महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-176
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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अम्बांप्रति तापसेषु चिन्तयत्सु होत्रवाहनाम्नोऽम्बामातामहस्य तत्रागमनम् ।। 1 ।।
तेनाम्बायाः परशुरामंप्रति शरणागतिचोदना ।। 2 ।।
तत्र यदृच्छासमागते अकृतव्रणनाम्नि महर्षौ अम्बया स्ववृत्तन्तनिवेदनम् ।। 3 ।।
भीष्म उवाच। | 5-176-1x |
ततस्ते तापसाः सर्वे कार्यवन्तोऽभवंस्तदा। | 5-176-1a 5-176-1b |
केचिदाहुः पितुर्वेश्म नीयतामिति तापसाः । | 5-176-2a 5-176-2b |
केचित्साल्वपतिं गत्वा नियोज्यमिति मेनिरे। | 5-176-3a 5-176-3b |
एवं गते तु किं शक्यं भद्रे कर्तुं मनीषिभिः । | 5-176-4a 5-176-4b |
अलं प्रव्रजितेनेह भद्रे श्रृणु हितं वचः। | 5-176-5a 5-176-5b |
प्रतिपस्त्यति राजा स पिता ते यदनन्तरम् । | 5-176-6a 5-176-6b |
न च तेऽन्या गतिर्न्याय्या भवेद्भद्रे यथा पिता । | 5-176-7a 5-176-7b 5-176-7c |
प्रव्रज्या हि सुदुःखेयं सुकुमार्या विशेषतः । | 5-176-8a 5-176-8b |
भद्रे दोषा हि विद्यन्ते बहवो वरवर्णिनि । | 5-176-9a 5-176-9b |
ततस्त्वन्येऽब्रुवन्वाक्यं तापसास्तां तपस्विनीम् ।। | 5-176-10a |
त्वामिहैकाकिनीं दृष्ट्वा निर्जने गहने वने। | 5-176-11a 5-176-11b |
अम्बोवाच। | 5-176-12x |
न शक्यं काशिनगरं पुनर्गन्तुं पितुर्गृहान्। | 5-176-12a 5-176-12b |
उषितास्मि तथा बाल्ये पितुर्वेश्मनि तापसाः । | 5-176-13a 5-176-13b 5-176-13c |
यथा परेऽपि मे लोके न स्यादेवं महात्ययः । | 5-176-14a 5-176-14b |
भीष्म उवाच। | 5-176-15x |
इत्येवं तेषु विप्रेषु चिन्तयन्सु यथातथम्। | 5-176-15a 5-176-15b 5-176-15c |
ततस्ते तापसाः सर्वे पूजयन्ति स्म तं नृपम् । | 5-176-16a 5-176-16b |
तस्योपविष्टस्य सतो विश्रान्तस्योपश्रृण्वतः। | 5-176-17a 5-176-17b |
अम्बायास्तां कथां श्रुत्वा काशिराज्ञश्च भारत। | 5-176-18a 5-176-18b |
तां तथावादिनीं श्रुत्वा दृष्ट्वा च स महातपाः । | 5-176-19a 5-176-19b |
स वेपमान उत्थाय मातुस्तस्याः पिता तदा। | 5-176-20a 5-176-20b |
स तामपृच्छत्कार्त्स्न्येन व्यसनोत्पत्तिमादितः । | 5-176-21a 5-176-21b |
ततः स राजर्षिरभूद्दुःखशोकसमन्वितः। | 5-176-22a 5-176-22b |
अब्रवीद्वेपमानश्च कन्यामार्तां सुदुःखितः । | 5-176-23a 5-176-23b |
दुःखं छिन्द्यामहं ते वै मयि वर्तस्व पुत्रिके। | 5-176-24a 5-176-24b |
गच्छ मद्वचनाद्रामं जामदग्न्यं तपस्विनम् । | 5-176-25a 5-176-25b |
हनिष्यति रणे भीष्मं न करिष्यति चेद्वचः । | 5-176-26a 5-176-26b |
प्रतिष्ठापयिता स त्वां समे पथि महातपाः । | 5-176-27a 5-176-27b |
अब्रवीत्पितरं मातुः मा तदा होत्रवाहनम् । | 5-176-28a 5-176-28b |
