महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-156
दिखावट
← द्रोणपर्व-155 | महाभारतम् सप्तमपर्व महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-156 वेदव्यासः |
द्रोणपर्व-157 → |
|
भीमेन दुर्मददुष्कर्णादिवधः।। 1 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-156-1x |
तस्मिन्प्रविष्टे दुर्धर्षे सृञ्जयानमितौजसि। अमृष्यमाणे संरब्धे का वोऽभूद्वै मतिस्तदा।। | 5-156-1a 5-156-1b |
दुर्योधनं तथा पुत्रमुक्त्वा शास्त्रातिगं मम। यत्प्राविशदमेयात्मा किं पार्थः प्रत्यपद्यत।। | 5-156-2a 5-156-2b |
निहते सैन्धवे वीरे भूरिश्रवसि चैव ह। यदाऽभ्यगान्महातेजाः पाञ्चालानपराजितः।। | 5-156-3a 5-156-3b |
किममन्यत दुर्धर्षे प्रविष्टे शत्रुतापने। दुर्योधनस्तु किं कृत्यं प्राप्तकालममन्यत।। | 5-156-4a 5-156-4b |
के च तं वरदं वीरमन्वयुर्द्विजसत्तमम्। के चास्य पृष्ठतोऽगच्छन्वीराः शूरस्य युध्यतः। के पुरस्तादवर्तन्त निघ्नन्तः शास्त्रवान्रणे।। | 5-156-5a 5-156-5b 5-156-5c |
मन्येऽहं पाण्डवान्सर्वान्भारद्वाजशरार्दितान्। शिशिरे कम्पमाना वै कृशा गाव इव प्रभो।। | 5-156-6a 5-156-6b |
प्रविश्य स महेष्वासः पाञ्चालानरिमर्दनः। कथं नु पुरुषव्याघ्रः पञ्चत्वमुपजग्मिवान्।। | 5-156-7a 5-156-7b |
सर्वेषु योधेषु च सङ्गतेषु रात्रौ समेतेषु महारथेषु। संलोड्यमानेषु पृथग्बलेषु के वस्तदानीं मतिमन्त आसन्।। | 5-156-8a 5-156-8b 5-156-8c 5-156-8d |
हतांश्चैव विषक्तांश्च पराभूतांश्च शंससि। रथिनो विरथांश्चैव कृतान्युद्धेषु मामकान्।। तेषां संलोड्यमानानां पाण्डवैर्हतचेतसाम्। अन्धे तमसि मग्नानामभवत्का मतिस्तदा।। | 5-156-9a 5-156-9b 5-156-10 5-156-10b |
प्रहृष्टांश्चाप्युदग्रांश्च सन्तुष्टांश्चैव पाण्डवान्। शंससीहाप्रहृष्टांश्च विभ्रष्टांश्चैव मामकान्।। | 5-156-11a 5-156-11b |
कथमेषां तदा तत्र पार्थानामपलायिनाम्। प्रकाशमभवद्रात्रौ कथं कुरुषु सञ्जय।। | 5-156-12a 5-156-12b |
सञ्जय उवाच। | 5-156-13x |
रात्रियुद्धे तदा राजन्वर्तमाने सुदारुणे। द्रोणमभ्यद्रवन्सर्वे पाण्डवाः सह सोमकैः।। | 5-156-13a 5-156-13b |
ततो द्रोणः केकयांश्च धृष्टद्युम्नस्य चात्मजान्। सम्प्रैषयत्प्रेतलोकं सर्वानिषुभिराशुगैः।। | 5-156-14a 5-156-14b |
तस्य प्रमुखतो राजन्येऽवर्तन्त महारथाः। तान्सर्वान्प्रेषयामास पितृलोकं स भारत।। | 5-156-15a 5-156-15b |
प्रमथ्नन्तं तदा वीरान्भारद्वाजं महारथम्। अभ्यवर्तत सङ्क्रुद्धः शिबी राजा प्रतापवान्।। | 5-156-16a 5-156-16b |
