महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-081
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श्रीकृष्णेन द्यूतसभायां स्वानुभूतदुःसहदुःखमभिनिवेद्य रुदन्तीं द्रौपदींप्रति सुयोधनादिनिधनप्रतिज्ञानपूर्वकं समाश्वासनम् ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 5-81-1x |
राज्ञस्तु वचनं श्रुत्वा धर्मार्थसहितं हितम्। | 5-81-1a 5-81-1b |
सुता द्रुपदराजस्य स्वसितायतमूर्धजा । | 5-81-2a 5-81-2b |
भीमसेनं च संशान्तं दृष्ट्वा परमदुर्मनाः । | 5-81-3a 5-81-3b |
विदितं ते महाबाहो धर्मज्ञ मधुसूदन । | 5-81-4a 5-81-4b |
धृतराष्ट्रस्य पुत्रेण सामात्येन जनार्दन। | 5-81-5a 5-81-5b |
युधिष्ठिरस्य दाशार्ह तच्चापि विदितं तव। | 5-81-6a 5-81-6b |
पञ्च नस्तात दीयन्तां ग्रामा इति महाद्युते। | 5-81-7a 5-81-7b |
अवसानं महाबाहो कंचिदेकं च पञ्चमम्। | 5-81-8a 5-81-8b |
न चापि ह्यकरोद्वाक्यं श्रुत्वा कृष्ण सुयोधनः । | 5-81-9a 5-81-9b |
अप्रदानेन राज्यस्य यदि कृष्ण सुयोधनः। | 5-81-10a 5-81-10b |
शक्ष्यन्ति हि महाबाहो पाण्डवाः सृञ्जयैः सह। | 5-81-11a 5-81-11b |
न हि साम्ना न दानेन शक्योऽर्थस्तेषु कश्चन । | 5-81-12a 5-81-12b |
साम्ना दानेन वा कृष्ण ये न शाम्यन्ति शत्रवः। | 5-81-13a 5-81-13b |
तस्मात्तेषु महादण्डः क्षेप्तव्यः क्षिप्रमच्युत। | 5-81-14a 5-81-14b |
एतत्समर्थं पार्थानां तव चैव यशस्करम्। | 5-81-15a 5-81-15b |
क्षत्रियेण हि हन्तव्यः क्षत्रियो लोभमास्थितः। | 5-81-16a 5-81-16b |
अन्यत्र ब्राह्मणात्तात सर्वपापेष्ववस्थितात्। | 5-81-17a 5-81-17b |
यथाऽवध्ये वध्यमाने भवेद्दोषो जनार्दन । | 5-81-18a 5-81-18b |
यथा त्वां न स्पृशेदेष दोषः कृष्ण तथा कुरु। | 5-81-19a 5-81-19b |
पुनरुक्तं च वक्ष्यामि विश्रम्भेण जनार्दन। | 5-81-20a 5-81-20b |
सुता द्रुपदराजस्य वेदिमध्यात्समुत्थिता। | 5-81-21a 5-81-21b |
आजमूढकुलं प्राप्त स्नुषा पाण्डोर्महात्मनः । | 5-81-22a 5-81-22b |
सुता मे पञ्चभिर्वीरैः पञ्च जाता महारथाः । | 5-81-23a 5-81-23b |
साऽहं केशग्रहं प्राप्ता परिक्लिष्टा सभां गता। | 5-81-24a 5-81-24b |
जीवस्तु पाण्डुपुत्रेषु पञ्चालेष्वथ वृष्णिषु। | 5-81-25a 5-81-25b |
निरमर्षेष्वचेष्टेषु प्रेक्ष्यमाणेषु पाण्डुषु । | 5-81-26a 5-81-26b |
यत्र मां भगवान्राजा श्वशुरो वाक्यमब्रवीत्। | 5-81-27a 5-81-27b |
अदासाः पाण्डवाः सन्तु सरथाः सायुधा इति। | 5-81-28a 5-81-28b |
एवंविधानां दुःखानामभिज्ञोऽसि जनार्दन । | 5-81-29a 5-81-29b |
नन्वहं कृष्ण भीष्मस्य धृतराष्ट्रस्य चोभयोः । | 5-81-30a 5-81-30b |
धिक्पार्थस्य धनुष्मत्तां भीमसेनस्य धिग्बलम्। | 5-81-31a 5-81-31b |
यदि तेऽहमनुग्राह्या यदि तेऽस्ति कृपा मयि। | 5-81-32a 5-81-32b |
वैशंपायन उवाच। | 5-81-33x |
इत्युक्त्वा मृदुसंहारं वृजिनाग्रं सुदर्शनम्। | 5-81-33a 5-81-33b |
सर्वलक्षणसंपन्नं महाभुजगवर्चसम् । | 5-81-34a 5-81-34b |
पद्माक्षी पुण्डरीकाक्षमुपेत्य गजगामिनी । | 5-81-35a 5-81-35b |
अयं ते पुण्डरीकाक्ष दुःशासनकरोद्धृतः। | 5-81-36a 5-81-36b |
यदि भीमार्जुनौ कृष्ण कृपणौ सन्धिकामुकौ । | 5-81-37a 5-81-37b |
पञ्च चैव महावीर्याः पुत्रा मे मधुसूदन । | 5-81-38a 5-81-38b |
दुःशासनभुजं श्यामं संछिन्नं पांसुकुण्ठितम्। | 5-81-39a 5-81-39b |
त्रयोदश हि वर्षाणि प्रतीक्षन्त्या गतानि मे। | 5-81-40a 5-81-40b |
विदीर्यते मे हृदयं भीमवाक्शल्यपीडितम् । | 5-81-41a 5-81-41b |
इत्युक्त्वा बाष्परुद्धेन कण्ठेनायतलोचना । | 5-81-42a 5-81-42b |
स्तनौ पीनायतश्रोणी सहितावभिवर्षती। | 5-81-43a 5-81-43b |
तामुवाच महाबाहुः केशवः परिसान्त्वयन्। | 5-81-44a 5-81-44b |
एवं ता भीरु रोस्त्यन्ति निहतज्ञातिबान्धवाः। | 5-81-45a 5-81-45b |
अहं च तत्करिष्यामि भीमार्जुनयमैः सह । | 5-81-46a 5-81-46b |
धार्तराष्ट्राः कालपक्वा न चेच्छृण्वन्ति मे वचः। | 5-81-47a 5-81-47b |
चलेद्धि हिमवाञ्शैलो मेदिनी शतधा भवेत्। | 5-81-48a 5-81-48b |
` शुष्येत्तोयनिधिः कृष्णे न मे मोघं वचो भवेत्।' | 5-81-49a 5-81-49b 5-81-49c |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-81-11 प्रतिसमासितुं प्रतिपक्षतया स्थातुम् ।। 5-81-15 समर्थं युक्तम् ।। 5-81-17 प्रमृतं प्रदत्तं च तदग्रं च तस्य भोक्ता प्रसृताग्रभुक् ।। 5-81-33 मृदुसंहारं वेणीरूपेण समाहृतमपि मृदुम्। वृजिनाग्रं कुटिलाग्रं केशवत्सूक्ष्माग्रं वा। वृजिनः कुटिलेऽन्यवदिति विश्वः। सुदर्शनं रमणीयम् ।। 5-81-45 रोत्स्यन्ति रोदिष्यन्ति ।।
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