महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-095
दिखावट
← द्रोणपर्व-094 | महाभारतम् सप्तमपर्व महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-095 वेदव्यासः |
द्रोणपर्व-096 → |
|
राज्ञां द्वन्द्वीभूय युद्धाय समागमः।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 5-95-1x |
प्रविष्टयोर्महाराज पार्थवार्ष्णेययो रणे। दुर्योधने प्रयाते च पृष्ठतः पुरुषर्षभे।। | 5-95-1a 5-95-1b |
जवेनाभ्यद्रवन्द्रोणं महता निःस्वनेन च। पाण्डवाः सोमकैः सार्धं ततो युद्धमवर्तत।। | 5-95-2a 5-95-2b |
तद्युद्धमभवत्तीव्रं तुमुलं रोमहर्षणम्। कुरूणां पाण्डवानां च व्यूहस्य पुरतोऽद्भुतम्।। | 5-95-3a 5-95-3b |
राजन्कदाचिन्नास्माभिर्दृष्टं तादृङ्क च श्रुतम्। यादृङ्मध्यगते सूर्ये युद्धमासीद्विशाम्पते।। | 5-95-4a 5-95-4b |
धृष्टद्युम्नमुखाः पार्था व्यूढानीकाः प्रहारिणः। द्रोणस्य सैन्यं ते सर्वे शरवर्षैरवाकिरन्।। | 5-95-5a 5-95-5b |
वयं द्रोणं पुरस्कृत्य सर्वशस्त्रभृतां वरम्। पार्षतप्रमुखान्पार्थानभ्यवर्षाम सायकैः।। | 5-95-6a 5-95-6b |
महामेघाविवोदीर्णौ मिश्रवातौ हिमात्यये। सेनाग्रे प्रचकाशेते रुचिरे रथभूषिते।। | 5-95-7a 5-95-7b |
समेत्य तु महासेने चक्रतुर्वेगमुत्तमम्। जाह्नवीयमुने नद्यौ प्रावृषीवोल्बणोदके।। | 5-95-8a 5-95-8b |
नानाशस्त्रपुरोवातो द्विपाश्वरथसंवृतः। गदाविद्युन्महारौद्रः सङ्ग्रामजलदो महान्।। | 5-95-9a 5-95-9b |
भारद्वाजानिलोद्भूतः शरधारासहस्रवान्। अभ्यवर्षन्महारौद्रं पाण्डुसेनाग्निमुद्धतम्।। | 5-95-10a 5-95-10b |
समुद्रमिव घर्मान्ते विशन्घोरो महानिलः। व्यक्षोभयदनीकानि पाण्डवानां द्विजोत्तमः।। | 5-95-11a 5-95-11b |
तेऽपि सर्वप्रयत्नेन द्रोणमेव समाद्रवन्। बिभित्सन्तो महासेतुं वार्योघाः प्रबला इव।। | 5-95-12a 5-95-12b |
वारयामास तान्द्रोणो जलौघमचलो यथा। पाण्डवान्समरे क्रुद्धान्पाञ्चालांश्च सकेकयान्।। | 5-95-13a 5-95-13b |
अथापरे च राजानः परिवृत्य समन्ततः। महाबला रणे शूराः पाञ्चालानन्ववारयन्।। | 5-95-14a 5-95-14b |
ततो रणे नरव्याघ्रः पार्षतः पाण्डवैः सह। सञ्जघानासकृद्द्रोणं बिभित्सुररिवाहिनीम्।। | 5-95-15a 5-95-15b |
यथैव शरवर्षाणि द्रोणो वर्षति पार्षते। तथैव शरवर्षाणि धृष्टद्युम्नोऽप्यवर्षत।। | 5-95-16a 5-95-16b |
सनिस्त्रिंशपुरोवातः शक्तिप्रासर्ष्टिसंवृतः। ज्याविद्युच्चापसंहादो धृष्टद्युम्नबलाहकः।। | 5-95-17a 5-95-17b |
