महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-097
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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कण्वेन सुयोधनस्य बलावलेपविलोपनाय मातलिवरान्वेषणकथाकथनारम्भः ।। 1 ।।
मातलिना गुणकेशीनामकस्वकन्याया अनुगुणवरान्वेषणाय नागलोकंप्रति प्रस्थानम् ।। 2 ।।
वैशंपायन उवाच। | 5-97-1x |
जामदग्न्यवचः श्रुत्वा कण्वेऽपि भगवानृषिः । | 5-97-1a 5-97-1b |
कण्व उवाच। | 5-97-2x |
अक्षयश्चाव्ययश्चैव ब्रह्मा लोकपितामहः। | 5-97-2a 5-97-2b |
आदित्यानां हि सर्वेषां विष्णुरेकः सनातनः। | 5-97-3a 5-97-3b |
निमित्तमरणाश्चान्ये चन्द्रसूर्यौ मही जलम् । | 5-97-4a 5-97-4b |
ते च क्षयान्ते जगतो हित्वा लोकत्रयं सदा। | 5-97-5a 5-97-5b |
मुहूर्तमरणास्त्वन्ये मानुषा मूगपक्षिणः। | 5-97-6a 5-97-6b |
भूयिष्ठेन तु राजानः श्रियं भुक्त्वाऽऽयुषः क्षये। | 5-97-7a 5-97-7b |
स भवान्धर्मपुत्रेण शमं कर्तुमिहार्हसि । | 5-97-8a 5-97-8b |
बलवानहमित्येव न मन्तव्यं सुयोधन । | 5-97-9a 5-97-9b |
न बलं बलिनां मध्ये बलं भवति कौरव । | 5-97-10a 5-97-10b |
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम् । | 5-97-11a 5-97-11b |
मतस्त्रिलोकराजस्य मातलिर्नाम सारथिः। | 5-97-12a 5-97-12b |
गुणकेशीति विख्याता नाम्ना सा देवरूपिणी । | 5-97-13a 5-97-13b |
तस्याः प्रदानसमयं मातलिः सह भार्यया । | 5-97-14a 5-97-14b |
धिक्खल्वलघुशीलानामुच्छ्रितानां यशस्विनाम्। | 5-97-15a 5-97-15b |
मातुः कुलं पितृकुलं यत्र चैव प्रदीयते। | 5-97-16a 5-97-16b |
देवमानुषलोकौ द्वौ मानुषेणैव चक्षुषा। | 5-97-17a 5-97-17b |
कण्व उवाच। | 5-97-18x |
न देवान्नैव दितिजान्न गन्धर्वान्न मानुषान्। | 5-97-18a 5-97-18b |
भार्यया तु स संमन्त्र्य सह रात्रौ सुधर्मया । | 5-97-19a 5-97-19b |
न मे देवमनुष्येषु गुणकेश्याः समो वरः। | 5-97-20a 5-97-20b |
इत्यामन्त्र्य सुधर्मां स कृत्वा चाभिप्रदक्षिणम्। | 5-97-21a 5-97-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-97-7 तरुणाः अपीति शेषः। युद्धेन मरणं प्राप्नुवन्तीत्यर्थः ।। 5-97-10 बलं सैन्यम्। बलिनां स्वाभाविकबलवतां बलं सामर्थ्यं न भवति।। 5-97-11 मातलेरितिहासमिति संबन्धः ।। 5-97-15 उच्छ्रितानां महत्तया ख्यातानाम् ।।
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