महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-185
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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भीष्मे रामंप्रति प्रस्वापनास्त्रं प्रयोक्तुकामे नारदेन तन्निषेधनम् ।। 1 ।।
भीष्मेण दिव्यपुरुषवचनाच्च प्रस्वापनास्त्रप्रतिसंसंहारे रामेण स्वस्य पराजितत्वोक्तिः ।। 2 ।।
नारदादिवचनाद्युद्धोपरमः ।। 3 ।।
भीष्म उवाच। | 5-185-1x |
ततो हलहलाशब्दो दिवि राजन्महानभूत्। | 5-185-1a 5-185-1b |
अयुञ्जमेव चैवाहं तदस्त्रं भृगुनन्दने । | 5-185-2a 5-185-2b |
एते वियति करव्य दिवि देवगणाः स्थिताः। | 5-185-3a 5-185-3b |
रामस्तपस्वी ब्रह्मण्यो ब्राह्मणश्च गुरुश्च ते। | 5-185-4a 5-185-4b |
ततोऽपश्यं दिविष्ठान्वै तानष्टौ ब्रह्मवादिनः । | 5-185-5a 5-185-5b |
यथाऽऽह भरतश्रेष्ठ नारदस्तत्तथा कुरु । | 5-185-6a 5-185-6b |
ततश्च प्रतिसंहृत्य तदस्त्रं स्वापनं महत्। | 5-185-7a 5-185-7b |
ततो रामो हृषितो राजसिंह | 5-185-8a 5-185-8b 5-185-8c 5-185-8d |
ततोऽपश्यत्पितरं जामदग्न्यः | 5-185-9a 5-185-9b 5-185-9c 5-185-9d |
पितर ऊचुः। | 5-185-10x |
मा स्मैवं साहसं तात पुनः कार्षीः कथञ्चन । | 5-185-10a 5-185-10b |
क्षत्रियस्य तु धर्मोऽयं यद्युद्धं भृगुनन्दन । | 5-185-11a 5-185-11b |
इदं निमित्ते कस्मिंश्चिदस्माभिः प्रागुदाहृतम् । | 5-185-12a 5-185-12b |
वत्स पर्याप्तमेतावद्भीष्मेण सह संयुगे । | 5-185-13a 5-185-13b |
पर्याप्तमेतद्भद्रं ते तव कार्मुकधारणम् । | 5-185-14a 5-185-14b |
एष भीष्मः शान्तनवो देवैः सर्वैर्निवारितः। | 5-185-15a 5-185-15b |
रामेण सह मायोत्सीर्गुरुणेति पुनः पुनः । | 5-185-16a 5-185-16b |
मानं कुरुष्व गाङ्गेय ब्राह्मणस्य रणाजिरे। | 5-185-17a 5-185-17b |
भीष्मो वसूनामन्यतमो दिष्ट्या जीवसि पुत्रक । | 5-185-18a 5-185-18b |
कथं शक्यस्त्वया जेतुं निवर्तस्वेह भार्गव । | 5-185-19a 5-185-19b |
नरः प्रजापतिर्वीरः पूर्वदेवः सनातनः। | 5-185-20a 5-185-20b 5-185-20c |
भीष्म उवाच। | 5-185-21x |
एवमुक्तः स पितृभिः पितॄन्रामोऽब्रवीदिदम्। | 5-185-21a 5-185-21b 5-185-21c |
निवर्त्यतामापगेयः कामं युद्धात्पितामहाः। | 5-185-22a 5-185-22b |
ततस्ते मुनयो राजन्नृचीकप्रमुखास्तदा । | 5-185-23a 5-185-23b |
निवर्तस्व रणात्तात मानयस्व द्विजोत्तमम् । | 5-185-24a 5-185-24b |
मम व्रतमिदं लोके नाहं युद्धात्कदाचन। | 5-185-25a 5-185-25b |
नाहं लोभान्न कार्पण्यान्न भयान्नार्थकारणात्। | 5-185-26a 5-185-26b |
ततस्ते मुनयः सर्वे नारदप्रमुखा नृप। | 5-185-27a 5-185-27b |
तथैवात्तशरो धन्वी तथैव दृढनिश्चयः । | 5-185-28a 5-185-28b |
समेत्य सहिता भूयः समरे भृगुनन्दनम् । | 5-185-29a 5-185-29b |
राम राम निवर्तस्व युद्धादस्माद्द्विजोत्तम । | 5-185-30a 5-185-30b |
एवं ब्रुवन्तस्ते सर्वे प्रतिरुद्ध्य रणाजिरम् । | 5-185-31a 5-185-31b |
ततोऽहं पुनरेवाथ तानष्टौ ब्रह्मवादिनः । | 5-185-32a 5-185-32b |
ते मां सप्रणयं वाक्यमब्रुवन्समरे स्थितम् । | 5-185-33a 5-185-33b |
दृष्ट्वा निवर्तितं रामं सुहृद्वाक्येन तेन वै। | 5-185-34a 5-185-34b |
ततोऽहं राममासाद्य ववन्दे भृशविक्षतः। | 5-185-35a 5-185-35b |
त्वत्समो नास्ति लोकेऽस्मिन्क्षत्रियः पृथिवीचरः । | 5-185-36a 5-185-36b |
मम चैव समक्षं तां कन्यामाहूय भार्गवः। | 5-185-37a 5-185-37b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
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