महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-047
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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पाण्डववचनशुश्रूषया धृतराष्ट्रादीनां सभाप्रवेशः ।। 1 ।। सञ्जयेन धृतराष्ट्राय पाण्डवान्प्रति तत्सन्देशकथनम् ।। 2 ।। श्रीकृष्णवाक्यकथनं चोदितेन सञ्जयेन स्वस्य कृष्णार्जुनान्तःपुरप्रवेशकथनपूर्वकं तत्कथनम् ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 5-47-1x |
एवं सनत्सुजातेन विदुरेण च धीमता। | 5-47-1a 5-47-1b |
तस्यां रजन्यां व्युष्टायां राजानः सर्व एव ते। | 5-47-2a 5-47-2b |
शुश्रूषमाणाः पार्थानां वाचो धर्मार्थसंहिताः । | 5-47-3a 5-47-3b |
सुधावदातां विस्तीर्णां कनकाजिरभूषिताम् । | 5-47-4a 5-47-4b |
रुचिरैरासनैः स्तीर्णां काञ्चनैर्दारवैरपि। | 5-47-5a 5-47-5b |
भीष्मो द्रोणः कृपः शल्यः कृतवर्मा जयद्रथः । | 5-47-6a 5-47-6b |
विदुरश्च महाप्राज्ञो युयुत्सुश्च महारथः। | 5-47-7a 5-47-7b 5-47-7c |
दुःशासनश्चित्रसेनः शकुनिश्चापि सौबलः। | 5-47-8a 5-47-8b |
कुरुराजं पुरस्कृत्य दुर्योधनममर्षणम्। | 5-47-9a 5-47-9b |
आविशद्भिस्तदा राजञ्शूरैः परिघबाहुभिः । | 5-47-10a 5-47-10b |
ते प्रविश्य महेष्वासाः सभां सर्वे महौजसः । | 5-47-11a 5-47-11b |
आसनस्थेषु सर्वेषु तेषु राजसु भारत। | 5-47-12a 5-47-12b |
अयं सरथ आयाति योऽयासीत्पाण्डवान्प्रति। | 5-47-13a 5-47-13b |
..पेयाय स तु क्षिप्रं रथात्प्रस्कन्द्य कुण्डली। | 5-47-14a 5-47-14b |
सञ्जय उवाच। | 5-47-15x |
प्राप्तोऽस्मि पाण्डवान्गत्वा तं विजानीत कौरवाः। | 5-47-15a 5-47-15b |
अभिवादयन्ति वृद्धांश्च वयस्यांश्च वयस्यवत्। | 5-47-16a 5-47-16b |
यथाहं धृतराष्ट्रेण शिष्टः पूर्वमितो गतः। | 5-47-17a 5-47-17b |
` धृतराष्ट्र उवाच। | 5-47-18x |
पृच्छामि त्वां सञ्जय राजमध्ये | 5-47-18a 5-47-18b 5-47-18c 5-47-18d |
सञ्जय उवाच। | 5-47-19x |
आगुल्फेभ्योऽभिसंवीतः प्रयतोऽहं कृताञ्जलिः। | 5-47-19a 5-47-19b |
न चाभिमन्युर्न यमौ तं देशमभिजग्मतुः । | 5-47-20a 5-47-20b |
उभौ मध्वासवक्षीबौ वरचन्दनरूषितौ । | 5-47-21a 5-47-21b |
नैकरत्नविचित्रं च काञ्चनं च वरासनम्। | 5-47-22a 5-47-22b |
सत्याङ्कमुपधानं तु कृत्वा शेते जनार्दनः। | 5-47-23a 5-47-23b 5-47-23c |
काञ्चनं पादपीठं तु पार्थो वै प्रादिशन्मुदा। | 5-47-24a 5-47-24b |
ऊर्ध्वरेखाङ्कितौ पादौ पार्थस्य शुभलक्षणौ। | 5-47-25a 5-47-25b |
न नूनं कल्मषं किञ्चिन्मम कर्मसु विद्यते। | 5-47-26a 5-47-26b |
विस्मयो मे महानासीदास्त्रं मे बहुसङ्गतम्। | 5-47-27a 5-47-27b |
श्यामौ बृहन्तौ तरुणौ नागाविव समुच्छ्रितौ । | 5-47-28a 5-47-28b |
ततोऽभ्यचिन्तयं तत्र दृष्ट्वा तौ पुरुषर्षभौ । | 5-47-29a 5-47-29b 5-47-29c |
सत्कृतश्चान्नपानाभ्यामाच्छन्नो लब्धसत्क्रियः । | 5-47-30a 5-47-30b |
धनुर्धरोचितेनाथ पाणिनैकं सलक्षणम्। | 5-47-31a 5-47-31b |
इन्द्रकेतुरिवोत्थाय दिव्याभरणभूषितः। | 5-47-32a 5-47-32b |
स वाचं वदतां श्रेष्ठ आददे वचनक्षमाम्। | 5-47-33a 5-47-33b |
बहिश्चरस्य प्राणस्य प्रियस्य प्रियकारिणः। | 5-47-34a 5-47-34b |
वचनं वचनज्ञस्य शिक्षाक्षरसमन्वितम्। | 5-47-35a 5-47-35b |
श्रीभगवानुवाच। | 5-47-36x |
सञ्जयैतद्वचो ब्रूयाः प्राप्य क्षत्रियसंसदम्। | 5-47-36a 5-47-36b |
अर्थांस्त्यजत पार्थेषु सुखमाप्नुत कामजम्। | 5-47-37a 5-47-37b |
यजध्वं विविधैर्यज्ञैर्दक्षिणाश्च प्रयच्छत। | 5-47-38a 5-47-38b |
ऋणं प्रवृद्धमिव मे हृदयान्नापसर्पति। | 5-47-39a 5-47-39b |
तेजोमयं दुराधर्पं बिभ्रता गाण्डिवं धनुः। | 5-47-40a 5-47-40b |
कृष्णस्यैतद्वचः श्रुत्वा महन्मे भयमाविशत्। | 5-47-41a 5-47-41b |
सोमेन्द्रसदृशौ वीरौ तौ मन्दो नावबुध्यते। | 5-47-42a 5-47-42b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
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