महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-039
दिखावट
← द्रोणपर्व-038 | महाभारतम् सप्तमपर्व महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-039 वेदव्यासः |
द्रोणपर्व-040 → |
|
दुश्शासनाभिमन्युसमागमः।। 1 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-39-1x |
द्वैधीभवति मे चित्तं शुचा तुष्ट्या च सञ्जय। मम पुत्रस्य यत्नैन्यं सौभद्रः समवारयत्।। | 5-39-1a 5-39-1b |
विस्तरेणैव मे शंस सर्वं गावल्गणे पुनः। विक्रीडितं कुमारस्य स्कन्दस्येवासुरैः सह।। | 5-39-2a 5-39-2b |
सञ्जय उवाच। | 5-39-3x |
हन्त ते सम्प्रवक्ष्यामि विमर्दमतिदारुणम्। एकस्य च बहूनां च यथासीत्तुमुलो रणः।। | 5-39-3a 5-39-3b |
अभिमन्युः कृतोत्साहः कृतोत्साहानरिन्दमान्। रथस्थो रथिनः सर्वांस्तावकानभ्यवर्षयत्।। | 5-39-4a 5-39-4b |
द्रोणं कर्णं कृपं शल्यं द्रौणिं भोजं बृहद्बलम्।। दुर्योधनं सौमदत्तिं शकुनिं च महाबलम्।। | 5-39-5a 5-39-5b |
नानानृपान्नृपसुतान्सैन्यानि विविधानि च। अलातचक्रवत्सर्वांश्चरन्बाणैः समार्पयत्।। | 5-39-6a 5-39-6b |
निघ्नन्नमित्रान्सौभद्रः परमास्त्रैः प्रतापवान्। अदर्शयत तेजस्वी दिक्षु सर्वासु भारत।। | 5-39-7a 5-39-7b |
तद्दृष्ट्वा चरितं तस्य सौभद्रस्यामितौजसः। समकम्पन्त सैन्यानि त्वदीयानि सहस्रशः।। | 5-39-8a 5-39-8b |
अथाब्रवीन्महाप्राज्ञो भारद्वाजः प्रतापवान्। हर्षेणोत्फुल्लनयनः कृपमाभाष्य सत्वरम्।। | 5-39-9a 5-39-9b |
घटयन्निव मर्माणि पुत्रस्य तव भारत। अभिमन्युं रणे दृष्ट्वा तदा रणविशारदम्।। | 5-39-10a 5-39-10b |
द्रोण उवाच। | 5-39-11x |
एष गच्छति सौभद्रः पार्थानां प्रथितो युवा। नन्दयन्सुहृदः सर्वान्राजानं च युधिष्ठिरम्।। | 5-39-11a 5-39-11b |
नकुलं सहदेवं च भीमसेनं च पाण्डवम्। बन्धून्सम्बन्धिनश्चान्यान्मध्यस्थान्सुहृदस्तथा।। | 5-39-12a 5-39-12b |
नास्य युद्धे समं मन्ये कञ्चिदन्यं धनुर्धरम्। इच्छन्हन्यादिमां सेनां किमर्थमपि नेच्छति।। | 5-39-13a 5-39-13b |
सञ्जय उवाच। | 5-39-14x |
द्रोणस्य प्रीतिसंयुक्तं श्रुत्वा वाक्यं तवात्मजः। आर्जुनिं प्रति सङ्क्रुद्धो द्रोणं दृष्ट्वा स्मयन्निव।। | 5-39-14a 5-39-14b |
अथ दुर्योधनः कर्णमब्रवीद्बाह्लिकं नृपः। दुःशासनं मद्रराजं तांस्तथाऽन्यान्महारथान्।। | 5-39-15a 5-39-15b |
सर्वभूर्धाभिषिक्तानामाचार्यो ब्रह्मवित्तमः। अर्जुनस्य सुतं मूढं नायं हन्तुमिहेच्छति।। | 5-39-16a 5-39-16b |
