महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-003
← उद्योगपर्व-002 | महाभारतम् पञ्चमपर्व महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-003 वेदव्यासः |
उद्योगपर्व-004 → |
|
सात्यकिना बलरामवचनप्रतिक्षेपपूर्वकं दुर्योधननिग्रहनिर्धारणम् ।। 1 ।।
सात्यकिरुवाच। | 5-3-1x |
यादृशः पुरुषस्यात्मा तादृशं संप्रभाषते। | 5-3-1a 5-3-1b |
सन्ति वै पुरुषाः शूराः सन्ति कापुरुषास्तथा। | 5-3-2a 5-3-2b |
एकस्मिन्नेव जायेते कुले क्लीबमहाबलौ । | 5-3-3a 5-3-3b |
नाभ्यसूयामि ते वाक्यं ब्रुवतो लाङ्गलध्वज। | 5-3-4a 5-3-4b |
कथं हि धर्मराजस्य दोषमल्पमपि ब्रुवन्। | 5-3-5a 5-3-5b |
समाहूय महात्मानं जितवन्तोऽक्षकोविदाः। | 5-3-6a 5-3-6b |
यदि कुन्तीसुतं गेहे क्रीडन्तं भ्रातृभिः सह । | 5-3-7a 5-3-7b |
समाहूय तु राजानं क्षत्रधर्मरतं सदा। | 5-3-8a 5-3-8b |
कथं प्रणिपतेच्चायमिह कृत्वा पणं परम्। | 5-3-9a 5-3-9b |
यद्ययं परवित्तानि कामयेत युधिष्ठिरः। | 5-3-10a 5-3-10b |
कथं च धर्मयुक्तास्ते न च राज्यं जिहीर्षवः। | 5-3-11a 5-3-11b |
अनुनीता हि भीष्मेण द्रोणेन विदुरेण च। | 5-3-12a 5-3-12b |
अहं तु ताञ्छितैर्बाणैरनुनीय रणे बलात्। | 5-3-13a 5-3-13b |
अथ ते न व्यवस्यन्ति प्रणिपाताय धीमतः। | 5-3-14a 5-3-14b |
न हि ते युयुधानस्य संरब्धस्य युयुत्सतः। | 5-3-15a 5-3-15b |
को हि गाण्डीवधन्वानं कश्च चक्रायुधं युधि । | 5-3-16a 5-3-16b |
यमौ च दृढधन्वानौ यमकल्पौ महाद्युती। | 5-3-17a 5-3-17b |
को जिजीविषुरासादेद्धृष्टद्युम्नं च पार्षतम्। | 5-3-18a 5-3-18b |
समप्रमाणान्पाण्डूनां समवीर्यान्मदोत्कटान् । | 5-3-19a 5-3-19b |
गदप्रद्युम्नसाम्बांश्च कालसूर्यानलोपमान्। | 5-3-20a 5-3-20b |
कर्णं चैव निहत्याजावभिषेक्ष्याम पाण्डवम् । | 5-3-21a 5-3-21b |
अधर्म्यमयशस्यं च शात्रवाणां प्रयाचनम्। | 5-3-22a 5-3-22b |
धार्तराष्ट्रो ह्ययुद्धेन न राज्यं दातुमिच्छति। | 5-3-23a 5-3-23b 5-3-23c |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-3-3 फलाफलावती। सुपो लुक् आर्षः पूर्वसवर्णो वा ।। 3 ।।
उद्योगपर्व-002 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | उद्योगपर्व-004 |