महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-196
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युधिष्ठिरेणापि त्रेधाविभज्य स्वसेनानां प्रेषणम् ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 5-196-1x |
तथैव राजा कौन्तेयो धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः। | 5-196-1a 5-196-1b |
चेदिकाशिकरूशानां नेतारं दृढविक्रमम् । | 5-196-2a 5-196-2b |
विराटं द्रुपदं चैव युयुधानं शिखण्डिनम् । | 5-196-3a 5-196-3b |
ते शूराश्चित्रवर्माणस्तप्तकुण्डलधारिणः। | 5-196-4a 5-196-4b |
अशोभन्त महेष्वासा ग्रहाः प्रज्वलिता इव । | 5-196-5a 5-196-5b |
दिदेश तान्यनीकानि प्रयाणाय महीपतिः। | 5-196-6a 5-196-6b |
व्यादिदेश सबाह्यानां भक्ष्यभोज्यमनुत्तमम् । | 5-196-7a 5-196-7b |
अभिमन्युं बृहन्तं च द्रौपदेयांश्च सर्वशः । | 5-196-8a 5-196-8b |
भीमं च युयुधानं च पाण्डवं च धनंजयम्। | 5-196-9a 5-196-9b |
भाण्डं समारोपयतां चरतां संप्रधावताम् । | 5-196-10a 5-196-10b |
स्वयमेव ततः पश्चाद्विराटद्रपदान्वितः। | 5-196-11a 5-196-11b |
भीमधन्वायती सेना धृष्टद्युम्नेन पालिता। | 5-196-12a 5-196-12b |
ततः पुनरनीकानि न्ययोजयत बुद्धिमान्। | 5-196-13a 5-196-13b |
द्रौपदेयान्महेष्वासानभिमन्युं च पाण्डवः । | 5-196-14a 5-196-14b |
दश चाश्वसहस्राणि द्विसहस्त्राणि दन्तिनाम् । | 5-196-15a 5-196-15b |
भीमसेनस्य दुर्धर्षं प्रथमं प्रादिशद्बलम् । | 5-196-16a 5-196-16b |
महारथौ च पाञ्चाल्यौ युधामन्यूत्तमौजसौ । | 5-196-17a 5-196-17b |
अन्वयातां तदा मध्ये वासुदेवधनञ्जयौ । | 5-196-18a 5-196-18b 5-196-18c |
बभूवुरतिसंरब्धाः कृतप्रहरणा नराः। | 5-196-19a 5-196-19b 5-196-19c |
पदातयश्च ये शूराः कार्मुकासिगदाधराः । | 5-196-20a 5-196-20b |
युधिष्ठिरो यत्र सैन्ये स्वयमेव बलार्णवे । | 5-196-21a 5-196-21b |
तत्र नागसहस्राणि हयानामयुतानि च । | 5-196-22a 5-196-22b |
चेकितानः स्वसैन्येन महता पार्थिवर्षभ । | 5-196-23a 5-196-23b |
सात्यकिश्च महेष्वासो वृष्णीनां प्रवरो रथः । | 5-196-24a 5-196-24b |
क्षत्रदेवब्रह्मदेवौ रथस्थौ पुरुषर्षभौ । | 5-196-25a 5-196-25b |
शकटापणवेशाश्च यानं युग्यं च सर्वशः । | 5-196-26a 5-196-26b 5-196-26c |
कोशसञ्चयवाहांश्च कोष्ठागारं तथैव च। | 5-196-27a 5-196-27b |
तमन्वयात्सत्यधृतिः सौचित्तिर्युद्धदुर्मदः। | 5-196-28a 5-196-28b |
रथा विंशतिसाहस्रा ये तेषामनुयायिनः । | 5-196-29a 5-196-29b |
गजा विंशतिसाहस्रा ईषादन्ताः प्रहारिणः। | 5-196-30a 5-196-30b |
षष्टिर्नागसहस्राणि दशान्यानि च भारत । | 5-196-31a 5-196-31b |
क्षरन्त इव जीमूताः प्रभिन्नकरटामुखाः । | 5-196-32a 5-196-32b |
एवं तस्य बलं भीमं कुन्तीपुत्रस्य धीमतः । | 5-196-33a 5-196-33b |
ततोऽन्ये शतशः पश्चात्सहस्रायुतशो नराः। | 5-196-34a 5-196-34b |
तत्र भेरीसहस्राणि शङ्खानामयुतानि च । | 5-196-35a 5-196-35b |
।। इति श्रीमन्महाभारते | |
।। समाप्तमम्बोपाख्यानपर्व ।। उद्योगपर्व च ।। | |
अस्यानन्तरं भीष्मपर्व भविष्यति | |
कथं युयुधिरे वीराः कुरुपाण्डवसोमकाः। | |
इदं उद्योगपर्व कुंभघोणस्थेन टीo |
5-196-12 भीमधन्वायनीति झo पाठे भीमधन्वानः अयन्ते प्रचरन्त्यस्यामिति भीमधन्वायनी ।। 5-196-19 कृतप्रहरणाः `कृतयुद्धाः ' ।। 5-196-26 शकटा भाण्डवन्ति अनांसि। आपणो वणिस्कमुदायः। वेशो वेश्याजनः। यानं युद्धयोग्यं वाहनम्। युग्यं केवलं वाहनम्। फल्गु बालादिकम्। कलत्रं स्त्र्यादिकम् ।। 5-196-27 कोशो धनम्। कोष्ठो धान्यादिसामग्री। संगृह्य एकीकृत्य ।। 5-196-
उद्योगपर्व-195 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | भीष्मपर्व |