महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-138
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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भीष्मद्रोणाभ्यां कुन्तीवाक्यं श्रुत्वा समीपस्थं दुर्योधनं प्रति पाण्डवानां कुन्तीनिदेशानतिलङ्घित्वकथनपूर्वकं पाण्डवैः सह सन्धिविधानम् ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 5-138-1x |
कुन्त्यास्तु वचनं श्रुत्वा भीष्मद्रोणौ महारथौ। | 5-138-1a 5-138-1b |
श्रुतं ते पुरुषव्याघ्र कुन्त्याः कृष्णस्य संनिधौ । | 5-138-2a 5-138-2b |
तत्करिष्यन्ति कौन्तेया वासुदेवस्य संमतम् । | 5-138-3a 5-138-3b |
क्लेशिता हि त्वया पार्था धर्मपाशसितास्तदा। | 5-138-4a 5-138-4b |
कृतास्त्रं ह्यर्जुनं प्राप्य भीमं च कृतनिश्चयम् । | 5-138-5a 5-138-5b |
नकुलं सहदेवं च बलवीर्यसमन्वितौ । | 5-138-6a 5-138-6b |
प्रत्यक्षं ते महाबाहो यथा पार्थेन धीमता । | 5-138-7a 5-138-7b |
दानवा घोरकर्माणो निवातकवचा युधि। | 5-138-8a 5-138-8b |
कर्णप्रभृतयश्चेमे त्वं चापि कवची रथी। | 5-138-9a 5-138-9b |
प्रशाम्य भरतश्रेष्ठ भ्रातृभिः सह पाण्डवैः । | 5-138-10a 5-138-10b |
ज्येष्ठो भ्राता धर्मशीलो वत्सलः श्लक्ष्णवाक्कविः । | 5-138-11a 5-138-11b |
दृष्टश्चेत्त्वं पाण्डवेन व्यपनीतशरासनः । | 5-138-12a 5-138-12b |
तमभ्येत्य सहामात्यः परिष्वज्य नृपात्मजम् । | 5-138-13a 5-138-13b |
अभिवादयमानं त्वां पाणिभ्यां भीमपूर्वजः । | 5-138-14a 5-138-14b |
सिंहस्कन्धोरुबाहुस्त्वां वृत्तायतमहाभुजः । | 5-138-15a 5-138-15b |
कम्बुग्रीवो गुडाकेशस्ततस्त्वां पुष्करेक्षणः । | 5-138-16a 5-138-16b |
आश्विनेयौ नरव्याघ्रौ रूपेणाप्रतिमौ भुवि । | 5-138-17a 5-138-17b |
मुञ्चन्त्वानन्दजाश्रूणि दाशार्हप्रमुखा नृपाः । | 5-138-18a 5-138-18b |
प्रशाधि पृथिवीं कृत्स्नां ततस्त्वं भ्रातृभिः सह । | 5-138-19a 5-138-19b |
अलं युद्धेन राजेन्द्र सुहृदां शृणु वारणम् । | 5-138-20a 5-138-20b |
ज्योतींषि प्रतिकूलानि दारुणा मृगपक्षिणः। | 5-138-21a 5-138-21b |
विशेषत इहास्माकं निमित्तानि विनाशने। | 5-138-22a 5-138-22b |
वाहनान्यप्रहृष्टानि रुदन्तीव विशांपते। | 5-138-23a 5-138-23b |
नगरं न यथापूर्वं तथा राजनिवेशनम् । | 5-138-24a 5-138-24b |
कुरु वाक्यं पितुर्मातुरस्माकं च हितैषिणाम् । | 5-138-25a 5-138-25b |
न चेत्करिष्यसि वचः सुहृदामरिकर्शन । | 5-138-26a 5-138-26b |
भीमस्य च महानादं नदतः शुष्मिणो रणे। | 5-138-27a 5-138-27b 5-138-27c |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-138-10 प्रशाम्य प्रशमं कुरु ।। 5-138-20 वारणं प्रतिषेधम् ।। 5-138-24 दीप्तां दिशमिति दिग्दाहाख्य उत्पात उक्तः ।। 5-138-27 शुष्मिणः बलिनः । अपसव्यं विपरीतम् ।।
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