महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-191
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शिखण्डिन्या पित्रोः शोकस्य स्वमूलकत्वचिन्तनेन दुर्गमारण्यमेत्य स्थूणनाम्नः कुबेरानुचरस्य गृहसमीपे प्रायोपवेशः ।। 1 ।।
स्थूणचोदितया शिखण्डिन्या तंप्रति पुंस्त्ववरणम् ।। 2 ।।
भीष्म उवाच। | 5-191-1x |
ततः शिखण्डिनो माता यथातत्त्वं नराधिप। | 5-191-1a 5-191-1b |
अपुत्रया मया राजन्सपत्नीनां भयादिदम् । | 5-191-2a 5-191-2b |
त्वया चैव नरश्रेष्ठ तन्मे प्रीत्याऽनुमोदितम् । | 5-191-3a 5-191-3b |
भार्या चोढा त्वया राजन्दशार्णाधिपतेः सुता। | 5-191-4a 5-191-4b 5-191-4c |
एतच्छ्रुत्वा द्रुपदो यज्ञसेनः | 5-191-5a 5-191-5b 5-191-5c 5-191-5d |
संबन्धकं चैव समर्थ्य तस्मिन् | 5-191-6a 5-191-6b 5-191-6c 5-191-6d |
स्वभावगुप्तं नगरमापत्काले तु भारत। | 5-191-7a 5-191-7b |
आर्तिं च परमां राजा जगाम सह भार्यया। | 5-191-8a 5-191-8b |
कथं संबन्धिना सार्धं न मे स्याद्विग्रहो महान्। | 5-191-9a 5-191-9b |
तं तु दृष्ट्वा तदा राजन्देवी देवपरं तदा। | 5-191-10a 5-191-10b |
देवानां प्रतिपत्तिश्च सत्यं साधुमता सताम् । | 5-191-11a 5-191-11b |
दैवतानि च सर्वाणि पूज्यनां भूरिदक्षिणम् । | 5-191-12a 5-191-12b |
अयुद्धेन निवृत्तिं च मनसा चिन्तय प्रभो। | 5-191-13a 5-191-13b |
मन्त्रिभिर्मन्त्रितं सार्धं त्वया पृथुललोचन। | 5-191-14a 5-191-14b |
दैवं हि मानुषोपेतं भृशं सिद्ध्यति पार्थिव । | 5-191-15a 5-191-15b |
तस्माद्विधाय नगरे विधानं सचिवैः सह। | 5-191-16a 5-191-16b |
एवं संभाषमाणौ तु दृष्ट्वा शोकपरायणौ। | 5-191-17a 5-191-17b |
ततः सा चिन्तयामास मन्कृते दुःखितावुभौ । | 5-191-18a 5-191-18b |
एवं सा निश्चयं कृत्वा भृशं शोकपरायणा। | 5-191-19a 5-191-19b |
यक्षेणर्द्धिमता राजन्स्थूणाकर्णेन पालितम् । | 5-191-20a 5-191-20b |
तत्र च स्थूणभवनं सुधामृत्तिकलेपनम् । | 5-191-21a 5-191-21b |
तन्प्रविश्य शिखण्डी सा द्रुपदस्यात्मजा नृप । | 5-191-22a 5-191-22b |
दर्शयामास तां यक्षः स्थूणो मार्दवसंयुतः । | 5-191-23a 5-191-23b |
अशक्ययिति सा यक्षं पुनः पुनरुवाच ह। | 5-191-24a 5-191-24b |
धनेश्वरस्यानुचरो वरदोऽस्मि नृपात्मजे। | 5-191-25a 5-191-25b |
ततः शिखण्डी तत्सर्वमखिलेन न्यवेदयत्। | 5-191-26a 5-191-26b |
शिखण्ड्युवाच। | 5-191-27x |
आपन्नो मे पिता यक्ष न चिरान्नाशमेष्यति। | 5-191-27a 5-191-27b |
मन्निमित्तं महोत्साहः सहेमकवचो नृपः । | 5-191-28a 5-191-28b |
प्रतिज्ञातो हि भवता दुःखप्रतिशमो मम । | 5-191-29a 5-191-29b |
यावदेव स राजा वै नोपयाति पुरं मम । | 5-191-30a 5-191-30b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-191-11 साधुमता कल्याणवतापि देवानां सतां साधूनां च प्रतिपत्तिः पूजा नित्यं कर्तव्येति शेषः । किमु दुःखार्णवं प्राप्य कर्तव्येति । तस्मात् भवान् गुरून् देवाराधनार्थं ब्राह्मणान् अर्चयतां पूजयतु ।। 5-191-21 लाजोल्लापिकः लाजानि उशीराणि उल्लापयति सूचयतीति लाजोल्लापिकः। उशीरपरिमलयुक्तधूमाढ्यमित्यर्थः । उशीरे लाजमुद्दिष्टमिति विश्वः। राजोपलेपधूमाढ्यं इतिo कoड पाठः ।।
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