महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-075
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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भीमेन कृष्णंप्रति स्वसामर्थ्यकथनपूर्वकं स्वस्य शमकामनायाः कृपामूलकत्वकथनम् ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 5-75-1x |
तथोक्तो वासुदेवेन नित्यमन्युरमर्षणः। | 5-75-1a 5-75-1b |
भीमसेन उवाच। | 5-75-2x |
अन्यथा मां चिकीर्षन्तमन्यथा मन्यसेऽच्युत। | 5-75-2a 5-75-2b |
वेत्सि दाशार्ह सत्यं मे दीर्घकालं सहोषितः। | 5-75-3a 5-75-3b |
तस्मादनभिरुपाभिर्वाग्भिर्मां त्वं समर्च्छसि । | 5-75-4a 5-75-4b |
ब्रूयादप्रतिरूपाणि यथा मां वक्तमर्हसि । | 5-75-5a 5-75-5b |
आत्मनः पौरुषं चैव बलं च न समं परैः । | 5-75-6a 5-75-6b |
अतिवादापविद्धस्तु वक्ष्यामि बलमात्मनः । | 5-75-7a 5-75-7b |
अचले चाप्रतिष्ठे चाप्यनन्ते सर्वमातरौ । | 5-75-8a 5-75-8b |
अहमेते निगृह्णीयां बाहुभ्यां सचसाचरे । | 5-75-9a 5-75-9b |
य एतत्प्राय मुच्येत न तं पश्यामि पुरूषम्। | 5-75-10a 5-75-10b |
मयाभिपन्नं त्रायेरन्बलमास्थाय न त्रयः । | 5-75-11a 5-75-11b |
अधः पादतलेनैतानधिष्ठास्यामि भूतले । | 5-75-12a 5-75-12b |
यथा मया विनिर्जित्य राजानो वशगाः कृताः । | 5-75-13a 5-75-13b |
विगाढे युधि संबाधे वेत्स्यसे मां जनार्दन । | 5-75-14a 5-75-14b |
यथामति ब्रवीम्येतद्विद्धि मामधिकं ततः । | 5-75-15a 5-75-15b |
मया प्रणुन्नान्मातङ्गात्नथिनः सादनस्तथा । | 5-75-16a 5-75-16b |
द्रष्टा मां त्वं च लोकश्च विकर्षन्तं वरान्वरान् । | 5-75-17a 5-75-17b |
सर्वलोकादभिक्रुद्धान्न भयं विद्यते मम। | 5-75-18a 5-75-18b 5-75-18c |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-75-1 समाधावत् तीव्रवेगं यथा स्यात्तथा ।। 5-75-3 ह्रदे प्लवन् पारमिवेति शेषः ।। 5-75-14 संबाधे संकीर्णे ।। 5-75-15 वैशसे विशसनवति ।।
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