महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-126
दिखावट
← द्रोणपर्व-125 | महाभारतम् सप्तमपर्व महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-126 वेदव्यासः |
द्रोणपर्व-127 → |
|
अर्जुनवृत्तान्तपरिज्ञानाय सात्यकिं प्रेषितवता युधिष्ठिरेण पुनस्तयोर्वृत्तान्तपरिज्ञानाय भीमसेनस्य तत्र गमनचोदना।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 5-126-1x |
व्यूहेष्वालोड्यमानेषु पाण्डवानां ततस्ततः। सुदूरमन्वयुः पार्थाः पाञ्चालाः सह सोमकैः।। | 5-126-1a 5-126-1b |
वर्तमाने तथा रौद्रे सङ्ग्रामे रोमहर्षणे। सङ्क्षये जगतस्तीव्रे युगान्त इव भारत।। | 5-126-2a 5-126-2b |
द्रोणे युधि पराक्रान्ते नर्दमाने मुहुर्मुहुः। पाञ्चालेषु च क्षीणेषु वध्यमानेषु पाण्डुषु।। | 5-126-3a 5-126-3b |
नापश्यच्छरणं कञ्चिद्वर्मराजो युधिष्ठिरः। चिन्तयामास राजेन्द्र कथमेतद्भविष्यति।। | 5-126-4a 5-126-4b |
ततो विक्ष्य दिशः सर्वाः सव्यसाचिदिदृक्षया। युधिष्ठिरो ददर्शाथ नैव पार्थं न माधवम्।। | 5-126-5a 5-126-5b |
सोऽपश्यन्नरशार्दूलं वानरर्षभलक्षणम्। गाण्डीवस्य च निर्घोषमशृण्वन्व्यथितेन्द्रियः।। | 5-126-6a 5-126-6b |
अपश्यन्सात्यकिं चापि वृष्णीनां प्रवरं रथम्। चिन्तयाभिपरीताङ्गो धर्मराजो युधिष्ठिरः। नाध्यगच्छत्तदा शान्ति तावपश्यन्नरोत्तमौ।। | 5-126-7a 5-126-7b 5-126-7c |
लोकोपक्रोशभीरुत्वाद्वर्मराजो महामनाः। अचिन्तयन्महाबाहुः शैनेयस्य रथं प्रति।। | 5-126-8a 5-126-8b |
पदवीं प्रेषितश्चैव फल्गुनस्य मया रणे। शैनेयः सात्यकिः सत्यो मित्राणामभयङ्करः।। | 5-126-9a 5-126-9b |
तदिदं ह्येकमेवासीद्द्द्विधा जातं ममाऽद्य वै। सात्यकिश्च हि विज्ञेयः पाण्डवश्च धनञ्जयः।। | 5-126-10a 5-126-10b |
सात्यकिं प्रेषयित्वा तु पाण्डवस्य पदानुगम्। सात्वतस्यापि कं युद्धे प्रेषयिष्ये पदानुगम्।। | 5-126-11a 5-126-11b |
परिष्यामि प्रयत्नेन भ्रातुरन्वेषणं यदि। युयुधानमनन्विष्य लोको मां गर्हयिष्यति।। | 5-126-12a 5-126-12b |
भ्रातुरन्वेषणं कृत्वा धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः। परित्यजति वार्ष्णेयं सात्यकिं सत्यविक्रमम्।। | 5-126-13a 5-126-13b |
लोकापवादभीरुत्वात्सोऽहं पार्थं वृकोदरम्। पदवीं प्रेषयिष्यामि माधवस्य महात्मनः।। | 5-126-14a 5-126-14b |
यथैव च मम प्रीतिरर्जुने शत्रुमूदने। तथैव वृष्णिवीरेऽपि सात्वते युद्धदुर्मदे।। | 5-126-15a 5-126-15b |
अतिभारे नियुक्तश्च मया शैनेयनन्दनः। स तु मित्रोपरोधेन गौरवात्तु महाबलः। प्रविष्टो भारतीं सेनां मकरः सागरं यथा।। | 5-126-16a 5-126-16b 5-126-16c |
असौ हि श्रूयते शब्दः शूराणामनिवर्तिनाम्। मिथः संयुध्यमानानं वृष्णिवीरेण धीमता।। | 5-126-17a 5-126-17b |
