महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-093
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अर्जुनेन श्रुतायुःप्रभृतीनां वधः।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 5-93-1x |
हते सुदक्षिणे राजन्वीरे चैव श्रुतायुधे। जवेनाभ्यद्रवन्पार्थं कुपिताः सैनिकास्तव।। | 5-93-1a 5-93-1b |
अभीषाहाः शूरसेनाः शिबयोऽथ वसातयः। अभ्यवर्षंस्ततो राजञ्शरवर्षैर्धनञ्जयम्।। | 5-93-2a 5-93-2b |
तेषां षष्टिशतानन्यान्प्रामथ्नात्पाण्डवः शरैः। ते स्म भीताः पलायन्ते व्याघ्रात्क्षुद्रमृगा इव।। | 5-93-3a 5-93-3b |
ते निवृत्ताः पुनः पार्थं सर्वतः पर्यवारयन्। रणे सपत्नान्निघ्नन्तं जिगीषन्तं परान्युधि।। | 5-93-4a 5-93-4b |
तेषामापततां तूर्णं गाण्डीवप्रेषितैः शरैः। शिरांसि पातयामास बाहूंश्चापि धनञ्जयः।। | 5-93-5a 5-93-5b |
शिरोभिः पातितैस्तत्र भूमिरासीन्निरन्तरा। अभ्रच्छायेव चैवासीद्ध्वाङ्क्षगृध्रबलैर्युधि।। | 5-93-6a 5-93-6b |
तेषु तूत्साद्यमानेषु क्रोधामर्षसमन्वितौ। स्रुतायुश्चाश्रुतायुश्च धनञ्जयमयुध्यताम्।। | 5-93-7a 5-93-7b |
बलिनौ स्पर्धिनौ वीरौ कुलजौ बाहुशालिनौ। तावेनं शरवर्षाणि सव्यदक्षिणमस्यताम्।। | 5-93-8a 5-93-8b |
त्वरायुक्तौ महराज प्रार्थयानौ महद्यशः। अर्जुनस्य वधप्रेप्सू पुत्रार्थे तव धन्विनौ।। | 5-93-9a 5-93-9b |
तावर्जुनं सहस्रेण पत्रिणां नतपर्वणाम्। पूरयामासतुः क्रुद्धौ तटाकं जलदौ यथा।। | 5-93-10a 5-93-10b |
श्रुतायुश्च ततः क्रुद्धस्तोमरेण धनञ्जयम्। आजघान रथश्रेष्ठः पीतेन निशितेन च।। | 5-93-11a 5-93-11b |
सोऽतिविद्धो बलवता शत्रुणा शत्रुकर्शनः। जगाम परमं मोहं मोहयन्केशवं रणे।। | 5-93-12a 5-93-12b |
एतस्मिन्नेव काले तु सोऽश्रुतायुर्महारथः। शूलेन भृशतीक्ष्णेन ताडयामास पाण्डवम्।। | 5-93-13a 5-93-13b |
क्षते क्षारं स हि ददौ पाण्डवस्य महात्मनः। पार्थोऽपि भृशसंविद्धो ध्वजयष्टिं समाश्रितः।। | 5-93-14a 5-93-14b |
ततः सर्वस्य सैन्यस्य तावकस्य विशाम्पते। सिंहनादो महानासीद्धतं मत्वा धनञ्जयम्।। | 5-93-15a 5-93-15b |
कृष्णश्च भृशसन्तप्तो दृष्ट्वा पार्थं विचेतनम्। आश्वासयत्सुहृद्याभिर्वाग्भिस्तत्र धनञ्जयम्।। | 5-93-16a 5-93-16b |
ततस्तौ रथिनां श्रेष्ठौ लब्धलक्षौ धनञ्जयम्। वासुदेवं च वार्ष्णेयं शरवर्षैः समन्ततः।। | 5-93-17a 5-93-17b |
सचक्रकूबररथं साश्वध्वजपताकिनम्। अदृश्यं चक्रतुर्युद्धे तदद्भुतमिवाभवत्।। | 5-93-18a 5-93-18b |
प्रत्याश्वस्तस्तु बीभत्सुः शनकैरिव भारत। प्रेतराजपुरं प्राप्य पुनः प्रत्यागतो यथा।। | 5-93-19a 5-93-19b |
