महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-173
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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शिखण्डिनोऽसंहरणकारणप्रश्ने तत्कथनाय भीष्मेण दुर्योधनंप्रति अम्बोपाख्यानकथनारम्भः ।। 1 ।।
तथा स्वयंवरे स्वेन अम्बादिकन्यात्रयहरणकथनम् ।। 2 ।।
दुर्योधनं उवाच। | 5-173-1x |
किमर्थं भरतश्रेष्ठ नैव हन्याः शिखण्डिनम् । | 5-173-1a 5-173-1b |
पूर्वमुक्त्वा महाबाहो पाञ्चालान्सह सोमकैः । | 5-173-2a 5-173-2b |
भीष्म उवाच। | 5-173-3x |
श्रृणु दुर्योधन कथां सहैभिर्वसुधाधिपैः । | 5-173-3a 5-173-3b |
महाराजो मम पिता शान्तनुर्लोकविश्रुतः । | 5-173-4a 5-173-4b |
ततोऽहं भरतश्रेष्ठ प्रतिज्ञां परिपालयन् । | 5-173-5a 5-173-5b |
तस्मिंश्च निधनं प्राप्ते सत्यवत्या मते स्थितः । | 5-173-6a 5-173-6b |
मयाऽभिषिक्तो राजेन्द्र यवीयानपि धर्मतः । | 5-173-7a 5-173-7b |
तस्य दारक्रियां तात चिकीर्षुरहमप्युत । | 5-173-8a 5-173-8b |
तथाऽश्रौषं महाबाहो तिस्रः कन्याः स्वयंवरे । | 5-173-9a 5-173-9b 5-173-9c |
राजानश्च समाहूताः पृथिव्यां भरतर्षभ। | 5-173-10a 5-173-10b |
अम्बालिका च राजेन्द्र राजकन्या यवीयसी । | 5-173-11a 5-173-11b |
अपश्यं ता महाबाहो तिस्रः कन्याः स्वलङ्कृताः। | 5-173-12a 5-173-12b |
ततोऽहं तान्नृपान्सर्वानाहूय समरे स्थितान्। | 5-173-13a 5-173-13b |
वीर्यशुल्काश्च ता ज्ञात्वा समारोप्य रथं तदा। | 5-173-14a 5-173-14b 5-173-14c |
ते यतध्वं परं शक्त्या सर्वे मोक्षाय पार्थिवाः । | 5-173-15a 5-173-15b |
ततस्ते पृथिवीपालाः समुत्पतुरुदायुधाः । | 5-173-16a 5-173-16b |
ते रथैर्गसङ्काशैर्गजैश्च गजयोधिनः। | 5-173-17a 5-173-17b |
ततस्ते मां महीपालाः सर्व एव विशां पते। | 5-173-18a 5-173-18b |
तानहं शरवर्षेण समन्तात्पर्यवारयम् । | 5-173-19a 5-173-19b |
अपातयं शरैर्दीप्तैः प्रहसन्भरतर्षभ । | 5-173-20a 5-173-20b |
एकैकेन हि बाणेन भूमौ पातितवानहम् । | 5-173-21a 5-173-21b |
ते निवृत्ताश्च भग्नाश्च दृष्ट्वा तल्लाघवं मम। | 5-173-22a 5-173-22b |
तत आदाय ताः कन्या नृपतींश्च विसृज्य तान्।' | 5-173-23a 5-173-23b |
ततोऽहं ताश्च कन्या वै भ्रातुरर्थाय भारत। | 5-173-24a 5-173-24b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-173-4 दिष्टान्तं मरणम् ।।
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