महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-050
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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धृतराष्ट्रेण पाण्डवानां किमुपजीवनेन रणोद्योग इति पृष्टस्य सञ्जयस्य पाण्डवप्रभावानुस्मरणेन मूर्छा ।। 1 ।। लब्धसंज्ञेन सञ्जयेन पाण्डवानां कृष्णानुगृहीतस्वसामर्थ्येन राज्ञां साहाय्येन च समरोद्यम इति कथनम् ।। 2 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-50-1x |
किमसौ पाण्डवो राजा धर्मपुत्रोऽभ्यभाषत। | 5-50-1a 5-50-1b |
किमसौ चेष्टते सूत योत्स्यमानो युधिष्ठिरः। | 5-50-2a 5-50-2b |
के स्विदेनं वारयन्ति युद्धाच्छाम्येति वा पुनः। | 5-50-3a 5-50-3b |
सञ्जय उवाच। | 5-50-4x |
राज्ञो मुखमुदीक्षन्ते पाञ्चालाः पाण्डवैः सह। | 5-50-4a 5-50-4b |
पृथग्भूताः पाण्डवानां पाञ्चालानां रथव्रजाः । | 5-50-5a 5-50-5b |
नभः सूर्यमिवोद्यन्तं कौन्तेयं दीप्ततेजसम्। | 5-50-6a 5-50-6b |
आगोपालाविपालाश्च नन्दमाना युधिष्ठिरम् । | 5-50-7a 5-50-7b |
ब्राह्मण्यो राजपुत्र्यश्च विशां दुहितरश्च याः। | 5-50-8a 5-50-8b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-50-9x |
सञ्जयाचक्ष्व येनास्मान्पाडवा अभ्ययुञ्जत। | 5-50-9a 5-50-9b |
वैशंपायन उवाच। | 5-50-10x |
गवल्गणिस्तु तत्पुष्टः सभायां कुरुसंसदि। | 5-50-10a 5-50-10b |
तत्रानिमित्ततो वैवात्सुतं कश्मलमाविशत्। | 5-50-11a 5-50-11b |
सञ्जयोऽयं महाराज मूर्छितः पतितो भुवि। | 5-50-12a 5-50-12b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-50-13x |
अपश्यत्सञ्जयो नूनं कुन्तीपुत्रान्महारथान्। | 5-50-13a 5-50-13b |
वैशंपायन उवाच। | 5-50-14x |
सञ्जयश्चेतनां लब्ध्वा प्रत्याश्वस्येदभब्रवीत्। | 5-50-14a 5-50-14b |
सञ्जय उवाच। | 5-50-15x |
दृष्टवानस्मि राजेन्द्र कुन्तीपुत्रान्महारथान्। | 5-50-15a 5-50-15b |
श्रृणु र्यैर्हि महाराज पाण्डवा अभ्ययुञ्जत। | 5-50-16a 5-50-16b |
यो नैव रोपान्न भयान्न लोभान्नार्थकारणात्। | 5-50-17a 5-50-17b |
यः प्रमाणं महाराज धर्मे धर्मभृतां वरः। | 5-50-18a 5-50-18b |
यस्य बाहुबले तुल्यः पृथिव्यां नास्ति कश्चन। | 5-50-19a 5-50-19b 5-50-19c |
तेन वो भीमसेनेन पाण्डवा अभ्ययुञ्जत। | 5-50-20a 5-50-20b |
निःसृत्य जतुगेहाद्वै हिडिम्बात्पुरुषादकात्। | 5-50-21a 5-50-21b |
याज्ञसेनीमथो यत्र सिन्धुराजोपकृष्टवान्। | 5-50-22a 5-50-22b |
यश्च तान्सङ्गतान्सर्वान्पाण्डवान्वारणावते। | 5-50-23a 5-50-23b |
कृष्णायां चरता प्रीतिं येन क्रोधवशा हताः । | 5-50-24a 5-50-24b |
यस्य नागायुतैर्वीर्यं भुजयोः सारमर्पितम् । | 5-50-25a 5-50-25b |
कृष्णद्वितीयो विक्रम्य तुष्ट्यर्थं जातवेदसः। | 5-50-26a 5-50-26b |
यः स साक्षान्महादेवं गिरिशं शृलपाणिनम् । | 5-50-27a 5-50-27b |
यश्च सर्वान्वशे चक्रे लोकपालान्धनुर्धरः। | 5-50-28a 5-50-28b |
यः प्रतीचीं दिशं चक्रे वशे म्लेच्छगणायुताम्। | 5-50-29a 5-50-29b |
तेन वो दर्शनीयेन वीरेणातिधनुर्भृता । | 5-50-30a 5-50-30b |
यः काशीनङ्गमगधान्कलिङ्गांश्च युधाजयत्। | 5-50-31a 5-50-31b |
यस्य वीर्येण सदृशाश्चत्वारो भुवि मानवाः । | 5-50-32a 5-50-32b |
तेन वः सहदेवेन युद्धं राजन्महात्ययमअ। | 5-50-33a 5-50-33b |
तपश्चचार या घोरं काशिकन्या पुरा सती। | 5-50-34a 5-50-34b |
पाञ्चालस्य सुता जज्ञे दैवाच्च स पुनः पुमान् । | 5-50-35a 5-50-35b |
.. कलिङ्गान्समापेदे पाञ्चाल्यो युद्धदुर्मदः । | 5-50-36a 5-50-36b |
यं यक्षः पुरुषं चक्रे भीष्मस्य निधनेच्छया। | 5-50-37a 5-50-37b |
महेष्वासा राजपुत्रा भ्रातरः पञ्च केकयाः। | 5-50-38a 5-50-38b |
यो दीर्घबाहुः क्षिप्रास्त्रो धृतिमान्सत्यविक्रमः । | 5-50-39a 5-50-39b |
य आसीच्छरणं काले पाण्डवानां महात्मनाम् । | 5-50-40a 5-50-40b |
यः स काशिपती राजा वाराणस्यां महारथः । | 5-50-41a 5-50-41b |
शिशुभिर्दुर्जयैः सङ्ख्ये द्रौपदेयैर्महात्मभिः । | 5-50-42a 5-50-42b |
यः कृष्णासदृशो वीर्ये युधिष्ठिरसमो दमे। | 5-50-43a 5-50-43b |
यश्चैवाप्रतिमो वीर्ये धृष्टकेतुर्महायशाः । | 5-50-44a 5-50-44b |
तेन वश्चेदिराजेन पाण्डवा अभ्ययुञ्जत । | 5-50-45a 5-50-45b |
यः संश्रयः पाण्डवानां देवानामिव वासवः। | 5-50-46a 5-50-46b |
यथा चेदिपतेर्भ्राता शरभो भरतर्षभ। | 5-50-47a 5-50-47b |
तारासन्धिः सहदेवो जयत्सेनश्च तावुभौ । | 5-50-48a 5-50-48b |
द्रुपदश्च महातेजा बलेन महता वृतः। | 5-50-49a 5-50-49b |
एते चान्ये च बहवः प्राच्योदीच्या महीक्षितः। | 5-50-50a 5-50-50b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-50-47 करकर्षेण करकर्षसंज्ञेन भ्रात्रा ।।
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