश्चैव कलिङ्गान्मगधानपि।। | 5-119-3a 5-119-3b |
केकयाञ्छूरसेनांश्च तथा पर्वतवासिनः। काम्भोजान्यवनांश्चैव वसातींश्च शिबीनपि।। | 5-119-4a 5-119-4b |
कोसलान्मगधांश्चैव यातुधानान्सतित्तिरान्। एतांश्चान्यान्रणे हत्वाऽगच्छद्युद्धे स सात्यकिः।। | 5-119-5a 5-119-5b |
रुधिरौघनदीं घोरां केशशैवालशाद्वलाम्। शक्तिग्राहसमाकीर्णां छत्रहंसोपशोभिताम्।। | 5-119-6a 5-119-6b |
दुस्तरां भीरुभिर्नित्यं शूरलोकप्रवाहिनीम्। प्रवर्त्य हृषितो राजन्पुनर्यन्तारमब्रवीत्।। | 5-119-7a 5-119-7b |
ध्वजनागाश्वकलिलं शरशक्त्यूर्मिमालिनम्'। खङ्कमत्स्यं गदाग्राहं शूरायुधमहास्वनम्।। | 5-119-8a 5-119-8b |
प्राणापहारिणं रौद्रं वादित्रोद्धुष्टनादितम्। शूराणां सुखसंस्पर्शमस्पृश्यमथ भीरुणाम्। तीर्णाः स्म दुस्तरं तात द्रोणानीकमहार्णवम्।। | 5-119-9a 5-119-9b 5-119-9c |
जलसन्धबलेनाजौ पुरुषादैरिवावृतम्। अतोऽन्यत्पृतनाशेषं मन्ये कुनदिकामिव।। | 5-119-10a 5-119-10b |
तर्तव्यामल्पसलिलां चोदयाश्वानसम्भ्रमम्। हस्तप्राप्तमहं मन्ये साम्प्रतं सव्यसाचिनम्।। | 5-119-11a 5-119-11b |
निर्जित्य दुर्धरं द्रोणं सपदानुगमाहवे। हार्दिक्यं योधवर्यं च मन्ये प्राप्तं धनञ्जयम्।। | 5-119-12a 5-119-12b |
न हि मे जायते त्रासो दृष्ट्वा सैन्यान्यनेकशः। वह्नेरिव प्रदीप्तस्य वने शुष्कतृणालयम्।। | 5-119-13a 5-119-13b |
पश्य पाण्डवमुख्येन यातां भूमिं किरीटिना। पत्त्यश्वरथनागौघैः पतितैर्विषमीकृताम्।। | 5-119-14a 5-119-14b |
द्रवते तद्यथा सैन्यं तेन भग्नं महात्मना। रथैर्विपरिधावद्भिर्गजैरश्वैश्च सारथे। कौशेयारुणसंकाशमेतदुद्वूयते रजः।। | 5-119-15a 5-119-15b 5-119-15c |
अभ्याशस्थमहं मन्ये श्वेताश्वं कृष्णसारथिम्।। | 5-119-16a |
श्रूयते ह्येष निर्घोषो जलदस्येव गर्जतः। विष्फार्यमाणस्य रणे गाण्डीवस्यामितौजसः।। | 5-119-17a 5-119-17b |
अभ्याशस्थमहं मन्ये सैन्धवस्य किरीटिनम्। तादृशः श्रूयते शब्दः सैन्यानां सागरोपमः।। | 5-119-18a 5-119-18b |
यादृशानि निमित्तानि मम प्रादुर्भवन्ति वै। अनस्तंगत आदित्ये हन्ता सैन्धवमर्जुनः।। | 5-119-19a 5-119-19b |
शनैर्विस्रम्भयन्नश्वान्याहि यत्रारिवाहिनी।। | 5-119-20a |
यत्रैते सतलत्रामाः सुयोधनपुरोगमाः। दंशिताः क्रूरकर्माणः काम्भोजा युद्धदुर्मदाः।। | 5-119-21a 5-119-21b |
शरबाणासनधरा यवनाश्च प्रहारिणः। शकाः किराता दरदा बर्बरास्ताम्रलिप्तकाः।। | 5-119-22a 5-119-22b |
अन्ये च बहवो म्लेच्छा विविधायुधपाणयः। मामेवाभिमुखाः सर्वे तिष्ठन्ति समरार्थिनः।। | 5-119-23a 5-119-23b |
एतान्सरथनागाश्वान्निहत्याजौ सपत्तिनः। इदं दुर्गं महाघोरं तीर्णमेवोपधारय।। | 5-119-24a 5-119-24b |
सूत उवाच। | 5-119-25x |
न सम्भ्रमो मे वार्ष्णेय विद्यते सत्यविक्रम। यद्यपि स्यात्तव क्रुद्धो जामदग्न्योऽग्रतः स्थितः।। | 5-119-25a 5-119-25b |
द्रोणो वा रथिनां श्रेष्ठः कृपो मद्रेश्वरोऽपि वा। तथापि सम्भ्रामो न स्यात्त्वामाश्रित्य महाभुज।। | 5-119-26a 5-119-26b |
