महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-068
← उद्योगपर्व-067 | महाभारतम् पञ्चमपर्व महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-068 वेदव्यासः |
उद्योगपर्व-069 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
भगवद्वेदनसाधनं पृष्टेन सञ्जयेन धृतराष्ट्रंप्रति तत्कथनम् ।। 1 ।। श्रीव्यासेन धृतराष्ट्रंप्रति सञ्जयाद्भगद्वेदनाभ्यनुज्ञा ।। 2 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-68-1x |
कथं त्वं माधवं वेत्थ सर्वलोकमहेश्वरम्। | 5-68-1a 5-68-1b |
सञ्जय उवाच। | 5-68-2x |
श्रृणु राजन्न ते विद्या मम विद्या न हीयते। | 5-68-2a 5-68-2b |
विद्यया तात जानामि त्रियुगं मधुसूदनम् । | 5-68-3a 5-68-3b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-68-4x |
गावल्गणेऽत्र का भक्तिर्या ते नित्या जनार्दने। | 5-68-4a 5-68-4b |
सञ्जय उवाच। | 5-68-5x |
मायां न सेवे भद्रं ते न वृथाधर्ममाचरे। | 5-68-5a 5-68-5b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-68-6x |
दुर्योधन हृषीकेशं प्रपद्यस्व जनार्दनम्। | 5-68-6a 5-68-6b |
दुर्योधन उवाच। | 5-68-7x |
भगवान्देवकीपुत्रो लोकांश्चेन्निहनिष्यति। | 5-68-7a 5-68-7b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-68-8x |
अवाग्गान्धारि पुत्रस्ते गच्छत्येष सुदुर्मतिः । | 5-68-8a 5-68-8b |
गान्धार्युवाच। | 5-68-9x |
ऐश्वर्यकाम दुष्टात्मन्वृद्धानां शासनातिग। | 5-68-9a 5-68-9b |
वर्धयन्दुर्हृदां प्रीतिं मां च शोकेन वर्धयन् । | 5-68-10a 5-68-10b |
व्यास उवाच। | 5-68-11x |
प्रियोऽसि राजन्कृष्णस्य धृतराष्ट्र निबोध मे। | 5-68-11a 5-68-11b |
जानात्येष हृषीकेशं पुराणं यच्च वै परम्। | 5-68-12a 5-68-12b |
वैचित्रवीर्य पुरुषाः क्रोधहर्षसमावृताः । | 5-68-13a 5-68-13b |
यमस्य वशमायान्ति काममूढाः पुनः पुनः । | 5-68-14a 5-68-14b |
एष एकायनः पन्था येन यान्ति मनीषिणः । | 5-68-15a 5-68-15b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-68-16x |
अङ्ग सञ्जय मे शंस पन्थानमकुतोभयम्। | 5-68-16a 5-68-16b |
सञ्जय उवाच। | 5-68-17x |
नाकृतात्मा कृतात्मानं जातु विद्याञ्जनार्दनम् । | 5-68-17a 5-68-17b |
इन्द्रियाणामुदीर्णानां कामत्यागोऽप्रमादतः। | 5-68-18a 5-68-18b |
इन्द्रियाणां यमे यत्तो भव राजन्नतन्द्रितः । | 5-68-19a 5-68-19b |
एतज्ज्ञानं विदुर्विप्रा ध्रुवमिन्द्रियधारणम्। | 5-68-20a 5-68-20b |
अप्राप्यः केशवो राजन्निन्द्रियैरजितैर्नृभिः। | 5-68-21a 5-68-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-68-4 भक्तिः आराध्यत्वेन ज्ञानं एच्च कीदृशम् ।। 5-68-5 वृथाधर्मं भगवदर्पणं विना न चरामि। शुद्धभावं मनसः कामक्रोधादिराहित्येन नैर्मल्यम् ।। 5-68-12 ऐकाग्र्यं शुश्रूषमाणं सेवमानं त्वां मोक्ष्यते मोचयिष्यति ।। 5-68-13 सिताः बद्धाः । पाशैः कामादिभिः ।। 5-68-14 अन्धनेत्रा अन्धश्चासौ नेता च तेन ।। 5-68-17 आत्मनः स्वस्य इन्द्रियनिग्रहादन्यत्र इन्द्रियनिग्रहंविना क्रियायागादिरूपा उपायः प्राप्त्युपायो नास्ति ।। 5-68-21 योगात् चित्तवृत्तिनिरोधात्। वशी ईश्वरः। तत्त्वे स्वयाथात्म्ये विषये। प्रसीदति ज्ञानदानेन अनुगृह्णाति ।।
उद्योगपर्व-067 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | उद्योगपर्व-069 |