शरधाराश्मवर्षाणि व्यसृजत्सर्वतो दिशम्। निघ्नन्रथवराश्वौघान्प्लावयामास वाहिनीम्।। | 5-95-18a 5-95-18b |
यंयमार्च्छच्छरैर्द्रोणः पाण्डवानां रथव्रजम्। ततस्ततः शरैर्द्रोणमपाकर्षत पार्षतः।। | 5-95-19a 5-95-19b |
तथा तु यतमानस्य द्रोणस्य युधि भारत। धृष्टद्युम्नं समासाद्य त्रिधा सैन्यमभिद्यत।। | 5-95-20a 5-95-20b |
भोजमेकेऽभ्यवर्तन्त जलसन्धं तथाऽपरे। पाण्डवैर्हन्यमानाश्च द्रोणमेवापरे ययुः।। | 5-95-21a 5-95-21b |
सङ्घट्टयति सैन्यानि द्रोणस्तु रथिनां वरः। व्यधमच्चापि तान्यस्य धृष्टद्युम्नो महारथः।। | 5-95-22a 5-95-22b |
धार्तराष्ट्रास्तथा भूता वध्यन्ते पाण्डुसृञ्जयैः। अगोपाः पशवोऽरण्ये बहुभिः श्वापदैरिव।। | 5-95-23a 5-95-23b |
कालः स्म ग्रसते योधान्धृष्टद्युम्नेन मोहितान्। सङ्ग्रामे तुमुले तस्मिन्निति सम्मेनिरे जनाः।। | 5-95-24a 5-95-24b |
कुनृपस्य यथा राष्ट्रं दुर्भिक्षव्याधितस्करैः। द्राव्यते तद्वदापन्ना पाण्डवैस्तव वाहिनी।। | 5-95-25a 5-95-25b |
अर्करश्मिविमिश्रेषु शस्त्रेषु कवचेषु च। चक्षूंषि प्रत्यहन्यन्त सैन्येन रजसा तथा।। | 5-95-26a 5-95-26b |
त्रिधा भूतेषु सैन्येषु वध्यमानेषु पाण्डवैः। अमर्षितस्ततो द्रोणः पाञ्चालान्व्यधमच्छरैः।। | 5-95-27a 5-95-27b |
मृद्गतस्तान्यनीकानि निघ्नतश्चापि सायकैः। बभूव रूपं द्रोणस्य कालाग्नेरिव दीप्यतः।। | 5-95-28a 5-95-28b |
रथं नागं हयं चापि पत्तिनश्च विशाम्पते। एकैकेनेषुणा सङ्ख्ये निर्बिभेद महारथः।। | 5-95-29a 5-95-29b |
पाण्डवानां तु सैन्येषु नास्ति कश्चित्स भारत। दधार यो रणे बाणान्द्रोणचापच्युतान्प्रभो।। | 5-95-30a 5-95-30b |
तत्पच्यमानमर्केण द्रोणसायकतापितम्। बभ्राम पार्षतं सैन्यं तत्रतत्रैव भारत।। | 5-95-31a 5-95-31b |
`हन्यमानं तु तत्सैन्यं भारद्वाजेन सर्वतः। शरैरग्निशिखाकारैर्दह्यते भरतर्षभ'।। | 5-95-32a 5-95-32b |
तथैव पार्षतेनापि काल्यमानं बलं तव। अभवत्सर्वतो दीप्तं शुष्कं वनमिवाग्निना।। | 5-95-33a 5-95-33b |
बाध्यमानेषु सैन्येषु द्रोणपार्षतसायकैः। त्यक्त्वा प्राणान्परं शक्त्या युध्यन्ते स्वर्गलिप्सवः।। | 5-95-34a 5-95-34b |
तावकानां परेषां च युध्यतां भरतर्षभ। नासीत्कश्चिन्महाराज योऽत्याक्षीत्संयुगं भयात्।। | 5-95-35a 5-95-35b |
भीमसेनं तु कौन्तेयं सोदर्याः पर्यवारयन्। विविंशतिश्चित्रसेनो विकर्णश्च महारथः।। | 5-95-36a 5-95-36b |
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ क्षेमधूर्तिश्च वीर्यवान्। त्रयाणां तव पुत्राणां त्रय एवानुयायिनः।। | 5-95-37a 5-95-37b |
