महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-096
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राज्ञां द्वन्द्वयुद्धवर्णनम्।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 5-96-1x |
राजन्सङ्ग्राममाश्चर्यं शृणु कीर्तयतो मम। कुरूणां पाण्डवानां च यथा युद्धमवर्तत।। | 5-96-1a 5-96-1b |
भारद्वाजं समासाद्य व्यूहस्य प्रमुखे स्थितम्। अयोधयन्रणे पार्था द्रोणानीकं बिभित्सवः।। | 5-96-2a 5-96-2b |
रक्षमाणः स्वथं व्यूहं द्रोणोऽपि सह सैनिकैः। अयोधयद्रणे पार्थान्प्रार्थयानो महद्यशः।। | 5-96-3a 5-96-3b |
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ विराटं दशभिः शरैः। अयोधयद्रणे पार्थान्प्रार्थयानो महद्यशः।। | 5-96-4a 5-96-4b |
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ विराटं दशभिः शरैः। पराक्रान्तौ पराक्रम्य योधयामास सानुगौ।। | 5-96-5a 5-96-5b |
तेषां युद्धं समभवद्दारुणं शोणितोदकम्। सिंहस्य द्विपमुख्याभ्यां प्रभिन्नाभ्यां यथा वने।। | 5-96-6a 5-96-6b |
बाह्लीकं रभसं युद्धे याज्ञसेनिर्महाबलः। आजघ्ने विशिखैस्तीक्ष्णैर्घोरैर्मर्मास्थिभेदिभिः।। | 5-96-7a 5-96-7b |
बाह्लीको याज्ञसेनिं तु हेमपुङ्खैः शिलाशितैः। आजघान भृशं क्रुद्धो नवभिर्नतपर्वभिः।। | 5-96-8a 5-96-8b |
तद्युद्धमभवद्धोरं शरशक्तिसमाकुलम्। भीरूणां त्रासजननं शूराणां हर्षवर्धनम्।। | 5-96-9a 5-96-9b |
ताभ्यां तत्र शरैर्मुक्तैरन्तरिक्षं दिशस्तथा। अभवत्संवृतं सर्वं न प्राज्ञायत किञ्चन।। | 5-96-10a 5-96-10b |
शैब्यो गोवासनो युद्धे काश्यपुत्रं महारथम्। ससैन्यो योधयामास गजः प्रतिगजं यथा।। | 5-96-11a 5-96-11b |
बाह्लीकराजः सङ्क्रुद्धो द्रौपदेयान्महारथान्। मनः पञ्चेन्द्रियाणीव शुशुभे योधयन्रणे।। | 5-96-12a 5-96-12b |
अयोधयंस्ते सुभृशं तं शरौघैः समन्ततः। इन्द्रियाणि यथा देहं शश्वद्देहवतां वर।। | 5-96-13a 5-96-13b |
वार्ष्णेयं सात्यकिं युद्धे पुत्रो दुःशासनस्तव। आजघ्ने सायकैस्तीक्ष्णैर्नवभिर्नतपर्वभिः।। | 5-96-14a 5-96-14b |
सोऽतिविद्धो बलवता महेष्वासेन धन्विना। ईषन्मूर्च्छां जगामाशु सात्यकिः सत्यविक्रमः।। | 5-96-15a 5-96-15b |
समाश्वस्तस्तु वार्ष्णेयस्तव पुत्रं महारथम्। विव्याध दशभिस्तूर्णं सायकैः कङ्कपत्रिभिः।। | 5-96-16a 5-96-16b |
तावन्योन्यं दृढं विद्धावन्योन्यशरपीडितौ। रजेतुः समरे राजन्पुष्पिताविव किंशुकौ।। | 5-96-17a 5-96-17b |
अलम्बुसस्तु सङ्क्रुद्धः कृन्तिभोजशरार्दितः। अशोभत भृशं लक्ष्म्या पुष्पाढ्य इव किंशुकः।। | 5-96-18a 5-96-18b |
कुन्तिभोजं ततो रक्षो विद्ध्वा बहुभिरायसैः। अनदद्भैरवं नादं वाहिन्याः प्रमुखे तव।। | 5-96-19a 5-96-19b |
ततस्तौ समरे शूरौ योधयन्तौ परस्परम्। ददृशुः सर्वसैन्यानि शक्रजम्भौ यथा पुरा।। | 5-96-20a 5-96-20b |
शकुनिं रभसं युद्धे कृतवैरं च भारत। माद्रीपुत्रौ च संरब्धौ शरैश्चार्दयतां भृशम्।। | 5-96-21a 5-96-21b |
तुमुलः स महान्राजन्प्रावर्तत जनक्षयः। त्वया सञ्जनितोऽत्यर्थं कर्णेन च विवर्धितः।। | 5-96-22a 5-96-22b |
रक्षितस्तव पुत्रैश्च क्रोधमूलो हुताशनः। य इमां पृथिवीं राजन्दग्धुं सर्वां समुद्यतः।। | 5-96-23a 5-96-23b |
शकुनिः पाण्डुपुत्राभ्यां कृतः स विमुखः शरैः। न स्म जानाति कर्तव्यं युद्धे किञ्चित्पराक्रमम्।। | 5-96-24a 5-96-24b |
विमुखं चैनमालोक्य माद्रीपुत्रौ महारथौ। ववर्षतुः पुनर्बाणैर्यथा मेघौ महागिरिम्।। | 5-96-25a 5-96-25b |
स वध्यमानो बहुभिः शरैः सन्नतपर्वभिः। सम्प्रायाज्जवनैरश्वैर्द्रोणानीकाय सौबलः।। | 5-96-26a 5-96-26b |
घटोत्कचस्तथा शूरं राक्षसं तमलामुधम्। अभ्ययाद्रभसं युद्धे वेगमास्थाय मध्यमम्।। | 5-96-27a 5-96-27b |
तयोर्युद्धं महाराज चित्ररूपमिवाभवत्। यादृशं हि पुरावृत्तं रामरावणयोर्मृधे।। | 5-96-28a 5-96-28b |
ततो युधिष्ठिरो राजा मद्रराजानमाहवे। विद्ध्वा पञ्चाशता बाणैः पुनर्विव्याध सप्तभिः।। | 5-96-29a 5-96-29b |
ततः प्रववृते युद्धं तयोरत्यद्भुतं नृप। यथा पूर्वं महद्युद्धं शम्बरामरराजयोः।। | 5-96-30a 5-96-30b |
विविंशतिश्चित्रसेनो विकर्णश्च तवात्मजः। अयोधयन्भीमसेनं महत्या सेनया वृताः।। | 5-96-31a 5-96-31b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि चतुर्दशदिवसयुद्धे षण्णवतितमोऽध्यायः।। 96 ।। |
5-96-23 हुताशनः प्रावर्ततेत्यनुषज्यते।। 5-96-96 षण्णवतितमोऽध्यायः।।
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