महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-127
← उद्योगपर्व-126 | महाभारतम् पञ्चमपर्व महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-127 वेदव्यासः |
उद्योगपर्व-128 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
दुर्योधनेन श्रीकृष्णंप्रति स्वस्मिन्नपराधलेशोऽपि नास्तीति कथनम् ।। 1 ।।
भीष्मादिरक्षितस्य स्वस्याजय्यत्वकथनपूर्वकं युद्धे निधनसंभवेऽपि पाण्डवेभ्यः सूच्यग्रपरिमितभूमेरप्यप्रदानवचनम् ।। 2 ।।
वैशंपायन उवाच। | 5-127-1x |
श्रुत्वा दुर्योधनो वाक्यमप्रियं कुरुसंसदि। | 5-127-1a 5-127-1b |
प्रसमीक्ष्य भवानेतद्वक्तुमर्हति केशव। | 5-127-2a 5-127-2b |
भक्तिवादेन पार्थानामकस्मान्मधुसूदन। | 5-127-3a 5-127-3b |
भवान्क्षत्ता च राजा वाऽप्याचार्यो वा पितामहः । | 5-127-4a 5-127-4b |
न चाहं लक्षये कंचिद्व्यभिचारमिहात्मनः । | 5-127-5a 5-127-5b |
न चाहं कंचिदत्यर्थमपराधमरिन्दम । | 5-127-6a 5-127-6b |
प्रियाभ्युपगते द्यूते पाण्डवा मधूसूदन। | 5-127-7a 5-127-7b |
यत्पुनर्द्रविणं किंचित्तत्राजीयन्त पाण्डवाः । | 5-127-8a 5-127-8b |
अपराधो न चास्माकं यत्ते ह्यक्षैः पराजिताः। | 5-127-9a 5-127-9b |
केन वाऽप्यपवादेन विरुद्ध्यन्त्यरिभिः सह। | 5-127-10a 5-127-10b |
किमस्माभिः कृतं तेषां कस्मिन्वा पुनरागसि। | 5-127-11a 5-127-11b |
न चापि वयमुग्रेण कर्मणा वचनेन वा। | 5-127-12a 5-127-12b |
न च तं कृष्ण पश्यामि क्षत्रधर्ममनुष्ठितम् । | 5-127-13a 5-127-13b |
न हि भीष्मकृपद्रोणाः सकर्णा मधुसूदन। | 5-127-14a 5-127-14b |
स्वधर्ममनुपश्यन्तो यदि माधव संयुगे। | 5-127-15a 5-127-15b |
मुख्यश्चैवैष नो धर्मः क्षत्रियाणां जनार्दन । | 5-127-16a 5-127-16b |
ते वयं वीरशयनं प्राप्स्यामो यदि संयुगे। | 5-127-17a 5-127-17b |
कश्च जातु कुले जातः क्षत्रधर्मेण वर्तयन् । | 5-127-18a 5-127-18b |
उद्यच्छेदेव न नमेदुद्यमो ह्येव पौरुषम् । | 5-127-19a 5-127-19b |
इति मातङ्गवचनं परिप्सन्ति हितेप्सवः । | 5-127-20a 5-127-20b |
अचिन्तयन्कंचिदन्यं यावज्जीवं तथा चरेत्। | 5-127-21a 5-127-21b |
राज्यांशश्चाभ्यनुज्ञातो यो मे पित्रा पुराऽभवत्। | 5-127-22a 5-127-22b |
यावच्च राजा ध्रियते धृतराष्ट्रो जनार्दन । | 5-127-23a 5-127-23b 5-127-23c |
अज्ञानाद्वा भयाद्वाऽपि मयि बाले जनार्दन । | 5-127-24a 5-127-24b |
ध्रियमाणे महाबाहौ मयि संप्रति केशव । | 5-127-25a 5-127-25b 5-127-25c |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-127-19 अपर्वणि अप्रस्तावे ।। 5-127-20 मातंगः मुनिः ।।
उद्योगपर्व-126 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | उद्योगपर्व-128 |