त्वया सुबहवो युद्धे निर्जिताः शत्रुसूदन। दंशिताःक्रूरकर्माणः काम्भोजा युद्धदुर्मदाः।। | 5-119-27a 5-119-27b |
शरवाणासनधरा यवनाश्च प्रहारिणः। शकाः किराता दरदा बर्बरास्ताम्रलिप्तकाः। अन्ये च बहवो म्लेच्छा विविधायुधपाणयः।। | 5-119-28a 5-119-28b 5-119-28c |
न च मे सम्भ्रमः कश्चिद्भूतपूर्वः कथञ्चन। किमुतैतत्समासाद्य धीरं संयुगगोष्पदम्।। | 5-119-29a 5-119-29b |
आयुष्मन्कतरेण त्वां प्रापयामि धनञ्जयम्। केभ्यः क्रुद्धोऽसि वार्ष्णेय कान्स्विन्मृत्युरुपस्थितः।। | 5-119-30a 5-119-30b |
केषां सङ्घमनीकस्य हन्तुमुत्सहते मनः। केत्वां युधि पराक्रान्तं कालान्तकयमोपमम्।। | 5-119-31a 5-119-31b |
दृष्ट्वा विक्रमसम्पन्नं विद्रविष्यन्ति संयुगे। केषां वैवस्वतो राजा स्मरतेऽद्य महाभुज।। | 5-119-32a 5-119-32b |
सात्यकिरुवाच। | 5-119-33x |
मुण्डानेतान्हनिष्यामि दानवानिव वासवः। प्रतिज्ञां पारयिष्यामि काम्भोजानेव मां वह।। | 5-119-33a 5-119-33b |
xxxxxकदनं कृत्वा क्षिप्रं यास्यामि पाण्डवम्।। | 5-119-34a |
xxxxxयन्ति मे वीर्यं कौरवाः ससुयोधनाः। xxxxxxनाके हते सूत सर्वसैन्येषु चासकृत्।। | 5-119-35a 5-119-35b |
अद्य कौरवसैन्यस्य दीर्घमाणस्य संयुगे। श्रुत्वा विरावं बहुधा सन्तप्स्यति सुयोधनः।। | 5-119-36a 5-119-36b |
अद्य पाण्डवमुख्यस्य श्वेताश्वस्य महात्मनः। आचार्यककृतं मार्गं दर्शयिष्यामि संयुगे।। | 5-119-37a 5-119-37b |
अद्य मद्बाणनिहतान्योधमुख्यान्सहस्रशः। दृष्ट्वा दुर्योधनो राजा पश्चात्तापं गमिष्यति।। | 5-119-38a 5-119-38b |
अद्य मे क्षिप्रहस्तस्य क्षिपतः सायकोत्तमान्। अलातचक्रप्रतिमं धनुर्द्रक्ष्यन्ति कौरवाः।। | 5-119-39a 5-119-39b |
मत्सायकचिताङ्गानां रुधिरं स्रवतां मुहुः। सैनिकानां वधं दृष्ट्वा सन्तप्स्यति सुयोधनः।। | 5-119-40a 5-119-40b |
अद्य मे क्रुद्धरूपस्य निघ्नतश्च वरान्वरान्। द्विफल्गुनामिमं लोकं मंस्यतेऽद्य सुयोधनः।। | 5-119-41a 5-119-41b |
अद्य राजसहस्राणि निहतानि मया रणे। दृष्ट्वा दुर्योधनो राजा सन्तप्स्यति महामृधे।। | 5-119-42a 5-119-42b |
अद्य स्नेहं च भक्तिं च पाण्डवेषु महात्मसु। हत्वा राजसहस्राणि दर्शयिष्यामि राजसु।। | 5-119-43a 5-119-43b |
बलं वीर्यं कृतज्ञत्वं मम ज्ञास्यन्ति कौरवाः।। | 5-119-44a |
सञ्जय उवाच। | 5-119-45x |
एवमुक्तस्तदा सूतः शिक्षितान्साधुवाहिनः। शशाङ्कसन्निकाशान्वै वाजिनो व्यनुदद्भृशम्।। | 5-119-45a 5-119-45b |
ते पिबन्त इवाकाशं युयुधानं हयोत्तमाः। प्रापयन्यवनाञ्शनीघ्रं मनः पवनरंहसः।। | 5-119-46a 5-119-46b |
सात्यकिं ते समासाद्य पृतनास्वनिवर्तिनम्। बहवो लघुहस्ताश्च शरवर्षैरवाकिरन्।। | 5-119-47a 5-119-47b |
तेषामिषूनथास्त्राणि वेगवान्नतपर्वभिः। अच्छिनत्सात्यकी राजन्नैनं ते प्राप्नुवञ्शराः।। | 5-119-48a 5-119-48b |
रुक्मपुङ्खैः सुनिशितैर्गार्ध्रपत्रैरजिह्मगैः। उच्चकर्त शिरांस्युग्रो यवनानां भुजानपि।। | 5-119-49a 5-119-49b |
शैक्यायसानि वर्माणि कांस्यानि च समन्ततः। भित्त्वा देहांस्तथा तेषां शरा जग्मुर्महीतलम्।। | 5-119-50a 5-119-50b |
