महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-065
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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धृतराष्ट्रेण दुर्योधनंप्रति अर्जुनस्य श्रीकृष्णपरमप्रेमास्पदतया दुर्जयत्वभिधानपूर्वकं पाण्डवैः सह सन्धिविधानम् ।। 1 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-65-1x |
दुर्योधन विजानीहि यत्त्वां वक्ष्यामि पुत्रक। | 5-65-1a 5-65-1b |
पञ्चानां पाण्डुपुत्राणां यत्तेजः प्रजिहीर्षसि। | 5-65-2a 5-65-2b |
युधिष्ठिरं हि कौन्तेयं परं धर्ममिहास्थितम्। | 5-65-3a 5-65-3b |
भीमसेनं च कौन्तेयं यस्य नास्ति समो बले। | 5-65-4a 5-65-4b |
सर्वशस्त्रभृतां श्रेष्ठं मेरुं सिखरिणामिव। | 5-65-5a 5-65-5b |
धृष्टद्युम्नश्च पाञ्चाल्यः कमिवाद्य न शातयेत्। | 5-65-6a 5-65-6b |
सात्यकिश्चापि दुर्धर्षः संमतोऽन्धकवृष्णिषु। | 5-65-7a 5-65-7b |
यः पुनः प्रतिमानेन त्रील्लोकानतिरिच्यते । | 5-65-8a 5-65-8b |
एकतो ह्यस्य दाराश्च ज्ञातयश्च सबान्धवाः। | 5-65-9a 5-65-9b |
वासुदेवोऽपि दुर्धर्षो यतात्मा यत्र पाण्डवः । | 5-65-10a 5-65-10b |
तिष्ठ तात सतां वाक्ये सुहृदामर्थवादिनाम्। | 5-65-11a 5-65-11b |
मां च ब्रुवाणं शुश्रूष कुरूणामर्थदर्शिनम् । | 5-65-12a 5-65-12b |
एते ह्यपि यतैवाहं मन्तुमर्हसि तांस्तथा। | 5-65-13a 5-65-13b |
यत्तद्विराटनगरे सह भ्रातृभिरग्रतः। | 5-65-14a 5-65-14b |
यच्चैव नगरे तस्मिञ्श्रूयते महदद्भुतम्। | 5-65-15a 5-65-15b |
अर्जुनस्तत्तथाकार्षीत्किं पुनः सर्व एव ते। | 5-65-16a 5-65-16b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-65-1 उत्पथं अमार्गमेव मार्गं त्वन्यसे ।। 5-65-6 न शातयेत् न छिन्द्यात् ।। 5-65-8 प्रतिमानेन तुल्यत्वेन ।। 5-65-11 भीष्मं तितिक्षस्य तद्वाक्यं गृहाणेत्यर्थः ।। 5-65-16 वृत्त्या राज्यार्धदानेन प्रतिपादय संभावय ।।
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