सञ्छन्नं शरजालेन रथं दृष्ट्वा सकेशवम्। शत्रू चाभिमुखौ दृष्ट्वा दीप्यमानाविवानलौ।। | 5-93-20a 5-93-20b |
प्रादुश्चक्रे ततः पार्थः शाक्रमस्त्रं महारथः। तस्मादासन्सहस्राणि शराणां नतपर्वणाम्।। | 5-93-21a 5-93-21b |
ते जघ्नुस्तौ महेष्वासौ ताभ्यां मुक्तांश्च सायकान्। विचेरुराकाशगताः पार्थचापविनिःसृताः।। | 5-93-22a 5-93-22b |
प्रतिहत्य सरांस्तूर्णं शरवेगेन पाण्डवः। प्रतस्थे तत्रतत्रैव योधयन्वै महारथान्।। | 5-93-23a 5-93-23b |
तौ च फल्गुनबाणौघैर्विबाहुशिरसौ कृतौ। वसुधामन्वपद्येतां वातनुन्नाविव द्रुमौ।। | 5-93-24a 5-93-24b |
श्रुतायुषश्च निधनं वधश्चेवाश्रुतायुषः। लोकविस्मापनमभूत्समुद्रस्येव शोषणम्।। | 5-93-25a 5-93-25b |
तयोः पदानुगान्हत्वा पुनः पञ्चशतं रथान्। प्रत्यगाद्भारतीं सेनां निघ्नन्पार्थो वरान्वरान्।। | 5-93-26a 5-93-26b |
श्रुतायुषं च निहतं प्रेक्ष्य चैवाश्रुतायुषम्। नियतायुश्च सङ्क्रुद्धो दीर्घायुश्चैव भारत।। | 5-93-27a 5-93-27b |
पुत्रौ तयोर्नरश्रेष्ठौ कौन्तेयं प्रति जग्मतुः। किरन्तौ विविधान्बाणान्पितृव्यसनकर्शितौ।। | 5-93-28a 5-93-28b |
तावर्जुनो मुहूर्तेन शरैः सन्नतपर्वभिः। प्रैषयत्परमक्रुद्धो यमस्य सदनं प्रति।। | 5-93-29a 5-93-29b |
लोडयन्तमनीकानि द्विपं पद्मसरो यथा। नाशक्नुवन्वारयितुं पार्थं क्षत्रियपुङ्गवाः।। | 5-93-30a 5-93-30b |
अङ्गास्तु गजसङ्घैश्च पाण्डवं पर्यवारयन्। क्रुद्धाः सहस्रशो राजञ्शिक्षिता हस्तिसादिनः।। | 5-93-31a 5-93-31b |
दुर्योधनसमादिष्टाः कुञ्जरैः पर्वतोपमैः। प्राच्याश्च दाक्षिणात्याश्च कलिङ्गप्रमुखा नृपाः।। | 5-93-32a 5-93-32b |
तेषामापततां शीघ्रं गाण्डीवप्रेषितैः शरैः। निचकर्त शिरांस्युग्रो बाहूनपि सुभूषणान्।। | 5-93-33a 5-93-33b |
तैः शिरोभिर्मही कीर्णा बाहुभिश्च सहाङ्गदैः। बभौ कनकपाषाणा भुजगैरिव संवृता।। | 5-93-34a 5-93-34b |
बाहवो विशिखैश्छिन्नाः शिरांस्युन्मथितानि च। पतमानान्यदृश्यन्त द्रुमेभ्य इव पक्षिणः।। | 5-93-35a 5-93-35b |
शरैः सहस्रशो विद्धा द्विपाः प्रसृतशोणिताः। अदृश्यन्ताद्रयः काले गैरिकाम्बुस्रवा इव।। | 5-93-36a 5-93-36b |
निहताः शेरते स्मान्ये बीभत्सोर्निशितैः शरैः। गजपृष्ठगता म्लेच्छा नानाविकृतदर्शनाः।। | 5-93-37a 5-93-37b |
नानावेषधरा राजन्नानाशस्त्रौघसंवृताः। रुधिरेणानुलिप्ताङ्गा भान्ति चित्रैः शरैर्हताः।। | 5-93-38a 5-93-38b |
शोणितं निर्वमन्ति स्म द्विपाः पार्थशराहताः। सहस्रशश्छिन्नगात्राः सारोहाः सपदानुगाः।। | 5-93-39a 5-93-39b |
