महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-189
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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पुंवेषगूहितया शिखण्डिन्या द्रोणाद्धनुर्विद्याभ्यसनम् ।। 1 ।।
द्रुपदेन शिखण्डिन्याः दशार्णाधिपतिकन्यया विवाहकरणम् ।। 2 ।।
दाशार्णकसुतया धात्रीद्वारा स्वपित्रे शिखण्डिन्याः स्त्रीत्वज्ञापनम् ।। 3 ।।
दाशार्णकेन दूतमुखेन द्रुपदंप्रति स्वविप्रलम्भफलतया सबन्धोस्तस्य समुच्छेदनिवेदनम् ।। 4 ।।
भीष्म उवाच। | 5-189-1x |
चकार यत्नं द्रुपदः सुतायाः सर्वकर्मसु। | 5-189-1a 5-189-1b |
इष्वस्त्रे चैव राजेन्द्र द्रोणशिष्यो बभूव ह। | 5-189-2a 5-189-2b |
चोदयामास भार्यार्थं कन्यायाः पुत्रवत्तदा । | 5-189-3a 5-189-3b 5-189-3c |
द्रुपद उवाच। | 5-189-4x |
कन्या ममेयं संप्राप्ता यौवनं शोकवर्धिनी । | 5-189-4a 5-189-4b |
भार्योवाच। | 5-189-5x |
न तन्मिथ्या महाराज भविष्यति कथंचन । | 5-189-5a 5-189-5b |
यदि ते रोचते राजन्वक्ष्यामि श्रृणु मे वचः। | 5-189-6a 5-189-6b |
क्रियतामस्य यत्नेन विधिवद्दारसंग्रहः । | 5-189-7a 5-189-7b |
ततस्तौ निश्चयं कृत्वा तस्मिन्कार्येऽथ दंपती । | 5-189-8a 5-189-8b |
ततो राजा द्रुपदो राजसिंहः | 5-189-9a 5-189-9b 5-189-9c 5-189-9d |
हिरण्यवर्मेति नृपो योऽसौ दाशार्णकः स्मृतः। | 5-189-10a 5-189-10b |
स च राजा दशार्णेषु महानासीत्सुदुर्जयः। | 5-189-11a 5-189-11b |
कृते विवाहे तु तदा सा कन्या राजसत्तम। | 5-189-12a 5-189-12b |
कृतदारः शिखण्डी च काम्पिल्यं पुनरागमत्। | 5-189-13a 5-189-13b 5-189-13c |
धात्रीणां च सखीनां च व्रीडयाना न्यवेदयत् । | 5-189-14a 5-189-14b |
ततस्ता राजशार्दूल धात्र्यो दाशार्णिकास्तदा। | 5-189-15a 5-189-15b |
ततो दशार्णाधिपतेः प्रेष्याः सर्वा न्यवेदयन् । | 5-189-16a 5-189-16b |
शिखण्ड्यपि महाराज पुंवद्राजकुले तदा। | 5-189-17a 5-189-17b |
ततः कतिपयाहस्य तच्छ्रुत्वा भरतर्षभ । | 5-189-18a 5-189-18b |
ततो दाशार्णको राजा तीव्रकोपसमन्वितः । | 5-189-19a 5-189-19b |
ततो द्रुपदमासाद्य दूतः काञ्चनवर्मणः। | 5-189-20a 5-189-20b |
दाशार्णराजो राजंस्त्वामिदं वचनमब्रवीत् । | 5-189-21a 5-189-21b |
अवमन्यसे मां नृपते नूनं दुर्मन्त्रितं तव। | 5-189-22a 5-189-22b |
तस्याद्य विप्रलम्भस्य फलं प्राप्नुहि दुर्मते । | 5-189-23a 5-189-23b |
अवमत्य च वीर्यं मे कुलं चारित्रमेव च । | 5-189-24a 5-189-24b |
कुरु सर्वाणि कार्याणि भुङ्क्ष्व कभोगाननुत्तमान्। | 5-189-25a 5-189-25b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-189-4 शूलयुक्तः पाणिः शूलपाणिः सोऽस्यास्तीति शूलपाणी तस्य ।। 5-189-20 उत्सार्य नीत्वा ।। 5-189-21 अभिषङ्गात्पराभवात् ।।
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