महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-148
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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कृष्णेन पाण्डवान्प्रति द्रोणवाक्यानुवादः ।। 1 ।।
तथा भीष्मंप्रत्युक्तविदुरवचनानुवादः ।। 2 ।।
तथा गान्धारीवचनानुवादः ।। 3 ।।
वासुदेव उवाच। | 5-148-1x |
भीष्मेणोक्ते ततो द्रोणो दुर्योधनमभाषत । | 5-148-1a 5-148-1b |
प्रातीपः शन्तनुस्तात कुलस्यार्थे यथा स्थितः । | 5-148-2a 5-148-2b |
तथा पाण्डुर्नरपतिः सत्यसन्धो जितेन्द्रियः। | 5-148-3a 5-148-3b |
ज्येष्ठाय राज्यमददद्धृतराष्ट्राय धीमते। | 5-148-4a 5-148-4b |
ततः सिंहासने राजन्स्थापयित्वैनमच्युतम् ।। | 5-148-5a 5-148-5b |
नीचैः स्थित्वा तु विदुर उपास्ते स्म विनीतवत्। | 5-148-6a 5-148-6b |
ततः सर्वाः प्रजास्तात धृतराष्ट्रं जनेश्वरम् । | 5-148-7a 5-148-7b |
विसृज्य धृतराष्ट्राय राज्यं स विदुराय च। | 5-148-8a 5-148-8b |
कोशसंवनने दाने भृत्यानां चान्ववेक्षणे । | 5-148-9a 5-148-9b |
सन्धिविग्रहसंयुक्तो राज्ञां संवाहनक्रियाः । | 5-148-10a 5-148-10b |
सिंहासनस्थो नृपतिर्धृतराष्ट्रो महाबलः । | 5-148-11a 5-148-11b |
कथं तस्य कुले जातः कुलभेदं व्यवस्यसि। | 5-148-12a 5-148-12b |
ब्रवीम्यहं न कार्पण्यान्नार्थहेतोः कथञ्चन । | 5-148-13a 5-148-13b |
नाहं त्वत्तोऽभिकाङ्क्षिष्ये वृत्त्युपायं जनाधिप । | 5-148-14a 5-148-14b |
दीयतां पाण्डुपुत्रेभ्यो राज्यार्धमरिकर्शन । | 5-148-15a 5-148-15b |
अश्वत्थामा यथा मह्यं तथा श्वेतहयो मम । | 5-148-16a 5-148-16b |
वासुदेव उवाच। | 5-148-17x |
एवमुक्ते महाराज द्रोणेनामिततेजसा। | 5-148-17a 5-148-17b 5-148-17c |
विदुर उवाच। | 5-148-18x |
देवव्रत निबोधेदं वचनं मम भाषतः। | 5-148-18a 5-148-18b |
तन्मे विलपमानस्य वचनं समुपेक्षसे। | 5-148-19a 5-148-19b |
यस्य लोभाभिभूतस्य मतिं समनुवर्तसे । | 5-148-20a 5-148-20b 5-148-20c |
एते नश्यन्ति कुरवो दुर्योधनकृतेन वै। | 5-148-21a 5-148-21b |
मां चैव धृतराष्ट्रं च पूर्वमेव महामते। | 5-148-22a 5-148-22b |
प्रजापतिः प्रजाः सृष्ट्वा यथा संहरते तथा। | 5-148-23a 5-148-23b |
अथ तेऽद्य मतिर्नष्टा विनाशे प्रत्युपस्थिते । | 5-148-24a 5-148-24b |
बद्ध्वा वा निकृतिप्रज्ञं धार्तराष्ट्रं सुदुर्मतिम् । | 5-148-25a 5-148-25b |
प्रसीद राजशार्दूल विनाशो दृश्यते महान् । | 5-148-26a 5-148-26b |
वासुदेव उवाच। | 5-148-27x |
विररामैवमुक्त्वा तु विदुरो दीनमानसः । | 5-148-27a 5-148-27b |
ततोऽस्य राज्ञः सुबलस्य पुत्री | 5-148-28a 5-148-28b 5-148-28c 5-148-28d |
ये पार्थिवा राजसभां प्रविष्टा | 5-148-29a 5-148-29b 5-148-29c 5-148-29d |
राज्यं कुरूणामनुरूपभोज्यं | 5-148-30a 5-148-30b 5-148-30c 5-148-30d |
राज्ये स्थितो धृतराष्ट्रो मनीषी | 5-148-31a 5-148-31b 5-148-31c 5-148-31d |
राजा च क्षत्ता च महानुभावौ | 5-148-32a 5-148-32b 5-148-32c 5-148-32d |
राज्य तु पाण्डोरिदमप्रधृष्यं | 5-148-33a 5-148-33b 5-148-33c 5-148-33d |
यद्वै ब्रूते कुरुमुख्यो महात्मा | 5-148-34a 5-148-34b 5-138-34c 5-148-34d |
अनुज्ञया चाथ महाव्रतस्य | 5-148-35a 5-148-35b 5-148-35c 5-148-35d |
न्यायागतं राज्यमिदं कुरूणां | 5-148-36a 5-148-36b 5-148-36c 5-148-36d |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-148-4 यथा ज्येष्ठायाददत् तथा क्षत्रे विदुरायापि न्यासभूतमददादिति भावः ।। 5-148-9 संवननमात्मीयताकरणम् ।। 5-148-17 पितुर्भीष्मस्य ।। 5-148-20 शास्त्रं आज्ञाम् ।।
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