प्राप्तकालं सुबलवन्निश्चितं बहुधा हि मे। तत्रैव पाण्डवेयस्य भीमसेनस्य धन्विनः। गमनं रोचते मह्यं यत्र यातौ महारथौ।। | 5-126-18a 5-126-18b 5-126-18c |
न चाप्यसह्यं भीमस्य विद्यते भुवि किञ्चिन।। | 5-126-19a |
शक्तो ह्येष रणे यत्तः पृथिव्यां सर्वधन्विनाम्। स्वबाहुबलमास्थाय प्रतिव्यूहितुमञ्जसा।। | 5-126-20a 5-126-20b |
यस्य बाहुबलं सर्वे समाश्रित्य महात्मनः। वनवासान्निवृत्ताः स्म न च युद्धेषु निर्जिताः।। | 5-126-21a 5-126-21b |
इतो गते भीमसेने सात्वतं प्रति पाण्डवे। सनाथौ भवितारौ हि युधि सात्वतफल्गुनौ।। | 5-126-22a 5-126-22b |
कामं त्वशोचनीयौ तौ रणे सात्वतफल्गुनौ। रक्षितौ वासुदेवेन स्वयं शस्त्रविशारदौ।। | 5-126-23a 5-126-23b |
अवश्यं तु मया कार्यमात्मनः शोकनाशनम्। तस्माद्भीमं नियोक्ष्यामि सात्वतस्य पदानुगम्।। | 5-126-24a 5-126-24b |
ततः प्रतिकृतं मन्ये विधानं सात्यकिं प्रति।। एवं निश्चित्य मनसा धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः। | 5-126-25a 5-126-25b |
यन्तारमब्रवीद्राजा भीमं प्रति नयस्व माम्।। | 5-126-26a |
धर्मराजवचः श्रुत्वा सारथिर्हयकोविदः। रथं हेमपरिष्कारं भीमान्तिकमुपानयत्।। | 5-126-27a 5-126-27b |
भीमसेनमनुज्ञाप्य प्राप्तकालमचिन्तयत्। कश्मलं प्राविशद्राजा बहु तत्र समादिशत्।। | 5-126-28a 5-126-28b |
स कश्मलसमाविष्टो भीममाहूय पार्थिवः। अब्रवीद्वचनं राजन्कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। | 5-126-29a 5-126-29b |
अब्रवीद्वचनं राजन्कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।। यः सदेवान्सगन्धर्वान्दैत्यांश्चैकरथोऽजयत्। | 5-126-30a 5-126-30b |
तस्य लक्ष्म न पश्यामि भीमसेनानुजस्य ते।। | 5-126-31a |
सञ्जय उवाच। | 5-126-31x |
ततोऽब्रवीद्धर्मराजं भीमसेनस्तथागतम्। नैवाद्राक्षं नचाश्रौषं तव कश्मलमीदृशम्।। | 5-126-31b 5-126-31c |
पुरातिदुःखदीर्णानां भवान्गतिरभूद्धि नः। उत्तिष्ठोत्तिष्ठ राजेन्द्र शाधि किं करवाणि ते।। | 5-126-32a 5-126-32b |
न ह्यसाध्यमकार्यं वा विद्यते मम मानद। आज्ञापय कुरुश्रेष्ठ मा च शोके मनः कृथाः।। | 5-126-33a 5-126-33b |
सञ्जय उवाच। | 5-126-34x |
तमब्रवीदश्रुपूर्णः कृष्णसर्प इव श्वसन्। भीमसेनमिदं वाक्यं प्रम्लानवदनो नृपः।। | 5-126-34a 5-126-34b |
श्रूयते पाञ्चजन्यस्य यथा शङ्खस्य निस्वनः। पूरितो वासुदेवेन संरब्धेन यशस्विना।। | 5-126-35a 5-126-35b |
नूनमद्य हतः शेते तव भ्राता धनञ्जयः। तस्मिन्विनिहते नूनं युध्यतेऽसौ जनार्दनः।। | 5-126-36a 5-126-36b |
यस्य सत्ववतो वीर्यं ह्युपजीवन्ति पाण्डवाः। यं भयेष्वभिगच्छन्ति सहस्राक्षमिवामराः।। | 5-126-37a 5-126-37b |
