महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-038
दिखावट
← द्रोणपर्व-037 | महाभारतम् सप्तमपर्व महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-038 वेदव्यासः |
द्रोणपर्व-039 → |
|
अभिमन्युपराक्रमवर्णनम्।। 1 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-38-1x |
तथा प्रमथमानं तं महेष्वासानजिह्मगैः। आर्जुनिं मामकाः सङ्ख्ये के त्वेनं समवारयन्।। | 5-38-1a 5-38-1b |
सञ्जय उवाच। | 5-38-2x |
शृणु राजन्कुमारस्य रणे विक्रीडितं महत्। बिभित्सतो रथानीकं भारद्वाजेन रक्षितम्।। | 5-38-2a 5-38-2b |
मद्रेशं सादितं दृष्ट्वा सौभद्रेणाशुगै रणे। शल्यादवरजः क्रुद्ध क्रिन्बाणान्समभ्ययात्।। | 5-38-3a 5-38-3b |
स विद्ध्वा दशभिर्बाणैः साश्वयन्तारमार्जुनिम्। उदक्रोशन्महाशब्दं तिष्ठतिष्ठेति चाब्रवीत्।। | 5-38-4a 5-38-4b |
तस्यार्जुनिः शिरोग्रीवं पाणिपादं धनुर्हयान्। छत्रं ध्वजं नियन्तारं त्रिवेणुं चाप्युपस्करम्।। | 5-38-5a 5-38-5b |
चक्रं युगं च तूणीरं ह्यनुकर्षं सायकैः। पताकां चक्रगोप्तारौ सर्वोपकरणानि च।। | 5-38-6a 5-38-6b |
लघुहस्तः प्रचिच्छेद ददृशे तं न कश्चन। स पपात क्षितौ क्षीणः प्रविद्धाभरणाम्बरः।। | 5-38-7a 5-38-7b |
वायुनेव महाचैत्यः समूलं चित्रवेदिकः। अनुगास्तस्य वित्रस्ताः प्राद्रवन्सर्वतो दिशः।। | 5-38-8a 5-38-8b |
आर्जुनेः कर्म तद्दृष्ट्वा सम्प्रणेदुः समन्ततः। नादेन सर्वभूतानि साधुसाध्विति भारत।। | 5-38-9a 5-38-9b |
शल्यभ्रातर्यथारुग्णे बहुशस्तस्य सैनिकाः। कुलाधिवासनामानि श्रावयन्तोऽर्जुनात्मजम्।। | 5-38-10a 5-38-10b |
अभ्यधावन्त सङ्क्रुद्धा विविधायुधपाणयः। रथैरश्वैर्गजैश्चान्ये पद्भिश्चान्ये बलोत्कटाः।। | 5-38-11a 5-38-11b |
बाणशब्देन महता रथनेमिस्वनेन च। हुंकारैः क्ष्वेडितोत्कृष्टैः सिंहनादैः सगर्जितैः।। | 5-38-12a 5-38-12b |
ज्यातलत्रस्वनैरन्ये गर्जन्तोऽर्जुननन्दनम्। ब्रुवन्तश्च न नो जीवन्मोक्ष्यसे जीवितादिति।। | 5-38-13a 5-38-13b |
तांस्तथा ब्रुवतो दृष्ट्वा सौभद्रः प्रहसन्निव। यो योस्मै प्राहरत्पूर्वं तं तं विव्याध पत्रिभिः।। | 5-38-14a 5-38-14b |
सन्दर्शयिष्यन्नस्त्राणि विचित्राणि लघूनि च। आर्जुनिः समरे शूरो मृदुपूर्वमयुध्यत।। | 5-38-15a 5-38-15b |
वासुदेवादुपात्तं यदस्त्रं यच्च धनञ्जयात्। अदर्शयत तत्कार्ष्णिः कृष्णाभ्यामविशेषवत्।। | 5-38-16a 5-38-16b |
दूरमस्य गुरुं भारं साध्वसं च पुनः पुनः। सन्दधद्विसृजंश्चेषून्निर्विशेषमदृश्यत।। | 5-38-17a 5-38-17b |
चापमण्डलमेवास्य विस्फुरद्दिक्ष्वदृश्यत। सुदीप्तस्य शरत्काले सवितुर्मण्डलं यथा।। | 5-38-18a 5-38-18b |
ज्याशब्दः शुश्रुवे तस्य तलशब्दश्च दारुणः। महाशनिमुचः काले पयोदस्येव निःस्वनः।। | 5-38-19a 5-38-19b |
हीमानमर्षी सौभद्रो मानकृत्प्रियदर्शनः। सम्मिमानयिषुर्वीरानिष्वस्त्रैश्चाप्ययुध्यत।। | 5-38-20a 5-38-20b |
मृदुर्भूत्वा महाराज दारुणः समपद्यत। वर्षाभ्यतीतो भगवाञ्शरदीव दिवाकरः।। | 5-38-21a 5-38-21b |
शरान्विचित्रान्सुबहून्रुक्मपुङ्खाञ्शिलाशितान्। मुमोच शतशः क्रुद्धो गभस्तीनिव भास्करः।। | 5-38-22a 5-38-22b |
क्षुरप्रैर्वत्सदन्तैश्च विपाठेश्च महायशाः। नाराचैरर्धचन्द्राभैर्भल्लैरञ्जलिकैरपि।। | 5-38-23a 5-38-23b |
अवाकिरद्रथानीकं भारद्वाजस्य पश्यतः। ततस्तत्सैन्यमभवद्विमुखं शरपीडितम्।। | 5-38-24a 5-38-24b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि अभिमन्युवधपर्वणि त्रयोदशदिवसयुद्धे अष्टत्रिंशोऽध्यायः।। 38 ।। |
5-38-5 तल्पं इति पाठे रथगतशय्याम्।। 5-38-10 अधिवासो निवासः।। 5-38-16 अविशेषवत्तुल्यमित्यर्थः।। 5-38-17 अस्य निरस्य।। 5-38-38 अष्टत्रिंशोऽध्यायः।।
द्रोणपर्व-037 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-039 |