बाह्लीकराजस्तेजस्वी कुलपुत्रो महारथः। सहसेनः सहामात्यो द्रौपदेयानवारयत्।। | 5-95-38a 5-95-38b |
शैब्यो गोवासनो राजा योधैर्दशशतावरैः। काश्यस्याभिभुवः पुत्रं पराक्रान्तमवारयत्।। | 5-95-39a 5-95-39b |
अजातशत्रुं कौन्तेयं ज्वलन्तमिव पावकम्। मद्राणामीश्वरः शल्यो राजा राजानमावृणोत्। | 5-95-40a 5-95-40b |
दुःशासनस्त्ववस्थाप्य स्वमनीकममर्षणः। सात्यकिं प्रययौ क्रुद्धः शूरो रथवरं युधि।। | 5-95-41a 5-95-41b |
स्वकेनाहमनीकेन सन्नद्धः कवचावृतः। चतुःशतैर्महेष्वासैश्चेकितानमवारयम्।। | 5-95-42a 5-95-42b |
शकुनिस्तु सहानीको माद्रीपुत्राववारयत्। गान्धारकैः सप्तशतैश्चापशक्त्यसिपाणिभिः।। | 5-95-43a 5-95-43b |
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ विराटं मत्स्यमार्च्छताम्। प्राणांस्तक्त्वा महेष्वासौ मित्रार्थेऽभ्युद्यतायुधौ।। | 5-95-44a 5-95-44b |
शिखण्डिनं याज्ञसेनिं रुन्धानमपराजितम्। बाह्लीकः प्रतिसंयत्तः पराक्रान्तमवारयत्।। | 5-95-45a 5-95-45b |
धृष्टद्युम्नं तु पाञ्चाल्यं क्रूरैः सार्धं प्रभद्रकैः। आवन्त्यः सहसौवीरैः क्रुद्धरूपमवारयत्।। | 5-95-46a 5-95-46b |
घटोत्कचं तथा शूरं राक्षसं क्रूरकर्मिणम्। अलामुधोऽद्रवत्तूर्णं क्रुद्धमायान्तमाहवे।। | 5-95-47a 5-95-47b |
अलम्बुसं राक्षसेन्द्रं कुन्तिभोजो महारथः। सैन्येन महता युक्तः क्रुद्धरूपमवारयत्।। | 5-95-48a 5-95-48b |
सैन्धवः पृष्ठतस्त्वासीत्सर्वसैन्यस्य भारत। रक्षितः परमेष्वासैः कृपप्रभृतिभी रथैः।। | 5-95-49a 5-95-49b |
तस्यास्तां चक्ररक्षौ द्वौ सैन्धवस्य बृहत्तमौ। द्रौणिर्दक्षिणतो राजन्सूतपुत्रश्च वामतः।। | 5-95-50a 5-95-50b |
पृष्ठगोपास्तु तस्यासन्सौमदत्तिपुरोगमाः। कृपश्च वृषसेनश्च शलः शल्यश्च दुर्जयः।। | 5-95-51a 5-95-51b |
नीतिमन्तो महेष्वासाः सर्वे युद्धविशारदाः। सैन्धवस्य विधायैवं रक्षां युयुधिरे ततः।। | 5-95-52a 5-95-52b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि चतुर्दशदिवसयुद्धे पञ्चनवतितमोऽध्यायः।। 95 ।। |
5-95-7 हिमात्यये शिशिरे। सेनाग्रे प्रधाने सेने।। 5-95-18 प्लावयामास विद्रावितवान्।। 5-95-19 अपाकर्षत व्यावर्तितवान्।। 5-95-22 सङ्घट्टयति सम्मेलयति।। 5-95-39 काश्यस्य काशिराजस्य।। 5-95-46 आवन्त्योऽन्यः।। 5-95-95 पञ्चनवतितमोऽध्यायः।।
द्रोणपर्व-094 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-096 |