महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-024
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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सञ्जयेन युधिष्ठिरप्रश्नानामुत्तरदानपूर्वकं धृतराष्ट्रसन्देशश्रवणविधानम् ।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 5-24-1x |
यथाऽऽत्थ मे पाण्डव तत्तथैव | 5-24-1a 5-24-1b 5-24-1c 5-24-1d |
सन्त्येव वृद्धाः साधवो धार्तराष्ट्रे | 5-24-2a 5-24-2b 5-24-2c 5-24-2d |
यद्युष्मासु वर्ततेऽसावधर्म्य- | 5-24-3a 5-24-3b 5-24-3c 5-24-3d |
स चापि जानाति भृशं च तप्यते | 5-24-4a 5-24-4b 5-24-4c 5-24-4d |
स्मरन्ति तुभ्यं नरदेव सङ्गमे | 5-24-5a 5-24-5b 5-24-5c 5-24-5d |
माद्रीसुतौ चापि तथाऽऽजिमध्ये | 5-24-6a 5-24-6b 5-24-6c 5-24-6d |
समीकुर्याः प्रज्ञयाऽजातशत्रो ।। | 5-24-7f |
न कामार्थं सन्त्यजेयुर्हि धर्मं | 5-24-8a 5-24-8b 5-24-8c 5-24-8d |
धार्तराष्ट्राः पाण्डवाः सृञ्जयाश्च | 5-24-9a 5-24-9b 5-24-9c 5-24-9d |
सहामात्यः सहपुत्रश्च राजन् | 5-24-10a 5-24-10b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-24-4 गरीयानिति ...... 5-24-5 ........ 5-24-7 अनागतं अज्ञातं अदृष्टमित्यर्थः ।।
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