महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-080
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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सहदेवेन श्रीकृष्णंप्रति कुरूणां शमाभिसन्धावपि युद्धपक्षस्यैव स्थापनकथनम् ।। 1 ।।
सात्यकिना सहदेवपक्षानुमोदने योधानां सर्षात्सिंहनादः ।। 2 ।।
सहदेव उवाच। | 5-80-1x |
यदेतत्कथितं राज्ञा धर्म एष सनातनः। | 5-80-1a 5-80-1b |
यदि प्रसममिच्छेयुः कुरवः पाण्डवैः सह। | 5-80-2a 5-80-2b |
कथं नु दृष्ट्वा पाञ्चालीं तथा कृष्ण सभागताम्। | 5-80-3a 5-80-3b |
यदि भीमार्जुनौ कृष्ण धर्मराजश्च धार्मिकः । | 5-80-4a 5-80-4b |
ब्रूहि मद्वचनं कृष्ण सुयोधनमपण्डितम्। | 5-80-5a 5-80-5b |
सात्यकिरुवाच। | 5-80-6x |
सत्यमाह महाबाहो सहदेवो महामतिः। | 5-80-6a 5-80-6b |
न जानासि यथा दृष्ट्वा चीराजिनधरान्वने। | 5-80-7a 5-80-7b |
तस्मान्माद्रीसुतः शूरो यदाह रणकर्कशः। | 5-80-8a 5-80-8b |
वैशंपायन उवाच। | 5-80-9x |
एवं वदि वाक्यं तु युयुधाने महामतौ। | 5-80-9a 5-80-9b |
सर्वे हि सर्वशो वीरास्तद्वचः प्रत्यपूजयन्। | 5-80-10a 5-80-10b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-80-4 यदि यद्यपि भीमादयो धार्मिकाः स्युः तथापि अहं धर्ममुत्सृज्य तेन सह योद्धृमिच्छामि ।।
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