महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-131
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श्रीकृष्णेन सभायां विश्वरूपप्रदर्शनम् ।। 1 ।।
कृष्णप्रसादाल्लब्धचक्षुषा धृतराष्ट्रेण कृष्णं दृष्टवता वक्षुषा इतरेषामदि दृक्षया कृष्णवरात्पुनः स्वचक्षुषोरन्तर्धानाधिगमः ।। 2 ।।
कृष्णेन तद्रूपोपसंहारपूर्वकं पूर्वरूपं स्वीकृत्य रथाधिरोहणेन कुन्तीसमीपगमनम् ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच । | 5-131-1x |
विदुरेणैवमुक्तस्तु केशवः शत्रुपूगहा । | 5-131-1a 5-131-1b |
एकोऽहमिति यन्मोहान्मन्यसे मां सुयोधन। | 5-131-2a 5-131-2b |
इहैव पाण्डवाः सर्वे तथैवान्धकवृष्णयः । | 5-131-3a 5-131-3b |
एवमुक्त्वा जाहासोच्चैः केशवः परवीरहा । | 5-131-4a 5-131-4b 5-131-4c |
अङ्गुष्ठमात्रास्त्रिदशा बभूवुः पावकार्चिषः । | 5-131-5a 5-131-5b |
लोकपाला भुजेष्वासन्नग्निरास्यादजायत। | 5-131-6a 5-131-6b |
मरुतश्च सहेन्द्रेण विश्वेदेवास्तथैव च। | 5-131-7a 5-131-7b |
प्रादुरास्तां तथा दोर्भ्यां सङ्कर्षणधनञ्जयौ। | 5-131-8a 5-131-8b |
भीमो युधिष्ठिरश्चैव माद्रीपुत्रौ च पृष्ठतः। | 5-131-9a 5-131-9b |
अग्रे बभूवुः कृष्णस्य समुद्यतमहायुधाः । | 5-131-10a 5-131-10b |
अदृश्यन्तोद्यतान्येव सर्वप्रहरणानि च। | 5-131-11a 5-131-11b |
नेत्राभ्यां नासिकाभ्यां च श्रोत्राभ्यां च समन्ततः । | 5-131-12a 5-131-12b |
रोमकूपेषु च तथा सूर्यस्येव मरीचयः । | 5-131-13a 5-131-13b |
तस्य वै नागलोकश्च गुल्फाधो ददृशे तदा। | 5-131-14a 5-131-14b |
ऊर्ध्वलोकाश्च सर्वेऽपि कुक्षौ तस्य व्यवस्थिताः । | 5-131-15a 5-131-15b |
अस्थीनि पर्वताः सर्वे वृक्षा रोमाणि तस्य हि। | 5-131-16a 5-131-16b |
तं दृष्ट्वा घोरमात्मानं केशवस्य महात्मनः । | 5-131-17a 5-131-17b |
ऋत द्रोणं च भीष्मं च विदुरं च महामतिम् । | 5-131-18a 5-131-18b |
प्रादात्तेषां स भगवान्दिव्यं चक्षुर्जनार्दनः ।। | 5-131-19a |
`धृतराष्ट्राय प्रददौ भगवान्दिव्यचक्षुषी । | 5-131-20a 5-131-20b |
ततो देवाः सगन्धर्वाः किन्नराश्च महोरगाः । | 5-131-21a 5-131-21b 5-131-21c |
क्रोधं प्रभो संहर संहर स्वं | 5-131-22a 5-131-22b 5-131-22c 5-131-22d |
त्वं च कर्ता विकर्ता च त्वमेव परिरक्षसे। | 5-131-23a 5-131-23b |
कियन्मात्रा महीपालाः किंवीर्याः किंपराक्रमाः । | 5-131-24a 5-131-24b 5-131-24c |
तद्दृष्ट्वा महदाश्चर्यं माधवस्य सभातले। | 5-131-25a 5-131-25b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-131-26x |
त्वमेव पुण्डरीकाक्ष सर्वस्य जगतो हितः। | 5-131-26a 5-131-26b |
भगवन्मम नेत्राभ्यामन्तर्धानं वृणे पुनः । | 5-131-27a 5-131-27b |
ततोऽब्रवीन्महाबाहुर्धृतराष्ट्रं जनार्दनः । | 5-131-28a 5-131-28b |
तत्राद्भुतं महाराज धृतराष्ट्रश्च चक्षुषी । | 5-131-29a 5-131-29b |
लब्धचक्षुषमासीनं धृतराष्ट्रं नराधिपाः । | 5-131-30a 5-131-30b |
चचाल च मही कृत्स्ना सागरश्चापि चुक्षुभे । | 5-131-31a 5-131-31b |
ततः स पुरुषव्याघ्रः सञ्जहार वपुः स्वकम् । | 5-131-32a 5-131-32b |
ततः सात्यकिमादाय पाणौ विदुरमेव च । | 5-131-33a 5-131-33b |
ऋषयोऽन्तर्हिता जग्मुस्ततस्ते नारदादयः । | 5-131-34a 5-131-34b |
तं प्रस्थितमभिप्रेक्ष्य कौरवाः सह राजभिः । | 5-131-35a 5-131-35b |
अचिन्तयन्नमेयात्मा सर्वं तद्राजमण्डलम् । | 5-131-36a 5-131-36b |
ततो रथेन शुभ्रेण महता किङ्किणीकिना । | 5-131-37a 5-131-37b |
सूपस्करेण शुभ्रेण वैयाघ्रेण वरूथिना । | 5-131-38a 5-131-38b |
तथैव रथमास्थाय कृतवर्मा महारथः । | 5-131-39a 5-131-39b |
उपस्थितरथं शौरिं प्रयास्यन्तमरिन्दमम् । | 5-131-40a 5-131-40b |
यावद्बलं मे पुत्रेषु पश्यतस्ते जनार्दन । | 5-131-41a 5-131-41b |
कुरूणां शममिच्छन्तं यतमानं च केशव । | 5-131-42a 5-131-42b |
न मे पापोऽस्त्यभिप्रायः पाण्डवान्प्रति केशव । | 5-131-43a 5-131-43b |
जानन्ति कुरवः सर्वे राजानश्चैव पार्थिवाः । | 5-131-44a 5-131-44b |
वैशंपायन उवाच। | 5-131-45x |
ततोऽब्रवीन्महाबाहुर्धृतराष्ट्रं जनार्दनः। | 5-131-45a 5-131-45b |
प्रत्यक्षमेतद्भवतां यद्वृत्तं कुरुसंसदि। | 5-131-46a 5-131-46b |
वदत्यनीशमात्मानं धृतराष्ट्रो महीपतिः । | 5-131-47a 5-131-47b |
आमन्त्र्य प्रस्थितं शौरिं रथस्थं पुरुषर्षभ । | 5-131-48a 5-131-48b |
भीष्मो द्रोणः कृपः क्षत्ता धृतराष्ट्रोऽथ बाह्लिकः। | 5-131-49a 5-131-49b |
ततो रथेन शुभ्रेण महता किङ्किणीकिना । | 5-131-50a 5-131-50b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-131-28 अदृश्यमाने दर्शनशक्तिरहिते ।। 5-131-38 वरूथिना रथगुप्तिमता ।। 5-131-46 मन्दो दुर्योधनः ।।
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