चुक्रुशुश्च निपेतुश्च बभ्रमुश्चापरे दिशः। भृशं त्रस्ताश्च बहवः स्वानेव ममृदुर्गजाः।। | 5-93-40a 5-93-40b |
सोत्तरायुधिनश्चैव द्विपास्तीक्ष्णविषोपमाः। विदन्त्यसुरमायां ये सुघोरा घोरचक्षुषः।। | 5-93-41a 5-93-41b |
यवनाः पारदाश्चैव शकाश्च सह बाह्लिकैः। काकवर्णा दुराचाराः स्त्रीलोलाः कलहप्रियाः।। | 5-93-42a 5-93-42b |
द्राविडास्तत्र युध्यन्ते मत्तमातङ्गविक्रमाः। गोयोनिप्रभवा म्लेच्छाः कालकल्पाः प्रहारिणः।। | 5-93-43a 5-93-43b |
दार्वातिसारा दरदाः पुण्ड्राश्चैव सहस्रशः। ते न शक्याः स्म सङ्ख्यातुं व्राताः शतसहस्रशः।। | 5-93-44a 5-93-44b |
अभ्यवर्षन्त ते सर्वे पाण्डवं निशितैः शरैः। अवाकिरंश्च ते म्लेच्छा नानायुद्धविशारदाः।। | 5-93-45a 5-93-45b |
तेषामपि ससर्जाशु शरवृष्टिं धनञ्जयः। सृष्टिस्तथाविधा ह्यासीच्छलभानामिवायतिः।। | 5-93-46a 5-93-46b |
अभ्रच्छायामिव शरैः सैन्ये कृत्वा धनञ्जयः। मुण्डार्धमुण्डाञ्जटिलानशुचीञ्जटिलाननान्। म्लेच्छानशातयत्सर्वान्समेतानस्त्रतेजसा।। | 5-93-47a 5-93-47b 5-93-47c |
शरैश्च शतशो विद्धास्ते सङ्घा गिरिचारिणः। प्राद्रवन्त रणे भीता गिरिगह्वरवासिनः।। | 5-93-48a 5-93-48b |
गजाश्वसादिम्लेच्छानां पतितानां शितैः शरैः। बकाः कङ्का वृका भूमावपिबन्रुधिरं मुदा।। | 5-93-49a 5-93-49b |
पत्त्यश्वरथनागैश्च प्रच्छन्नकृतसङ्क्रमाम्। शरवर्षप्लवां घोरां केशशैवलशाद्वलाम्। प्रावर्तयन्नदीमुग्रां शोणितौघतरङ्गिणीम्।। | 5-93-50a 5-93-50b 5-93-50c |
छिन्नाङ्गुलीक्षुद्रमत्स्यां युगान्ते कालसन्निभाम्। प्राकरोद्गजसम्बाधां नदीमुत्तरशोणिताम्।। | 5-93-51a 5-93-51b |
देहेभ्यो राजपुत्राणां नागाश्वरथसादिनाम्। यथा स्थलं च निम्नं च न स्याद्वर्षति वासवे। तथाऽऽसीत्पृथिवी सर्वा शोणितेन परिप्लुता।। | 5-93-52a 5-93-52b 5-93-52c |
षट्सहस्रान्हयान्वीरान्पुनर्दशशतान्वरान्। प्राहिणोन्मृत्युलोकाय क्षत्रियान्क्षत्रियर्षभः।। | 5-93-53a 5-93-53b |
शरैः सहस्रशो विद्धा विधिवत्कल्पिता द्विपाः। शेरते भूमिमासाद्य शैला वज्रहता इव।। | 5-93-54a 5-93-54b |
स वाजिरथमातङ्गान्निघ्नन्व्यचरदर्जुनः। प्रभिन्न इव मातङ्गो मृद्गन्नलवनं यथा।। | 5-93-55a 5-93-55b |
भुरिद्रुमलतागुल्मं शुष्केन्धनतृणोलपम्। निर्दहेदनलोऽरण्यं यथा वायुसमीरितः।। | 5-93-56a 5-93-56b |
सेनारण्यं तव तथा कृष्णानिलसमीरितः। शरार्चिरदहत्क्रुद्धः पाण्डवोऽग्निर्धनञ्जयः।। | 5-93-57a 5-93-57b |
