महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-041
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धृतराष्ट्रेण पुनर्धर्मरहस्यकथनं चोदितेन विदुरेण स्वस्य शूद्रयोनिजातत्वेन तत्कथनानौचित्यकथनम् ।। 1 ।। तथा स्मरण मात्रसंनिहितं सनत्सुजातंप्रति धृतराष्ट्राय तत्वोपदेशप्रार्थना ।। 2 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-41-1x |
अनुक्तं यदि ते किञ्चिद्वाचा विदुर विद्यते। | 5-41-1a 5-41-1b |
विदुर उवाच। | 5-41-2x |
धृतराष्ट्र कुमारो वै यः पुराणः सनातनः। | 5-41-2a 5-41-2b |
स ते गुह्यान्प्रकाशांश्च सर्वान्हृदयसंश्रयान्। | 5-41-3a 5-41-3b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-41-4x |
किं त्वं न वेद तद्भूयो यन्मे ब्रूयात्सनातनः। | 5-41-4a 5-41-4b |
विदुर उवाच। | 5-41-5x |
शूद्रयोनावहं जातो नातोऽन्यद्वक्तुमुत्सहे। | 5-41-5a 5-41-5b |
ब्राह्मीं हि योनिमापन्नः सगुह्यमपि यो वदेत्। | 5-41-6a 5-41-6b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-41-7x |
ब्रवीहि विदुर त्वं मे पुराणं तं सनातनम् । | 5-41-7a 5-41-7b |
वैशंपायन उवाच। | 5-41-8x |
चिन्तयामास विदुरस्तभृषिं शंसितव्रतम्। | 5-41-8a 5-41-8b |
स चैनं प्रतिजग्राह विधिदृष्टेन कर्मणा । | 5-41-9a 5-41-9b |
भगवन्संशयः कश्चिद्धृतराष्ट्रस्य मानसः । | 5-41-10a 5-41-10b |
यं श्रत्वाऽयं मनुष्येन्द्रः सर्वदुःखातिगो भवेत्।। | 5-41-11a |
लाभालाभौ प्रियद्वेष्यौ यथैनं न जरान्तकौ। | 5-41-12a 5-41-12b 5-41-12c |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-41-2 सनुत्कुम्मरः प्रोवाचेति कo पाठः ।। 5-41-4 तमहं नाभिजानामि तत्वतो वै सनातनमिति कo पाठo ।। 5-41-12 विषहेरन् बाधेरन्। अमर्षः असहिष्णुता । उद्भव उत्कृष्टैश्वर्यं ।।
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