महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-087
← उद्योगपर्व-086 | महाभारतम् पञ्चमपर्व महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-087 वेदव्यासः |
उद्योगपर्व-088 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
विदुरेण धृतराष्ट्रंप्रति कृष्णाय दानप्रतिज्ञायाः मृषात्वकथनम् ।। 1 ।।
तथा सामाद्युपायैः कृष्णस्य दुर्वशत्वकथनपूर्वकं तदुक्तिसत्कारविधानम् ।। 2 ।।
विदुर उवाच। | 5-87-1x |
राजन्बहुमतश्चासि त्रैलोक्यस्यापि सत्तमः। | 5-87-1a 5-87-1b |
यत्त्वमेवंगते ब्रूयाः पश्चिमे वयसि स्थितः। | 5-87-2a 5-87-2b |
लेखा शशिनिभाः सूर्ये महोर्मिरिव सागरे। | 5-87-3a 5-87-3b |
सदैव भावितो लोको गुणौघैस्तव पार्थिव । | 5-87-4a 5-87-4b |
आर्जवं प्रतिपद्यस्व मा बाल्याद्ब्रहु नीनशः। | 5-87-5a 5-87-5b |
यत्त्वं दित्ससि कृष्णाय राजन्नतिथये बहु । | 5-87-6a 5-87-6b |
न तु त्वं धर्ममुद्दिश्य तस्य वा प्रियकारणात्। | 5-87-7a 5-87-7b |
मायैषा सत्यमेवैतच्छद्मैतद्भूरिदक्षिणा । | 5-87-8a 5-87-8b |
पञ्च पञ्चैव लिप्स्यन्ति ग्रामकान्पाण्डवा नृप । | 5-87-9a 5-87-9b |
अर्थेन तु महाबाहुं वार्ष्णेयं त्वं जिहीर्षसि । | 5-87-10a 5-87-10b |
न च वित्तेन शक्योऽसौ नोद्यमेन न गर्हया। | 5-87-11a 5-87-11b |
वेद कृष्णस्य माहात्म्यं वेदास्य दृढभक्तिताम्। | 5-87-12a 5-87-12b |
अन्यत्कुम्भादपांपूर्णादन्यत्पादावसेचनात्। | 5-87-13a 5-87-13b |
यत्त्वस्य प्रियमातिथ्यं मानार्हस्य महात्मनः । | 5-87-14a 5-87-14b |
आशंसमानः कल्याणं कुरूनभ्येति केशवः । | 5-87-15a 5-87-15b |
शममिच्छति दाशार्हस्तव दुर्योधनस्य च। | 5-87-16a 5-87-16b |
पिताऽसि राजन्पुत्रास्ते वृद्धस्त्वं शिशवः परे। | 5-87-17a 5-87-17b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-87-4 भावितः हृष्टः ।। 5-87-5 मा नीनशः मा नाशं प्राप्नुहि ।। 5-87-8 माया इन्द्रजालम्। छद्म वञ्चनम् ।। 5-87-10 विभेत्स्यसि शल्यवत्पृथक्करिष्यसि ।। 5-87-12 वेद विद्मि ।। 5-87-13 नैवेक्ष्यति नैवाङ्गीकरिष्यति ।। 5-87-15 उपाकुरु अर्पय ।।
उद्योगपर्व-086 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | उद्योगपर्व-088 |