स शूरः सैन्धवप्रेप्सुरन्वयाद्भारतीं चमूम्। तस्य वै गमनं विद्मो भीम नावर्तनं पुनः।। | 5-126-38a 5-126-38b |
श्यामो युवा गुडाकेशो दर्शनीयो महारथः। व्यूढोरस्को महाबाहुर्मत्तद्विरदविक्रमः।। | 5-126-39a 5-126-39b |
चकोरनेत्रस्ताम्रास्यो द्विषतां भयवर्धनः। `मम प्रियहितार्थं च शक्रलोकादिहागतः।। | 5-126-40a 5-126-40b |
वृद्धोपसेवी धृतिमान्कृतज्ञः सत्यसङ्गरः। प्रविष्टो महतीं सेनामपर्यन्तां धनञ्जयः।। | 5-126-41a 5-126-41b |
प्रविष्टे च चमूं घोरामर्जुने शत्रुनाशने। प्रेषितः सात्वतो वीरः फल्गुनस्य पदानुगः।। | 5-126-42a 5-126-42b |
तस्याभिगमनं जाने भीम नावर्तनं पुनः'। तदिदं मम भद्रं ते शोकस्थानमरिन्दम।। | 5-126-43a 5-126-43b |
अर्जुनार्थे महाबाहो सात्वतस्य च कारणात्। वर्धते हविषेवाग्निरिध्यमानः पुनः पुनः।। | 5-126-44a 5-126-44b |
तस्य लक्ष्म न पश्यामि तेन विन्दामि कश्मलम्। तं विद्धि पुरुषव्याघ्रं सात्वतं च महारथम्।। | 5-126-45a 5-126-45b |
स तं महारथं पश्चादनुयातस्तवानुजम्। तमपश्यन्महाबाहुमदं विन्दामि कश्मलम्।। | 5-126-46a 5-126-46b |
`अथैनं पुनराचक्ष्व लोहिताक्षं सकेशवम्। दृष्ट्वा कुशलिनं पार्थं सैन्धवान्ते ससात्यकिम्।। | 5-126-47a 5-126-47b |
संविदं मम कुर्यास्त्वं सिंहनादेन पाण्डव।। | 5-126-48a |
नूनं विनिहतः शूरः सव्यासाची परन्तप'। पार्थे तस्मिन्हते चैव युध्यते गरुडध्वजः।। | 5-126-49a 5-126-49b |
सहयो नास्य वै कश्चित्तेन विन्दामि कश्मलम्। तस्मात्कृष्णो रणे नूनं युध्यते युद्धकोविदः।। | 5-126-50a 5-126-50b |
न हि मे शुध्यते भावस्तयोरेव परन्तप। स तत्र गच्छ कौन्तेय यत्र यातो धनञ्जयः।। | 5-126-51a 5-126-51b |
सात्यकिश्च महावीर्यः कर्तव्यं यदि मन्यसे। वचनं मम धर्मज्ञ भ्राता ज्येष्ठो भवामि ते।। | 5-126-52a 5-126-52b |
न मेऽर्जुनस्तथा ज्ञेयो ज्ञातव्यः सात्यकिर्यथा।। | 5-126-53a |
चिकीर्षुर्मत्प्रियं पार्थ स यातः सव्यसाचिनः। पदवीं दुर्गमां घोरामगम्यामकृतात्मभिः।। | 5-126-54a 5-126-54b |
दृष्ट्वा कुशलिनौ कृष्णौ सात्वतं चैव सात्यकिम्। संविदं चैव कुर्यास्त्वं सिंहनादेन पाण्डव।। | 5-126-55a 5-126-55b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि चतुर्दशदिवसयुद्धे षड्विंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 126 ।। |
5-126-6 वानरर्षभलक्षणं वानरप्रधानध्वजम्। वरवानरकेतनमिति पाठो वा।। 5-126-9 सत्यो दृढप्रतिज्ञः।। 5-126-25 सात्यकिम्प्रति प्रतिविधानं कृतमित्यन्वयः।। 5-126-40 चकोरनेत्रो रक्तान्तायतनयनः। ताम्रास्यो रक्तगौरमुखः।। 5-126-126 षड्विंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 126 ।।
द्रोणपर्व-125 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-127 |