महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-123
← उद्योगपर्व-122 | महाभारतम् पञ्चमपर्व महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-123 वेदव्यासः |
उद्योगपर्व-124 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
स्वर्गे ययातिप्रश्नानुरोधेन पितामहेन तत्पतनकारणकथनम् ।। 1 ।।
नारदेन ययात्युपाख्यानोपसंहारपूर्वकं दुर्योधनंप्रति गालवययातिदृष्टान्तप्रदर्शनेन निर्बन्धाभिमानत्यागपूर्वकं पाण्डवैः सन्धिकरणविधानम् ।। 2 ।।
नारद उवाच। | 5-123-1x |
सद्भिरारोपितः स्वर्गं पार्थिवैर्भूरिदक्षिणैः । | 5-123-1a 5-123-1b |
अभिवृष्टश्च वर्षेण नानापुष्पसुगन्धिना। | 5-123-2a 5-123-2b |
अचलं स्थानमासाद्य दौहित्रफलनिर्जितम् । | 5-123-3a 5-123-3b |
उपगीतोपनृत्तश्च गन्धर्वाप्सरसां गणैः । | 5-123-4a 5-123-4b |
अभिष्टुतश्च विविधैर्देवराजर्षिचारणैः । | 5-123-5a 5-123-5b |
प्राप्तः स्वर्गफलं चैव तमुवाच पितामहः । | 5-123-6a 5-123-6b |
चतुष्पादस्त्वया धर्मश्रितो लोक्येन कर्मणा । | 5-123-7a 5-123-7b |
पुनस्त्वयैव राजर्षे स्वकृतेन विघातितम्। | 5-123-8a 5-123-8b |
येन त्वां नाभिजानन्ति ततोऽज्ञातोसि पातितः । | 5-123-9a 5-123-9b |
स्थानं च प्रतिपन्नोऽसि कर्मणा स्वेन निर्जितम् । | 5-123-10a 5-123-10b |
ययातिरुवाच। | 5-123-11x |
भगवन्संशयो मेऽस्ति कश्चितं छेत्तुमर्हसि । | 5-123-11a 5-123-11b |
बहुवर्षसहस्रान्तं प्रजापालनवर्धितम्। | 5-123-12a 5-123-12b |
कथं तदल्पकालेन क्षीणं येनास्मि पातितः । | 5-123-13a 5-123-13b 5-123-13c |
पितामह उवाच। | 5-123-14x |
बहुवर्षसहस्रान्तं प्रजापालनवर्धितम्। | 5-123-14a 5-123-14b |
तदनेनैव दोषेण क्षीणं येनासि पातितः। | 5-123-15a 5-123-15b |
नायं मानेन राजर्षे न बलेन न हिंसया। | 5-123-16a 5-123-16b |
नावमान्यास्त्वया राजन्नधमोत्कृष्टमध्यमाः। | 5-123-17a 5-123-17b |
पतनारोहणमिदं कथयिष्यन्ति ये नराः । | 5-123-18a 5-123-18b |
नारद उवाच। | 5-123-19x |
एष दोषोऽभिमानेन पुरा प्राप्तो ययातिना । | 5-123-19a 5-123-19b |
श्रोतव्यं हितकामानां सुहृदां हितमिच्छताम्। | 5-123-20a 5-123-20b |
तस्मात्त्वमपि गान्धारे मानं क्रोधं च वर्जय । | 5-123-21a 5-123-21b |
स भवान्सुहृदां पथ्यं वचो गृह्णातु माऽनृतम् । | 5-123-22a 5-123-22b |
ददाति यत्पार्थिव यत्करति | 5-123-23a 5-123-23b 5-123-23c 5-123-23d |
इदं महाख्यानमनुत्तमं हितं | 5-123-24a 5-123-24b 5-123-24c 5-123-24d |
` एतत्पुण्यतमं राजन्ययातेश्चरितं महत्। | 5-123-25a 5-123-25b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-123-8 स्वकृतेन सम्यक्संपादितेन कर्मणा। मया समोऽन्यो नास्तीति वाक्प्रयोगेण। तमसा क्रोधेन ।। 5-123-24 प्रधारितं निश्चितम् ।।
उद्योगपर्व-122 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | उद्योगपर्व-124 |