महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-094
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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प्रभाते संध्यामुपतिष्ठमानं श्रीकृष्णमभ्येत्य शकुनिदुर्योधनाभ्यां सभागमनाय प्रार्थनम् ।। 1 ।।
श्रीकृष्णस्य विदुरेण सह सभाप्रवेशः ।। 2 ।।
अन्तरिक्षगतेषु नारदादिषु श्रीकृष्णाज्ञया भीष्मेण आसनादिना सत्कृतेषु कृष्णादीनां यथोचितमासनेषूपवेशनम् ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 5-94-1x |
तथा कथयतोरेव तयोर्बुद्धिमतोस्तदा। | 5-94-1a 5-94-1b |
धर्मार्थकामयुक्ताश्च विचित्रार्थपदाक्षराः। | 5-94-2a 5-94-2b |
कथाभिरनुरूपाभी रक्तस्यामिततेजसः । | 5-94-3a 5-94-3b |
ततस्तु स्वरसंपन्ना बहवः सूतमागधाः ।। | 5-94-4a 5-94-4b |
तत उत्थाय दाशार्हऋषभः सर्वसात्वताम् । | 5-94-5a 5-94-5b |
कृतोदकानुजप्यः स हुताग्निः समलङ्कृतः। | 5-94-6a 5-94-6b |
अथ दुर्योधनः कृष्मं शकुनिश्चापि सौबलः। | 5-94-7a 5-94-7b |
आचक्षेतां तु कृष्णस्य धृतराष्ट्रं सभागतम्। | 5-94-8a 5-94-8b |
त्वामर्थयन्ते गोविन्द दिवि शक्रमिवामराः । | 5-94-9a 5-94-9b |
ततो विमल आदित्ये ब्राह्मणेभ्यो जनार्दनः। | 5-94-10a 5-94-10b |
विसृष्टवन्तं रत्नानि दाशार्हमपराजितम्। | 5-94-11a 5-94-11b |
` तस्मै रथवरो युक्तः शुशुभे लोकविश्रुतः । | 5-94-12a 5-94-12b |
शैब्यस्तु शुकपत्राभः सुग्रीवः किंशुकप्रभः । | 5-94-13a 5-94-13b |
दक्षिणं चावहच्छैब्यः सुग्रीवः सव्यतोऽवहत्। | 5-94-14a 5-94-14b |
विश्वकर्मकृताऽऽपीडा रत्नजालविभूषिता । | 5-94-15a 5-94-15b |
वैनतेयः स्थितस्तस्यां प्रभाकरमिव स्पृशन्। | 5-94-16a 5-94-16b |
तस्य कीर्तिमतस्तेन भास्वरेण विराजता । | 5-94-17a 5-94-17b |
रश्मिजालैः पताकाभिः सौवर्णेन च केतुना । | 5-94-18a 5-94-18b |
पक्षिध्वजवितानैश्च रुक्मजालकृताङ्गणैः । | 5-94-19a 5-94-19b |
प्रवालमणिशोभैश्च मुक्तावैडूर्यशोभनैः । | 5-94-20a 5-94-20b |
कार्तस्वरमयीभिश्च पद्मिनीभिरलङ्कृतः। | 5-94-21a 5-94-21b |
व्याघ्रसिंहवराहैश्च गोभिश्च मृगपक्षिभिः । | 5-94-22a 5-94-22b |
वज्राङ्कुशविमानैश्च कूबरावृत्तसन्धिषु । | 5-94-23a 5-94-23b |
ततो रथेन शुभ्रेण महता किङ्किणीकिना । | 5-94-24a 5-94-24b |
तमुपस्थितमाज्ञाय रथं दिव्यं महामनाः । | 5-94-25a 5-94-25b |
अग्निं प्रदक्षिणं कृत्वा ब्राह्मणांश्च जनार्दनः। | 5-94-26a 5-94-26b |
कुरुभिः संवृतः कृष्णो वृष्णिभिश्चाभिरक्षितः । | 5-94-27a 5-94-27b |
अन्वारुरोह दाशार्हं विदुरः सर्वधर्मवित्। | 5-94-28a 5-94-28b |
ततो दुर्योधनः कृष्णं शकुनिश्चापि सौबलः । | 5-94-29a 5-94-29b |
सात्यकिः कृतवर्मा च वृष्णीनां चापरे रथाः । | 5-94-30a 5-94-30b |
तेषां हेमपरिष्कारैर्युक्ताः परमवाजिभिः । | 5-94-31a 5-94-31b |