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य पाण्डवानां महारथम्। विव्याध दशभिर्द्रोणः सर्वपारशवैः शितैः।। | 5-156-17a 5-156-17b |
तं शिबिः प्रतिविव्याध त्रिंशता निशितैः शरैः। सारथिं चास्य भुल्लेन स्मयमानो न्यपातयत्।। | 5-156-18a 5-156-18b |
तस्य द्रोणो हयान्हत्वा सारथिं च महात्मनः। अथाऽस्य सशिरस्त्राणं शिरः कायादपाहरत्।। | 5-156-19a 5-156-19b |
ततोऽस्य सारथिं क्षिप्रमन्यं दुर्योधनोऽदिशत्। स तेन सङ्गृहीताश्वः पुनरभ्यद्रवद्रिपून्।। | 5-156-20a 5-156-20b |
कलिङ्गानामनीकेन कालिङ्गस्य सुतो रणे। पूर्वं पितृवधात्क्रुद्धौ भीमसेनमुपाद्रवत्।। | 5-156-21a 5-156-21b |
स भीमं पञ्चभिर्विद्ध्वा पुनर्विव्याध सप्तभिः। विशोकं त्रिभिरानर्च्छद्वजमेकेन पत्रिणा।। | 5-156-22a 5-156-22b |
कलिङ्गानां तु तं शूरं क्रुद्धं क्रुद्धो वृकोदरः। रथाद्रथमभिद्रुत्य मुष्टिनाऽभिजघान ह।। | 5-156-23a 5-156-23b |
तस्य मुष्टिहतस्याजौ पाण्डवेन बलीयसा। सर्वाण्यस्थीनि सहसा प्रापतन्वै पृथक्पृथक्।। | 5-156-24a 5-156-24b |
`तस्मिन्हते तदा तेन सिंहनादो महानभूत्। पाञ्चालानां महाराज साधुसाध्विति पाण्डवम्'।। | 5-156-25a 5-156-25b |
तं कर्णो भ्रातरश्चास्य नामृष्यन्त परन्तप। ते भीमसेनं नाराचैर्जघ्नुराशीविषोपमैः।। | 5-156-26a 5-156-26b |
ततः शत्रुरथं त्यक्त्वा भीमो द्रुमरथं गतः। द्रुमं चास्यन्तमनिशं मुष्टिना समपोथयत्।। | 5-156-27a 5-156-27b |
`यथा काचमणिर्न्यस्तो मुष्टिनैकेन लीलया। स हतः सर्वथा चूर्णो रक्तमेवोदपद्यत।। | 5-156-28a 5-156-28b |
तथा चूर्णमभूत्तत्र कर्णभ्राता द्रुमस्तथा'। स तदा पाण्डुपुत्रेण बलिनाऽभिहतोऽपतत्।। | 5-156-29a 5-156-29b |
तं निहत्य महाराज भीमसेनो महाबलः। जयरातरथं प्राप्य मुहुः सिंह इवानदत्।। | 5-156-30a 5-156-30b |
जयरातं तु चरणे गृह्य भीमो महाबलः। सूतं चास्य महाबाहुर्गृह्य राजंस्तथैव च।। | 5-156-31a 5-156-31b |
पादयोर्गृह्य तौ वीरौ भीमः कर्णस्य पश्यतः। भूमावाविद्ध्य जघ्ने स तौ च प्राणैर्व्ययुज्यताम्।। | 5-156-32a 5-156-32b |
कर्णस्तु पाण्डवे शक्तिं काञ्चनीं समवासृजत्। ततस्तामेव जग्राह प्रहसन्पाण्डुनन्दनः।। | 5-156-33a 5-156-33b |
कर्णायैव च दुर्धर्षश्चिक्षेपाजौ वृकोदरः। तामापतन्तीं चिच्छेद शकुनिस्तैलपायिना।। | 5-156-34a 5-156-34b |
एतत्कृत्वा महत्कर्म रणेऽद्भुतपराक्रमः। पुनः स्वरथमास्थाय दुद्राव तव वाहिनीम्।। | 5-156-35a 5-156-35b |
तमायान्तं जिघांसन्तं भीमं क्रुद्धमिवान्तकम्। न्यवारयन्महाबाहुं तव पुत्रा विशाम्पते। महता शरवर्षेण च्छादयन्तो महारथाः।। | 5-156-36a 5-156-36b 5-156-36c |
