महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-060
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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धृतराष्ट्रेण दुर्योधनं प्रति स्वपरपक्षयोः बलाबलविमर्शनेन पाण्डवेषु पुत्रप्रेम्णा धर्मादिदेवानां साहाय्यकरमाभिधानपूर्वकं स्वस्य शमाभिरोचनवचनम् ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 5-60-1x |
सञ्जयस्य वचः श्रुत्वा प्रज्ञाचक्षुर्जनेश्वरः। | 5-60-1a 5-60-1b |
प्रसङ्ख्याय च सौक्ष्म्येण गुणदोषान्विचक्षणः। | 5-60-2a 5-60-2b |
बलाबलं विनिश्चित्य याथातथ्येन बुद्धिमान्। | 5-60-3a 5-60-3b |
पुनरेव कुरूणां च पाण्डवानां च बुद्धिमान् ।' | 5-60-4a 5-60-4b |
देवमानुषयोः शक्त्या तेजसा चैव पाण्डवान्। | 5-60-5a 5-60-5b |
दुर्योधनेयं चिन्ता मे शश्वन्न व्युपशाम्यति। | 5-60-6a 5-60-6b |
आत्मजेषु परं स्नेहं सर्वभातिनि कुर्वते। | 5-60-7a 5-60-7b |
एवमेवोपकर्तॄणां प्रायशो लक्षयामहे। | 5-60-8a 5-60-8b |
अग्निः साचिव्यर्ता स्यात्खाण्डवे तत्कृतं स्मरन् । | 5-60-9a 5-60-9b |
जातिगृद्ध्याऽभिपन्नाश्च पाण्डवानामनेकशः। | 5-60-10a 5-60-10b |
भीष्मद्रोणकृपादीनां भयादशनिसन्निभम् । | 5-60-11a 5-60-11b |
ते देवैः सहिताः पार्था न शक्याः प्रतिवीक्षितुम् । | 5-60-12a 5-60-12b |
दुरासदं यस्य दिव्यं गाण्डीवं धनुरुत्तमम् । | 5-60-13a 5-60-13b |
वानरश्च ध्वजे दिव्यो निःसङ्गे धूमवद्गतिः । | 5-60-14a 5-60-14b |
महामेघनिभश्चापि निर्घोषः श्रूयते जनैः । | 5-60-15a 5-60-15b |
यं चातिमानुषं वीर्ये कृत्स्नो लोको व्यवस्यति। | 5-60-16a 5-60-16b |
शतानि पञ्च चैवेषून्यो गृह्णन्नैव दृश्यते। | 5-60-17a 5-60-17b |
यमाह भीष्मो द्रोणश्च कृपो द्रौणिस्तथैव च । | 5-60-18a 5-60-18b |
युद्धायावस्थितं पार्थं पार्थिवैरतिमानुषैः । | 5-60-19a 5-60-19b |
क्षिपत्येकेन वेगेन पञ्चबाणशतानि यः। | 5-60-20a 5-60-20b |
तमर्जुनं महेष्वासं महेन्द्रोपेन्द्रविक्रमम्। | 5-60-21a 5-60-21b |
इत्येवं चिन्तयन्कृत्स्नमहोरात्राणि भारत । | 5-60-22a 5-60-22b |
क्षयोदयोऽयं सुमहान्कुरूणां प्रत्युपस्थितः। | 5-60-23a 5-60-23b |
शमो मे रोचते नित्यं पार्थैस्तात न विग्रहः । | 5-60-24a 5-60-24b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-60-5 शक्त्या परिच्छिद्येति शेष्ठः ।। 5-60-9 भीमे भयंकरे ।। 5-60-10 जातिगृद्ध्या जन्मग्रहणाद्धेतोः युधिष्ठिरादीनां पितरो धर्मादयोपि तेषां सहायाः सन्ति ।।
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