न ह्यस्य समरे युद्ध्येदन्तकोऽप्याततायिनः। किमङ्ग पुनरेवान्यो मर्त्यः सत्यं ब्रवीमि वः।। | 5-39-17a 5-39-17b |
अर्जुनस्य सुतं त्वेष शिष्यत्वादभिरक्षति। शिष्याः पुत्राश्च दयितास्तदपत्यं च धर्मिणाम्।। | 5-39-18a 5-39-18b |
संरक्ष्यमाणो द्रोणेन मन्यते वीर्यमात्मनः। आत्मसम्भावितो मूढस्तं प्रमथ्नीत माचिरम्।। | 5-39-19a 5-39-19b |
एवमुक्तास्तु ते राज्ञा सात्वतीपुत्रमभ्ययुः। संरब्धास्ते जिघांसन्तो भारद्वाजस्य पश्यतः।। | 5-39-20a 5-39-20b |
दुःशासनस्तु तच्छ्रुत्वा दुर्योधनवचस्तदा। अब्रवीत्कुरुशार्दूल दुर्योधनमिदं वचः।। | 5-39-21a 5-39-21b |
अहमेनं हनिष्यामि महाराज ब्रवीमि ते। मिषतां पाण्डु पुत्राणां पाञ्चालानां च पश्यताम्।। | 5-39-22a 5-39-22b |
ग्रसिष्याम्यद्य सौभद्रं यथा राहुर्दिवाकरम्। उत्क्रुश्य चाब्रवीद्वाक्यं कुरुराजमिदं पुनः।। | 5-39-23a 5-39-23b |
श्रुत्वा कृष्णौ मया ग्रस्तं सौभद्रमतिमानिनौ। गमिष्यतः प्रेतलोकं जीवलोकान्न संशयः।। | 5-39-24a 5-39-24b |
तौ च श्रुत्वा मृतौ व्यक्तं पाण्डोः क्षेत्रोद्भवाः सुताः। एकाह्वा ससुहृद्वर्गाः क्लैब्याद्धास्यन्ति जीवितम्।। | 5-39-25a 5-39-25b |
तस्मादस्मिन्हते शत्रौ हताः सर्वेऽहितास्तव। शिवेन मां ध्याहि राजन्नेष हन्मि रिपूंस्तव।। | 5-39-26a 5-39-26b |
सञ्जय उवाच। | 5-39-27x |
एवमुक्त्वाऽनदद्राजन्पुत्रो दुःशासनस्तव। सौभद्रमभ्ययात्क्रुद्धः शरवर्षैरवाकिरन्।। | 5-39-27a 5-39-27b |
तमतिक्रुद्धमायान्तं तव पुत्रमरिंदमः। अभिमन्युः शरैस्तीक्ष्णैः षड्विंशत्या समार्पयत्।। | 5-39-28a 5-39-28b |
दुःशासनस्तु सङ्क्रुद्धः प्रभिन्न इव कुञ्जरः। अयोधयत सौभद्रमभिमन्युश्च तं रणे।। | 5-39-29a 5-39-29b |
तौ मण्डलानि चित्राणि रथाभ्यां सव्यदक्षिणम्। चरमाणावयुध्येतां रथशिक्षाविशारदौ।। | 5-39-30a 5-39-30b |
अथ पणवमृदङ्गदुन्दुभीनां क्रकचमहानकभेरिझर्झराणम्। निनदमतिभृशं नराः प्रचक्रु-- र्लवणजलोद्भवसिंहनादमिश्रम्।। | 5-39-31a 5-39-31b 5-39-31c 5-39-31d |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि अभिमन्युवधपर्वणि त्रयोदशदिवसयुद्धे एकोनचत्वारिंशोऽध्यायः।। 39 ।। |
5-39-17 अङ्गेत्यसूयायाम्।। 5-39-18 धर्मिणामिति सोल्लुण्ठम्।। 5-39-19 आत्मसंभावितः अहमेवेति सम्भावनामारूढः।। 5-39-31 लवणजलोद्भवः शङ्खः।। 5-39-39 एकोनचत्वारिंशोऽध्यायः।।
द्रोणपर्व-038 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-040 |