महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-056
दिखावट
← द्रोणपर्व-055 | महाभारतम् सप्तमपर्व महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-056 वेदव्यासः |
द्रोणपर्व-057 → |
|
नारदेन सृञ्जयम्प्रति सुहोत्रचरित्रकीर्तनम्।। 1 ।।
नारद उवाच। | 5-56-1x |
सुहोत्रं नाम राजानं मृतं सृञ्जय शुश्रुम। एकवीरमशक्यं तममरैरभिवीक्षितुम्।। | 5-56-1a 5-56-1b |
यः प्राप्य राज्यं धर्मेण ऋत्विङ्मन्त्रिपुरोहितान्। सम्मान्य चात्मनः श्रेयः पृष्ट्वा तेषां मते स्थितः।। | 5-56-2a 5-56-2b |
प्रजानां पालनं धर्मो दानमिज्या द्विषज्जयः। एतत्सुहोत्रो विज्ञाय धर्म्यमैच्छद्धनागमम्।। | 5-56-3a 5-56-3b |
धर्मेणाराधयन्देवान्बाणैः शत्रूञ्जयंस्तथा। सर्वाण्यपि च भूतानि स्वगुणैरन्वरञ्जयत्।। | 5-56-4a 5-56-4b |
यो भुक्त्वेमां वसुमतीं म्लेच्छाटविकवर्जिताम्। यस्मै ववर्ष पर्जन्यो हिरण्यं परिवत्सरान्।। | 5-56-5a 5-56-5b |
हैरण्यास्तत्र वाहिन्यः स्वैरिण्यो व्यवहन्पुरा। ग्राहान्कर्कटकांश्चैव मत्स्यांश्च विविधान्बहून्।। | 5-56-6a 5-56-6b |
कामान्वर्षति पर्जन्यो रूप्याणि विविधानि च। सौवर्णान्यप्रमेयाणि वाप्यश्च क्रोशसम्मिताः।। | 5-56-7a 5-56-7b |
सहस्रं वामनान्कुब्जान्नक्रान्मकरकच्छपान्। सौवर्णान्विहितान्दृष्ट्वा ततोऽस्मयत वै तदा।। | 5-56-8a 5-56-8b |
तत्सुवर्णमपर्यन्तं राजर्षिः कुरुजाङ्गले। ईजानो वितते यज्ञे ब्राह्मणेभ्यो ह्यमन्यत।। | 5-56-9a 5-56-9b |
सोऽश्वमेधसहस्रेण राजसूयशतेन च। पुण्यैः क्षत्रिययज्ञैश्च प्रभूतवरदक्षिणैः।। | 5-56-10a 5-56-10b |
काम्यनैमित्तिकाजस्रैरिष्ट्वेष्टां गतिमाप्तवान्। स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया।। | 5-56-11a 5-56-11b |
पुत्रात्पुण्यतरस्तुभ्यं मा पुत्रमनुतप्यथाः। अयज्वानमदक्षिण्यमभि श्वैत्येत्युदाहरत्।। | 5-56-12a 5-56-12b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि अभिमन्युवधपर्वणि षोडशराजकीये षट्पञ्चाशत्तमोऽध्यायः।। 56 ।। |
5-56-6 हैरण्या हिरण्मयाः ग्राहादयोऽपि। वाहिन्यो नद्यः। स्वैरिण्यः सर्वजनोपभोग्याः।। 5-56-56 षट्पञ्चाशत्तमोऽध्यायः।।
द्रोणपर्व-055 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-057 |