ब्रह्मपुराणम्/अध्यायः १८२

विकिस्रोतः तः
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
← अध्यायः १८१ ब्रह्मपुराणम्
अध्यायः १८२
वेदव्यासः
अध्यायः १८३ →
  1. अध्यायः १
  2. अध्यायः २
  3. अध्यायः ३
  4. अध्यायः ४
  5. अध्यायः ५
  6. अध्यायः ६
  7. अध्यायः ७
  8. अध्यायः ८
  9. अध्यायः ९
  10. अध्यायः १०
  11. अध्यायः ११
  12. अध्यायः १२
  13. अध्यायः १३
  14. अध्यायः १४
  15. अध्यायः १५
  16. अध्यायः १६
  17. अध्यायः १७
  18. अध्यायः १८
  19. अध्यायः १९
  20. अध्यायः २०
  21. अध्यायः २१
  22. अध्यायः २२
  23. अध्यायः २३
  24. अध्यायः २४
  25. अध्यायः २५
  26. अध्यायः २६
  27. अध्यायः २७
  28. अध्यायः २८
  29. अध्यायः २९
  30. अध्यायः ३०
  31. अध्यायः ३१
  32. अध्यायः ३२
  33. अध्यायः ३३
  34. अध्यायः ३४
  35. अध्यायः ३५
  36. अध्यायः ३६
  37. अध्यायः ३७
  38. अध्यायः ३८
  39. अध्यायः ३९
  40. अध्यायः ४०
  41. अध्यायः ४१
  42. अध्यायः ४२
  43. अध्यायः ४३
  44. अध्यायः ४४
  45. अध्यायः ४५
  46. अध्यायः ४६
  47. अध्यायः ४७
  48. अध्यायः ४८
  49. अध्यायः ४९
  50. अध्यायः ५०
  51. अध्यायः ५१
  52. अध्यायः ५२
  53. अध्यायः ५३
  54. अध्यायः ५४
  55. अध्यायः ५५
  56. अध्यायः ५६
  57. अध्यायः ५७
  58. अध्यायः ५८
  59. अध्यायः ५९
  60. अध्यायः ६०
  61. अध्यायः ६१
  62. अध्यायः ६२
  63. अध्यायः ६३
  64. अध्यायः ६४
  65. अध्यायः ६५
  66. अध्यायः ६६
  67. अध्यायः ६७
  68. अध्यायः ६८
  69. अध्यायः ६९
  70. अध्यायः ७०
  71. अध्यायः ७१
  72. अध्यायः ७२
  73. अध्यायः ७३
  74. अध्यायः ७४
  75. अध्यायः ७५
  76. अध्यायः ७६
  77. अध्यायः ७७
  78. अध्यायः ७८
  79. अध्यायः ७९
  80. अध्यायः ८०
  81. अध्यायः ८१
  82. अध्यायः ८२
  83. अध्यायः ८३
  84. अध्यायः ८४
  85. अध्यायः ८५
  86. अध्यायः ८६
  87. अध्यायः ८७
  88. अध्यायः ८८
  89. अध्यायः ८९
  90. अध्यायः ९०
  91. अध्यायः ९१
  92. अध्यायः ९२
  93. अध्यायः ९३
  94. अध्यायः ९४
  95. अध्यायः ९५
  96. अध्यायः ९६
  97. अध्यायः ९७
  98. अध्यायः ९८
  99. अध्यायः ९९
  100. अध्यायः १००
  101. अध्यायः १०१
  102. अध्यायः १०२
  103. अध्यायः १०३
  104. अध्यायः १०४
  105. अध्यायः १०५
  106. अध्यायः १०६
  107. अध्यायः १०७
  108. अध्यायः १०८
  109. अध्यायः १०९
  110. अध्यायः ११०
  111. अध्यायः १११
  112. अध्यायः ११२
  113. अध्यायः ११३
  114. अध्यायः ११४
  115. अध्यायः ११५
  116. अध्यायः ११६
  117. अध्यायः ११७
  118. अध्यायः ११८
  119. अध्यायः ११९
  120. अध्यायः १२०
  121. अध्यायः १२१
  122. अध्यायः १२२
  123. अध्यायः १२३
  124. अध्यायः १२४
  125. अध्यायः १२५
  126. अध्यायः १२६
  127. अध्यायः १२७
  128. अध्यायः १२८
  129. अध्यायः १२९