संमृष्टसंसिक्तरजः प्रतिपेदे महापथम् । | 5-94-32a 5-94-32b |
ततः प्रयाते दाशार्हे प्रावाद्यन्तैकपुष्कराः। | 5-94-33a 5-94-33b |
प्रवीराः सर्वलोकस्य युवानः सिंहविक्रमाः। | 5-94-34a 5-94-34b |
ततोऽन्ये बहुसाहस्रा विचित्राद्भुतवाससः । | 5-94-35a 5-94-35b |
गजाः पञ्चशतास्तत्र रथाश्चासन्सहस्रशः। | 5-94-36a 5-94-36b |
पुरं कुरूणां संवृत्तं द्रष्टुकामं जनार्दनम् । | 5-94-37a 5-94-37b |
वेदिकामाश्रिताभिश्च समाक्रान्तान्यनेकशः । | 5-94-38a 5-94-38b |
स पूज्यमानः कुरुभिः संश्रृण्वन्मधुराः कथाः । | 5-94-39a 5-94-39b |
ततः सभां समासाद्य केशवस्यानुयायिनः। | 5-94-40a 5-94-40b |
ततः सा समितिः सर्वा राज्ञाममिततेजसाम्। | 5-94-41a 5-94-41b |
ततोऽभ्याशंगते कृष्णे समहृष्यन्नराधिपाः। | 5-94-42a 5-94-42b |
आसाद्य तु सभाद्वारमृषभः सर्वसात्वताम् । | 5-94-43a 5-94-43b |
नवमेघप्रतीकाशां ज्वलन्तीमिव तेजसा । | 5-94-44a 5-94-44b |
पाणौ गृहीत्वा विदुरं सात्यकिं च महायशाः। | 5-94-45a 5-94-45b |
अग्रतो वासुदेवस्य कर्णदुर्योधनावुभौ । | 5-94-46a 5-94-46b |
धृतराष्ट्रं पुरस्कृत्य भीष्मद्रोणादयस्ततः । | 5-94-47a 5-94-47b |
अभ्यागच्छति दाशार्हे प्रज्ञाचक्षुर्नरेश्वर। | 5-94-48a 5-94-48b |
उत्तिष्ठति महाराजे धृतराष्ट्रे जनेश्वरे । | 5-94-49a 5-94-49b |
आसनं सर्वतोभद्रं जाम्बूनदपरिष्कृतम् । | 5-94-50a 5-94-50b |
स्मयमानस्तु राजानं भीष्मद्रोणौ च माधवः । | 5-94-51a 5-94-51b |
तत्र केशवमानर्चुः सम्यगभ्यागतं सभाम्। | 5-94-52a 5-94-52b |
तत्र तिष्ठन्स दाशार्हो राजमध्ये परन्तपः। | 5-94-53a 5-94-53b |
ततस्तानभिसंप्रेक्ष्य नारदप्रमुखानृषीन् ।। | 5-94-54a 5-94-54b |
पार्थिवीं समितिं द्रष्टुमृषयोऽभ्यागता नृप ।। | 5-94-55a 5-94-55b |
नैतेष्वनुपविष्टेषु शक्यं केनचिदासितुम् ।। | 5-94-56a 5-94-56b |
वैशंपायन उवाच। | 5-94-57x |
ऋषीञ्शान्तनवो दृष्ट्वा सभाद्वारमुपस्थितान् । | 5-94-57a 5-94-57b |
आसनान्यथ मृष्टानि महान्ति विपुलानि च ।। | 5-94-58a 5-94-58b |
तेषु तत्रोपविष्टेषु गृहीतार्घ्येषु भारत ।। | 5-94-59a 5-94-59b |
दुःशासनः सात्यकये ददावासनमुत्तमम् ।। | 5-94-60a 5-94-60b |
अविदूरे तु कृष्णस्य कर्णदुर्योधनावुभौ ।। | 5-94-61a 5-94-61b |
गान्धारराजः शकुनिर्गान्धारैरभिरक्षितः ।। | 5-94-62a 5-94-62b |
विदुरो मणिपीठे तु शुक्लस्पर्ध्याजिनोत्तरे ।। | 5-94-63a 5-94-63b |
चिरस्य दृष्ट्वा दाशार्हं राजानः सर्व एव ते ।। | 5-94-64a 5-94-64b |
अतसीपुष्पसङ्काशः पीतवासा जनार्दनः ।। | 5-94-65a 5-94-65b |
ततस्तूष्णीं सर्वमासीद्गोविन्दगतमानसम् । | 5-94-66a 5-94-66b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-94-31 चित्राश्च ते रथाश्च ।। 5-94-33 एकपुष्कराः काहलाः ।।
उद्योगपर्व-093 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | उद्योगपर्व-095 |