महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-177
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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अकृतव्रणेन सविमर्शं भीष्मस्य प्रतीकारनिर्धारणम् ।। 1 ।।
अम्बया परेद्युरागतं जामदग्न्यंप्रति भीष्मवधप्रार्थना ।। 2 ।।
अकृतव्रण उवाच। | 5-177-1x |
दुःख द्वयोरिदं भद्रे कतरस्य चिकीर्षसि। | 5-177-1a 5-177-1b |
यदि सौभपतिर्भद्रे नियोक्तव्यो मतस्तव । | 5-177-2a 5-177-2b |
अथापगेयं भीष्मं त्वं रामेणेच्छसि धीमता । | 5-177-3a 5-177-3b |
सृञ्जयस्य वचः श्रुत्वा तव चैव शुचिस्मिते। | 5-177-4a 5-177-4b |
अम्बोवाच। | 5-177-5x |
अपनीतास्मि भीष्मेण भगवन्नविजानता। | 5-177-5a 5-177-5b |
एतद्विचार्य मनसा भवानेतद्विनिश्चयम्। | 5-177-6a 5-177-6b |
भीष्मे वा कुरुशार्दूले शाल्वराजेऽथवा पुनः। | 5-177-7a 5-177-7b |
निवेदितं मया ह्येतद्दुःखमूलं यथातथम् । | 5-177-8a 5-177-8b |
अकृतव्रण उवाच। | 5-177-9x |
उपपदमिदं भद्रे यदेवं वरवर्णिनि । | 5-177-9a 5-177-9b |
यदि त्वामापगेयो वै न नयेद्गजसाह्वयम् । | 5-177-10a 5-177-10b |
तेन त्वं निर्जिता भद्रे यस्मान्नीतासि भामिनि । | 5-177-11a 5-177-11b |
भीष्मः पुरुषमानी च जितकाशी तथैव च। | 5-177-12a 5-177-12b |
अम्बोवाच। | 5-177-13x |
ममाप्येष सदा ब्रह्मन्हृदि कामोऽभिवर्तते। | 5-177-13a 5-177-13b |
भीष्मं वा साल्वराजं वा यं वा दोषेण गच्छसि । | 5-177-14a 5-177-14b |
भीष्म उवाच। | 5-177-15x |
एवं कथयतामेव तेषां स दिवसो गतः । | 5-177-15a 5-177-15b |
ततो रामः प्रादुरासीत्प्रज्वलन्निव तेजसा । | 5-177-16a 5-177-16b |
धनुष्पाणिरदीनात्मा खङ्गं बिभ्रत्परश्वधी । | 5-177-17a 5-177-17b |
ततस्तं तापसा दृष्ट्वा स च राजा महातपाः । | 5-177-18a 5-177-18b |
पूजयामासुरव्यग्रा मधुपर्केण भार्गवम्। | 5-177-19a 5-177-19b |
ततः पूर्वव्यतीतानि कथयन्तौ स्म तावुभौ । | 5-177-20a 5-177-20b |
तथा कथान्ते राजर्षिर्भृगुश्रेष्ठं महाबलम् । | 5-177-21a 5-177-21b |
रामेयं मम दौहित्री काशिराजसुता प्रभो । | 5-177-22a 5-177-22b |
परमं कथ्यतां चेति तां रामः प्रत्यभाषत । | 5-177-23a 5-177-23b |
ततोऽभिवाद्य चरणौ रामस्य शिरसा शुभौ । | 5-177-24a 5-177-24b |
रुरोद सा शोकवती बाष्पव्याकुललोचना। | 5-177-25a 5-177-25b |
राम उवाच। | 5-177-26x |
यथा त्वं सृंजयस्यास्य तथा मे त्वं नृपात्मजे । | 5-177-26a 5-177-26b |
अम्बोवाच। | 5-177-27x |
भगवञ्शरणं त्वाद्य प्रपन्नाऽस्मि महाव्रतम् । | 5-177-27a 5-177-27b |
भीष्म उवाच। | 5-177-28x |
तस्याश्च दृष्ट्वा रूपं च वपुश्चाभिनवं पुनः। | 5-177-28a 5-177-28b |
किमियं वक्ष्यतीत्येवं विममर्श भृगूद्वहः। | 5-177-29a 5-177-29b |
कथ्यतामिति सा भूयो रामेणोक्ता शुचिस्मिता। | 5-177-30a 5-177-30b |
तच्छुत्वा जामदग्र्यस्तु राजपुत्र्या वचस्तदा । | 5-177-31a 5-177-31b |
राम उवाच। | 5-177-32x |
प्रेषयिष्यामि भीष्माय कुरुश्रेष्ठाय भामिनि । | 5-177-32a 5-177-32b |
न चेत्करिष्यति वचो मयोक्तं जाह्नवीसुतः। | 5-177-33a 5-177-33b |
अथवा ते मतिस्तत्र राजपुत्रि न वर्तते। | 5-177-34a 5-177-34b |
अम्बोवाच। | 5-177-35x |
विसर्जिताऽहं भीष्मेण श्रुत्वैव भृगुनन्दन। | 5-177-35a 5-177-35b |
सौभराजमुपेत्याहमवोचं दुर्वचं वचः। | 5-177-36a 5-177-36b |
एतत्सर्वं विनिश्चित्य स्वबुद्ध्या भृगुनन्दन । | 5-177-37a 5-177-37b |
मम तु व्यसनस्यास्य भीष्मो मूलं महाव्रतः। | 5-177-38a 5-177-38b |
भीष्मं जहि महाबाहो यत्कृते दुःखमीदृशम् । | 5-177-39a 5-177-39b |
स हि लुब्धश्च नीचश्च जितकाशी च भार्गव । | 5-177-40a 5-177-40b |
एष मे ह्रियमाणाया भारतेन तदा विभो। | 5-177-41a 5-177-41b |
तस्मात्कामं ममाद्येमं राम संपादयानघ। | 5-177-42a 5-177-42b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-177-1 द्वयोः सकाशादिति शेषः ।। 5-177-2 नियोक्तव्यस्तव पाणिणार्थमिति शेषः 5-177-6 विधानं प्रतीकारम् ।। 5-177-23 परमं तव विवक्षितं यत्तन्मेऽवश्यं वक्तव्यमित्यर्थः ।।
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