अपि नामाद्य पश्येयमार्यं तं लोकविश्रुतम् । | 5-176-29a 5-176-29b 5-176-29c |
होत्रवाहन उवाच। | 5-176-30x |
रामं द्रक्ष्यसि भद्रे त्वं जामदग्न्यं महावने। | 5-176-30a 5-176-30b |
महेन्द्रं वै गिरिश्रेष्ठं रामो नित्यमुपास्ति ह। | 5-176-31a 5-176-31b |
तत्र गच्छस्व भद्रं ते ब्रूयाश्चैनं वचो मम। | 5-176-32a 5-176-32b |
ब्रूयाश्चैनं पुनर्भद्रे यत्ते कार्यं मनीषितम् । | 5-176-33a 5-176-33b |
मम रामः सखा वत्से प्रीतियुक्तः सुहृच्च मे। | 5-176-34a 5-176-34b |
एवं ब्रुवति कन्यां तु पार्थिवे होत्रवाहने । | 5-176-35a 5-176-35b |
ततस्ते मनुयः सर्वे समुत्तस्थुः महस्रशः । | 5-176-36a 5-176-36b |
ततो दृष्ट्वा कृतातिथ्यमन्योन्यं ते वनौकसः । | 5-176-37a 5-176-37b |
ततस्ते कथयामासुः कथास्तास्ता मनोरमाः । | 5-176-38a 5-176-38b |
ततः कथान्ते राजर्षिर्महात्मा होत्रवाहनः । | 5-176-39a 5-176-39b |
क्व संप्रति महाबाहो जामदग्न्यः प्रतापवान् । | 5-176-40a 5-176-40b |
अकृतव्रण उवाच। | 5-176-41x |
भवन्तमेव सततं रामः कीर्तयति प्रभो। | 5-176-41a 5-176-41b |
इह रामः प्रभाते श्वो भवितेति मतिर्मम। | 5-176-42a 5-176-42b |
इयं च कन्या राजर्षे किमर्थं वनमागता। | 5-176-43a 5-176-43b |
होत्रवाहन उवाच। | 5-176-44x |
दौहित्रीयं मम विभो काशिराजसुता प्रिया। | 5-176-44a 5-176-44b |
इयमम्बेति विख्याता ज्येष्ठा काशिपतेः सुता। | 5-176-45a 5-176-45b |
समेतं पार्थिवं क्षत्रं काशिपुर्यां ततोऽभवत्। | 5-176-46a 5-176-46b |
तता किल महावीर्यो भीष्मः शान्तनवो नृपान् । | 5-176-47a 5-176-47b |
निर्जित्य पृथिवीपालानथ भीष्मो जगाह्वयम् । | 5-176-48a 5-176-48b |
सत्यवत्यै निवेद्याथ विवाहं समनन्तरम् । | 5-176-49a 5-176-49b |
तं तु वैवाहिकं दृष्ट्वा कन्येयं समुपार्जितम् । | 5-176-50a 5-176-50b |
मया साल्वपतिर्वीरो मनसाऽभिवृतः पतिः । | 5-176-51a 5-176-51b |
तच्छ्रुत्वा वचनं भीष्मः संमन्त्र्य सह मन्त्रिभिः । | 5-176-52a 5-176-52b |
अनुज्ञाता तु भीष्मेण साल्वं सौभपतिं ततः। | 5-176-53a 5-176-53b |
विसर्जितास्मि भीष्मेण धर्मं मां प्रतिपादय। | 5-176-54a 5-176-54b |
प्रत्याचख्यौ च साल्वोऽस्याश्चारित्रस्याभिशङ्कितः । | 5-176-55a 5-176-55b |
मया च प्रत्यभिज्ञाता वंशस्य परिकीर्तनात्। | 5-176-56a 5-176-56b |
अम्बोवाच। | 5-176-57x |
भगवन्नेवमेवेह यथाह पृथिवीपतिः। | 5-176-57a 5-176-57b |
न ह्युत्सहे स्वनगरं प्रतियातुं तपोधन । | 5-176-58a 5-176-58b |
यत्तु मां भगवान्रामो वक्ष्यति द्विजसत्तम । | 5-176-59a 5-176-59b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-176-14 महात्ययः सुखनाशः। मम उद्धव उत्सव इति कोशः ।। 5-176-56 उत्पत्तिं कारणम् ।।
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