महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-170
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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भीष्मेण पाण्डवसेनायां रथातिरथसंख्यानम् ।। 1 ।।
भीष्ण उवाच। | 5-170-1x |
द्रौपदेया महाराज सर्वे पञ्च महारथाः । | 5-170-1a 5-170-1b |
अभिमन्युर्महाबाहू रथयूथमयूथपः । | 5-170-2a 5-170-2b |
लघ्वस्त्रश्चित्रयोधी च मनस्वी च दृढव्रतः । | 5-170-3a 5-170-3b |
सात्यकिर्माधवः शूरो रथयूथपयूथपः। | 5-170-4a 5-170-4b |
उत्तमौजास्तथा राजन्रथोदारो मतो मम । | 5-170-5a 5-170-5b |
एतेषां बहुसाहस्रा रथा नागा हयास्तथा । | 5-170-6a 5-170-6b |
पाण्डवैः सह राजेन्द्र तव सेनासु भारत। | 5-170-7a 5-170-7b |
अजेयौ समरे वृद्धौ विराटद्रुपदौ तथा। | 5-170-8a 5-170-8b |
वयोवृद्धावपि हि तौ क्षत्रधर्मपरायणौ । | 5-170-9a 5-170-9b |
संबन्धिकेन राजेन्द्र तौ तु वीर्यबलान्वयात् । | 5-170-10a 5-170-10b |
कारणं प्राप्य तु नराः सर्व एव महाभुजाः । | 5-170-11a 5-170-11b |
एकायनगतावेतौ पार्थिवौ दृढधन्विनौ । | 5-170-12a 5-170-12b |
पृथगक्षौहिणीभ्यां तावुभौ संयति दारुणौ । | 5-170-13a 5-170-13b |
लोकवीरौ महेष्वासौ त्यक्तात्मानौ च भारत। | 5-170-14a 5-170-14b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-170-9 वीरगते वीरैरनुसृते ।। 5-170-10 सितौ बद्धौ ।।
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