ते हन्यमाना वीरेण म्लेच्छाः सात्यकिना रणे। शतशोऽभ्यपतंस्तत्र व्यसवो वसुधातले।। | 5-119-51a 5-119-51b |
सुपूर्णायतमुक्तैस्तानव्यवच्छिन्नपिण्डितैः। पञ्च षट् सप्त चाष्टौ च भिभेद यवनाञ्शरैः।। | 5-119-52a 5-119-52b |
काम्भोजानां सहस्रैश्च शकानां च विशाम्पते। शबराणां किरातानां बर्बराणां तथैव च।। | 5-119-53a 5-119-53b |
अगम्यरूपां पृथिवीं मांसशोणितकर्दमाम्। कृतवांस्तत्र शैनेयः क्षपयंस्तावकं बलम्।। | 5-119-54a 5-119-54b |
दस्यूनां सशिरस्त्राणैः शिरोभिर्लूनमूर्धदौः। दीर्घकूर्चैर्मही कीर्णा विबर्हैरण्डजैरिव।। | 5-119-55a 5-119-55b |
रुधिरोक्षितसर्वाङ्गैस्तैस्तदायोधनं बभौ। कबन्धैः संवृतं सर्वं ताम्राभ्रैः खमिवावृतम्।। | 5-119-56a 5-119-56b |
वज्राशनिसमस्पर्शैः सुपर्वभिरजिह्मगैः। ते सात्वतेन निहताः समावव्रुर्वसुन्धराम्।। | 5-119-57a 5-119-57b |
`तेषामस्त्राणि बाणांश्च शैनेयो नतपर्वभिः। निचकर्त महाराज यवनानां शिरोधराः।। | 5-119-58a 5-119-58b |
ते शरा नतपर्वाणो युयुधानप्रचोदिताः। हित्वा देहांस्तथा तेषां पतन्ति स्म महीतले।। | 5-119-59a 5-119-59b |
ते हन्यमाना वीरास्तु वृष्णिवीरेण संयुगे। शस्त्राहताः पतन्त्युर्व्यां काम्भोजाः सपदानुगाः।। | 5-119-60a 5-119-60b |
काम्भोजानां भुजैश्छिन्नैर्यवनानां च भारत। तत्रतत्र मही भाति पञ्चास्यैरिव पन्नगैः'।। | 5-119-61a 5-119-61b |
अल्पावशिष्टाः सम्भग्नाः कृच्छ्रप्राणा विचेतसः। जिताः सङ्ख्ये महाराज युयुधानेन दंशिताः।। | 5-119-62a 5-119-62b |
पार्ष्णिभिश्च कशाभिश्च ताडयन्तस्तुरङ्गमान्। जवमुत्तममास्थाय सर्वतः प्राद्रवन्भयात्।। | 5-119-63a 5-119-63b |
काम्भोजसैन्यं विद्राव्य दुर्जयं युधि भारत। यवनानां च तत्सैन्यं शकानां च महद्बलम्।। | 5-119-64a 5-119-64b |
ततः स पुरुषव्याघ्रः सात्यकिः सत्यविक्रमः। प्रहृष्टस्तावकाञ्जित्वा सूतं याहीत्यचोदयत्।। | 5-119-65a 5-119-65b |
तत्तस्य समरे कर्म दृष्ट्वाऽन्यैरकृतं पुरा। चारणाः सहगन्धर्वाः पूजयाञ्चक्रिरे भृशम्।। | 5-119-66a 5-119-66b |
तं यान्तं पृष्ठगोप्तारमर्जुनस्य विशाम्पते। चारणाः प्रेक्ष्य संहृष्टास्त्वदीयाश्चाभ्यपूजयन्।। | 5-119-67a 5-119-67b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि चतुर्दशदिवसयुद्धे एकोनविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 119 ।। |
5-119-* एतदादिसार्धसप्तश्लोकस्थाने वक्ष्यमाणः सार्धएव श्लोकः झ.पुस्तकेऽस्ति। सञ्जय उवाच। ततः स सात्यकिर्धामीन्महात्मा वृष्णिपुङ्गवः। सुदर्शनं निहत्याजौ यन्तारं पुनरब्रवीत्।। रथाश्वनागकलिलं शरशत्तयूर्मिमालिनम्। 5-119-20 विस्रम्भयन् आश्वासयन्।। 5-119-33 पारयिष्यामि समापयिष्यामि।। 5-119-50 वैक्यायसानि शोणितायोमयानि।। 5-119-52 सुपूर्णयतमुक्तैराकर्णज्योत्सृष्टैः। अव्यवच्छिन्नपिण्डितैरनवच्छिन्नसंहतैः।। 5-119-119 एकोनविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।।
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