महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-045
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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सनत्सुजातेन धृतराष्ट्रंप्रति तत्वोपदेशः ।। 1 ।।
सनत्सुजात उवाच। | 5-45-1x |
शोकः क्रोधश्च लोभश्च कामो मानः परासुता। | 5-45-1a 5-45-1b |
द्वादशैते महादोषा मनुष्यप्राणनाशनाः। | 5-45-2a 5-45-2b 5-45-2c |
स्पृहयालुरुग्रः परुषो वा वदान्यः | 5-45-3a 5-45-3b 5-45-3c 5-45-3d |
संभोगसंविद्विषमोऽतिमानी | 5-45-4a 5-45-4b 5-45-4c 5-45-4d |
धर्मश्च सत्यं च तपो दमश्च | 5-45-5a 5-45-5b 5-45-5c 5-45-5d |
यो नैतेभ्यः प्रच्यवेद्द्वादशभ्यः | 5-45-6a 5-45-6b 5-45-6c 5-45-6d |
दमस्त्यागोऽथाप्रमाद इत्येतेष्वमृतं स्थितम्। | 5-45-7a 5-45-7b |
सद्वाऽसद्वा परीवादे ब्राह्मणस्य न शस्यते। | 5-45-8a 5-45-8b |
मदोऽष्टादशदोषः स स्यात्पुरा योऽप्रकीर्तितः । | 5-45-9a 5-45-9b |
कामक्रोधौ पारतन्त्र्यं परिवादोऽथ पैशुनम्। | 5-45-10a 5-45-10b |
ईर्ष्या मोदोऽतिवादश्च संज्ञानाशोऽभ्यसूयिता। | 5-45-11a 5-45-11b |
नभ्यर्थितश्चार्हति शुद्धभावः ।। | 5-45-12f |
त्यक्तद्रव्यः संवसेन्नेह कामा- | 5-45-13a 5-45-13b |
द्रव्यवान्गुणवानेवं त्यागी भवति सात्विकः। | 5-45-14a 5-45-14b |
एतत्समृद्धमप्यृद्धं तपो भवति केवलम्। | 5-45-15a 5-45-15b |
यतो यज्ञः प्रवर्धन्ते मत्यस्यैवावरोधनात्। | 5-45-16a 5-45-16b |
सङ्कल्पसिद्धं पुरुषमसङ्कल्पोऽधितिष्ठति। | 5-45-17a 5-45-17b |
अध्यापयेन्महदेतद्यशस्यं | 5-45-18a 5-45-18b 5-45-18c 5-45-18d |
न कर्मणा सुकृतेनैव राजन् | 5-45-19a 5-45-19b 5-45-19c 5-45-19d |
तृष्णीमेक उपासीत चेष्टेत मनसापि न। | 5-45-20a 5-45-20b |
अत्रैव तिष्ठन्क्षत्रिय ब्रह्माविशति पश्यति। | 5-45-21a 5-45-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
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