दुर्मदस्य ततो भीमः प्रहसन्निव संयुगे। सारथिं च हयांश्चैव शरैर्निन्ये यमक्षयम्।। | 5-156-37a 5-156-37b |
दुर्मदस्तु ततो यानं दुष्कर्णस्यावचक्रमे। तावेकरथमारूढौ भ्रातरौ परतापनौ। | 5-156-38a 5-156-38b |
सङ्ग्रामशिरसो मध्ये भीमं द्वावप्यधावताम्। यथाम्बुपतिमित्रौ हि तारकं दैत्यसत्तमम्।। | 5-156-39a 5-156-39b |
ततस्तु दुर्मदश्चैव दुष्कर्णश्च तवात्मजौ। रथमेकं समारुह्य भीमं बाणैरविध्यताम्।। | 5-156-40a 5-156-40b |
ततः कर्णस्य मिषतो द्रौणेर्दुर्योधनस्य च। कृपस्य सोमदत्तस्य बाह्लीकस्य च पाण्डवः।। | 5-156-41a 5-156-41b |
दुर्मदस्य च वीरस्य दुष्कर्णस्य च तं रथम्। पादप्रहारेण धरां प्रावेशयदरिन्दमः।। | 5-156-42a 5-156-42b |
ततः सुतौ ते बलिनौ शूरौ दुष्कर्णदुर्मदौ। मुष्टिनाऽऽहत्य सङ्क्रुद्धौ ममर्द चरणेन ह।। | 5-156-43a 5-156-43b |
ततो हाहाकृते सैन्ये दृष्ट्वा भीमं नृपाऽब्रुवन्। रुद्रोऽयं भीमरूपेण धार्तराष्ट्रेषु युध्यति।। | 5-156-44a 5-156-44b |
एवमुक्त्वा पलायन्ते सर्वे भारत पार्थिवाः। विसंज्ञा वाहयन्वाहान्न च द्वौ सह धावतः।। | 5-156-45a 5-156-45b |
ततो बले भृशलुलिते निशामुखे सुपूजितो नृपवृषभैर्वृकोदरः। महाबलः कमलविबुद्धलोचनो युधिष्ठिरं नृपतिमपूजयद्बली।। | 5-156-46a 5-156-46b 5-156-46c 5-156-46d |
ततो यमौ द्रुपदविराटकेकया युधिष्ठिरश्चापि परां मुदं ययुः। वृकोदरं भृशमनुपूजयंश्च ते यथान्धके प्रतिनिहते हरं सुराः।। | 5-156-47a 5-156-47b 5-156-47c 5-156-47d |
ततः सुतास्ते वरुणात्मजोपमा रुपान्विताः सह गुरुणा महात्मना। वृकोदरं सरथपदातिकुञ्जरा युयुत्सवो भृशमभिपर्यवारयन्।। | 5-156-48a 5-156-48b 5-156-48c 5-156-48d |
`ततो यमौ द्रुपदसुताः ससैनिका युधिष्ठिरद्रुपदविराटसात्वताः। घटोत्कचो जयविजयौ द्रुमो वृकः ससृञ्जयास्तव तनयानवारयन्'।। | 5-156-49a 5-156-49b 5-156-49c 5-156-49d |
ततोऽभवत्तिमिरघनैरिवावृते महाभये भयदमतीव दारुणम्। निशामुखे वृकबलगृध्रमोदनं महात्मना नृपवर युद्धमद्भुतम्।। | 5-156-50a 5-156-50b 5-156-50c 5-156-50d |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि घटोत्कचवधपर्वणि चतुर्दशरात्रियुद्धे षट्पञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः।। 156 ।। |
5-156-1 गावः गाः।। 5-156- कमलविबुद्धलोचनो विलसत्पद्मनेत्रः।। 5-156- गुरुणा द्रोणेन।। 5-156- तिमिराण्येव घनास्तैः।। 5-156- षट्पञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः।। 156 ।।
द्रोणपर्व-155 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-157 |