महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-056
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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सञ्जयेन पाण्डवभावं बुभुत्सुं दुर्योधनंप्रति तेषां युद्धोत्कण्ठाकथनपूर्वकं तद्रथाश्ववर्णनम् ।। 1 ।।
दुर्योधन उवाच। | 5-56-1x |
अक्षौहिणीः सप्त लब्ध्वा राजभिः सह सञ्जय। | 5-56-1a 5-56-1b |
सञ्जय उवाच। | 5-56-2x |
अतीव मुदितो राजन्युद्धप्रेप्युर्युधिष्ठिरः। | 5-56-2a 5-56-2b |
रथं तु दिव्यं कौन्तेयः सर्वा विभ्राजयन्दिशः। | 5-56-3a 5-56-3b |
तमपश्याम सन्नद्धं मेघं विद्युद्युतं यथा। | 5-56-4a 5-56-4b 5-56-4c |
बीभत्सुर्मां यथोवाच तथाऽवैम्यहमप्युत ।। | 5-56-5a |
दुर्योधन उवाच। | 5-56-6x |
प्रशंसस्यभिनन्दंस्तान्पार्थानक्षपराजितान्। | 5-56-6a 5-56-6b |
सञ्जय उवाच। | 5-56-7x |
भौमनः सह शक्रेण बहुचित्रं विशांपते। | 5-56-7a 5-56-7b |
ध्वजे हि तस्मिन्रूपाणि चक्रुस्ते देवमायया। | 5-56-8a 5-56-8b |
भीमसेनानुरोधायक हनूमान्मारुतात्मजः। | 5-56-9a 5-56-9b |
सर्वा दिशो योजनमात्रमन्तरं | 5-56-10a 5-56-10b 5-56-10c 5-56-10d |
यथाऽऽकाशे शक्रधनुः प्रकाशते | 5-56-11a 5-56-11b 5-56-11c 5-56-11d |
यथाऽग्निधूमो दिवमेति रुद्ध्वा। | 5-56-12a 5-56-12b 5-56-12c 5-56-12d |
हतंहतं दत्तवरं पुरस्तात् | 5-56-13f |
तथा राज्ञो दन्तवर्णा बृहन्तो | 5-56-14a 5-56-14b 5-56-14c 5-56-14d |
कल्माषाङ्गास्तित्तिरिचित्रपृष्ठा | 5-56-15a 5-56-15b 5-56-15c 5-56-15d |
माद्रीपुत्रं नकुलं त्वाजमीढं | 5-56-16a 5-56-16b 5-56-16c 5-56-16d |
तुल्याश्चैभिर्वयसा विक्रमेण | 5-56-17a 5-56-17b 5-56-17c 5-56-17d |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-56-3 मन्त्रं अस्त्रप्रयोजकं जिज्ञासमानः परीक्षितुमिच्छन् ।। 5-56-7 भौमनो विश्वकर्मा। धाता प्रजापतिः ।। 5-56-8 ते त्वष्टृशक्रधातारः रूपाणि चक्रुः ।। 5-56-10 रुरोध स्वतेजसेति शेषः ।। 5-56-12 भारो रथे रोधुः द्वारादौ द्वयमपि न भवेत् ।। 5-56-13 यत्तत् अश्वानां शतं हतंहतं पुनःपुनः कतिपयाश्वहननेपि भावात् शतं पूर्यते। यतः पुरस्ताद्दत्तवरम् ।। 5-56-17 देवदत्ताः चित्ररथेन दत्ताः ।।
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