महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-157
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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युधिष्ठिरेण श्रीकृष्णानुमत्या द्रुपदादीनां सप्तानां पृतगक्षौहिण्याधिपत्येऽभिषेचनपूर्वकं धृष्टद्युम्नस्य सर्वसैन्याधिपत्येऽभिषेचनम् ।। 1 ।।
बलरामस्य अक्रूरादिभिः सह पाण्डवदिदृक्षया कुरुक्षेत्रागमनम् ।। 2 ।।
युधिष्ठिरादिपूजितस्य तस्य बन्धुनिधनावलोकनासहिष्णुतया तीर्थनिषेवणार्थं गमनम् ।। 3 ।।
जनमेजय उवाच। | 5-157-1x |
आपगेयं महात्मानं भीष्मं शस्त्रभृतां वरम्। | 5-157-1a 5-157-1b |
बृहस्पतिसं बुद्ध्या क्षमया पृथिवीसमम् । | 5-157-2a 5-157-2b |
प्रजापतिमिवौदार्ये तेजसा भास्करोपमम् । | 5-157-3a 5-157-3b |
रणयज्ञे प्रवितते सुभीमे लोमहर्षणे। | 5-157-4a 5-157-4b |
किमब्रवीन्महाबाहुः सर्वशस्त्रभृतां वरः । | 5-157-5a 5-157-5b |
वैशंपायन उवाच। | 5-157-6x |
आपद्धर्मार्थकुशलो महाबुद्धिर्युधिष्ठिरः। | 5-157-6a 5-157-6b |
उवाच वदतां श्रेष्ठः सान्त्वपूर्वमिदं वचः। | 5-157-7a 5-157-7b |
पितामहेन वो युद्धं पूर्वमेव भविष्यति। | 5-157-8a 5-157-8b |
कृष्ण उवाच। | 5-157-9x |
यथार्हति भवान्वक्तुमस्मिन्काले ह्युपस्थिते। | 5-157-9a 5-157-9b |
रोचते मे महाबाहो क्रियतां यदनन्तरम्। | 5-157-10a 5-157-10b |
वैशंपायन उवाच। | 5-157-11x |
ततो द्रुपदमानाय्य विराटं शिनिपुङ्गवम् । | 5-157-11a 5-157-11b 5-157-11c |
एतान्सप्त महाभागान्वीरान्युद्धाभिकाङ्क्षिणः । | 5-157-12a 5-157-12b |
सर्वसेनापतिं चात्र धृष्टद्युम्नं चकार ह । | 5-157-13a 5-157-13b |
सर्वेषामेव तेषां तु समस्तानां महात्मनाम् । | 5-157-14a 5-157-14b |
अर्जुनस्यापि नेता च संयन्ता चैव वाजिनाम्। | 5-157-15a 5-157-15b |
तद्दृष्ट्वोपस्थितं युद्धं समासन्नं महात्ययम् । | 5-157-16a 5-157-16b |
सहाक्रूरप्रभृतिभिर्ददसाम्बोद्धवादिभिः । | 5-157-17a 5-157-17b |
वृष्णिमुख्यैरधिगतैर्व्याघ्रैरिव बलोत्कटैः । | 5-157-18a 5-157-18b |
नीलकौशेयवसनः कैलासशिखरोपमः । | 5-157-19a 5-157-19b |
तं दृष्ट्वा धर्मराजश्च केशवश्च महाद्युतिः । | 5-157-20a 5-157-20b |
गाण्डीवधन्वा ये चान्ये राजानस्तत्र केचन। | 5-157-21a 5-157-21b |
ततस्तं पाण्डवो राजा करे पस्पर्श पाणिना । | 5-157-22a 5-157-22b |
विराटद्रुपदौ वृद्धावभिवाद्य हलायुधः । | 5-157-23a 5-157-23b |
ततस्तेषूपविष्टेषु पार्थिवेषु समन्ततः । | 5-157-24a 5-157-24b |
भवितायं महारौद्रो दारुणः पुरुषक्षयः । | 5-157-25a 5-157-25b |
तस्माद्युद्धात्समुत्तीर्णानपि वः समुहृञ्जानान्। | 5-157-26a 5-157-26b |
समेतं पार्थिवं क्षत्रं कालपक्वमसंशयम् । | 5-157-27a 5-157-27b |
उक्तो मया वासुदेवः पुनः पुनरुपह्वरे। | 5-157-28a 5-157-28b |
पाण्डवा हि यथास्माकं तथा दुर्योधनो नृपः। | 5-157-29a 5-157-29b |
तच्च मे नाकरोद्वाक्यं त्वदर्थे मधुसूदनः। | 5-157-30a 5-157-30b |
ध्रुवो जयः पाण्डवानामिति मे निश्चिता मतिः। | 5-157-31a 5-157-31b |
न चाहमृत्सहे कृष्णमृते लोकमुदीक्षितुम् । | 5-157-32a 5-157-32b |
उभौ शिष्यौ हि मे वीरौ गदायद्धविशारदौ । | 5-157-33a 5-157-33b |
तस्माद्यास्यामि तीर्थानि सरस्वत्या निषेवितुम् । | 5-157-34a 5-157-34b |
वैशंपायन उवाच। | 5-157-35x |
एवमुक्त्वा महाबाहुरनुज्ञातश्च पाण्डवैः। | 5-157-35a 5-157-35b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-157-13 इद्धात्प्रदीप्तात् ।। 5-157-16 महात्ययं अत्यन्तं क्षयकरम् ।। 5-157-24 रौहिणेयो बलरामः ।। 5-157-28 उपह्वरे एकान्ते ।।
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