शून्यान्कुर्वन्रथोपस्थान्मानवैः संस्तरन्महीम्। प्रानृत्यदिव सम्बाधे चापहस्तो धनञ्जयः। वज्रकल्पैः शरैर्भूमिं कुर्वन्नुत्तरशोणिताम्।। | 5-93-58a 5-93-58b 5-93-58c |
`ततः प्रावर्तत नदी शोणितौघतरङ्गिणी। नराश्वद्विपकायेभ्यः पर्वतेभ्य इवापगा।। | 5-93-59a 5-93-59b |
अस्थिशर्करसम्बाधा ध्वजवृक्षा रथहदा। सञ्छिन्नशीर्षपाणाणा हस्तिहस्तमहाग्रहा।। | 5-93-60a 5-93-60b |
मांसमज्जास्थिपङ्काढ्यां हताश्वमकराकुला। उष्णीषफेनसञ्छन्ना शरघोरझषाकुला।। | 5-93-61a 5-93-61b |
रुद्रस्याक्रीडसदृशीं भूमिं कुर्वन्विभीषणाम्'। प्राविशद्भारतीं सेनां सङ्क्रुद्धो वै धनञ्जयः।। | 5-93-62a 5-93-62b |
तं श्रुतायुस्तथाम्बष्ठो व्रजमानं न्यवारयत्।। | 5-93-63a |
तस्यार्जुनः शरैस्तीक्ष्णैः कङ्कपत्रपरिच्छदैः। न्यपातयद्धयाञ्शीघ्रं यतमानस्य मारिष। धनुश्चास्यापरैश्छित्त्वा शरैः पार्थो विचक्रमे।। | 5-93-64a 5-93-64b 5-93-64c |
अम्बष्ठस्तु गदां गृह्य क्रोधपर्याकुलेक्षणः। आससाद रणे पार्थं केशवं च महारथम्।। | 5-93-65a 5-93-65b |
ततः सम्प्रहरन्वीरो गदामुद्यम्य भारत। रथमावार्य गदया केशवं समताडयत्।। | 5-93-66a 5-93-66b |
गदया ताडितं दृष्ट्वा केशवं परवीरहा। अर्जुनोऽथ भृशं क्रुद्धः सोऽम्बष्ठं प्रति भारत।। | 5-93-67a 5-93-67b |
ततः शरैर्हेमपुङ्खैः सगदं रथिनां वरम्। छादयामास समरे मेघः सूर्यमिवोदितम्।। | 5-93-68a 5-93-68b |
अथापरैः शरैश्चापि गदां तस्य महात्मनः। अचूर्णयत्तदा पार्थस्तिदद्भुतमिवाभवत्।। | 5-93-69a 5-93-69b |
अथ तां पतितां दृष्ट्वा गृह्यान्यां च महागदाम्। अर्जुनं वासुदेवं च पुनः पुनरताडयत्।। | 5-93-70a 5-93-70b |
तस्यार्जुनः क्षुरप्राभ्यां सगदावुद्यतौ भुजौ। चिच्छेदेन्द्रध्वजाकारौ शिरश्चान्येन पत्रिणा।। | 5-93-71a 5-93-71b |
स पपात हतो राजन्वसुधामनुनादयन्। इन्द्रध्वज इवोत्सृष्टो यन्त्रनिर्मुक्तबन्धनः।। | 5-93-72a 5-93-72b |
अम्बष्ठे तु तदा भग्ने तव सैन्यमभज्यत।। | 5-93-73a |
रथानीकावगाढश्च वारणाश्वशतैर्वृतः। अदृश्यत पदा पार्थो घनैः सूर्य इवावृतः।। | 5-93-74a 5-93-74b |
इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि चतुर्धशदिवसयुद्धे त्रिनवतितमोऽध्यायः।। 93 ।। |
5-93-43 गोयोनिप्रभवा नन्दिन्यां जाताः।। 5-93-46 सृष्टिः संसृष्टिः।। 5-93-47 जटिलाननान् जटिलानि रूढश्मश्रूण्याननानि येषाम्।। 5-93-50 प्रच्छन्नेन प्रच्छादनेन कृतो रचितः सङ्कमो यस्याम्।। 5-93-51 उत्तरशोणित्तां शोणितप्रधानाम्।। 5-93-53 हयान् अश्वारोहान्।। 5-93-93 त्रिनवतितमोऽध्यायः।।
द्रोणपर्व-092 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-094 |