  130. अध्यायः १३०
  131. अध्यायः १३१
  132. अध्यायः १३२
  133. अध्यायः १३३
  134. अध्यायः १३४
  135. अध्यायः १३५
  136. अध्यायः १३६
  137. अध्यायः १३७
  138. अध्यायः १३८
  139. अध्यायः १३९
  140. अध्यायः १४०
  141. अध्यायः १४१
  142. अध्यायः १४२
  143. अध्यायः १४३
  144. अध्यायः १४४
  145. अध्यायः १४५
  146. अध्यायः १४६
  147. अध्यायः १४७
  148. अध्यायः १४८
  149. अध्यायः १४९
  150. अध्यायः १५०
  151. अध्यायः १५१
  152. अध्यायः १५२
  153. अध्यायः १५३
  154. अध्यायः १५४
  155. अध्यायः १५५
  156. अध्यायः १५६
  157. अध्यायः १५७
  158. अध्यायः १५८
  159. अध्यायः १५९
  160. अध्यायः १६०
  161. अध्यायः १६१
  162. अध्यायः १६२
  163. अध्यायः १६३
  164. अध्यायः १६४
  165. अध्यायः १६५
  166. अध्यायः १६६
  167. अध्यायः १६७
  168. अध्यायः १६८
  169. अध्यायः १६९
  170. अध्यायः १७०
  171. अध्यायः १७१
  172. अध्यायः १७२
  173. अध्यायः १७३
  174. अध्यायः १७४
  175. अध्यायः १७५
  176. अध्यायः १७६
  177. अध्यायः १७७
  178. अध्यायः १७८
  179. अध्यायः १७९
  180. अध्यायः १८०
  181. अध्यायः १८१
  182. अध्यायः १८२
  183. अध्यायः १८३
  184. अध्यायः १८४
  185. अध्यायः १८५
  186. अध्यायः १८६
  187. अध्यायः १८७
  188. अध्यायः १८८
  189. अध्यायः १८९
  190. अध्यायः १९०
  191. अध्यायः १९१
  192. अध्यायः १९२
  193. अध्यायः १९३
  194. अध्यायः १९४
  195. अध्यायः १९५
  196. अध्यायः १९६
  197. अध्यायः १९७
  198. अध्यायः १९८
  199. अध्यायः १९९
  200. अध्यायः २००
  201. अध्यायः २०१
  202. अध्यायः २०२
  203. अध्यायः २०३
  204. अध्यायः २०४
  205. अध्यायः २०५
  206. अध्यायः २०६
  207. अध्यायः २०७
  208. अध्यायः २०८
  209. अध्यायः २०९
  210. अध्यायः २१०
  211. अध्यायः २११
  212. अध्यायः २१२
  213. अध्यायः २१३
  214. अध्यायः २१४
  215. अध्यायः २१५
  216. अध्यायः २१६
  217. अध्यायः २१७
  218. अध्यायः २१८
  219. अध्यायः २१९
  220. अध्यायः २२०
  221. अध्यायः २२१
  222. अध्यायः २२२
  223. अध्यायः २२३
  224. अध्यायः २२४
  225. अध्यायः २२५
  226. अध्यायः २२६
  227. अध्यायः २२७
  228. अध्यायः २२८
  229. अध्यायः २२९
  230. अध्यायः २३०
  231. अध्यायः २३१
  232. अध्यायः २३२
  233. अध्यायः २३३
  234. अध्यायः २३४
  235. अध्यायः २३५
  236. अध्यायः २३६
  237. अध्यायः २३७
  238. अध्यायः २३८
  239. अध्यायः २३९
  240. अध्यायः २४०
  241. अध्यायः २४१
  242. अध्यायः २४२
  243. अध्यायः २४३
  244. अध्यायः २४४
  245. अध्यायः २४५
  246. अध्यायः २४६

श्रीकृष्णोत्पत्तिकथानिरूपणम्
व्यास उवाच
यथोक्तं सा जगद्धात्री देवदेवेन वै पुरा।
षड्गर्भगर्भविन्यासं चक्रे चान्यस्य कर्षणम्।। १८२.१ ।।

सप्तमे रोहिणीं प्राप्ते गर्भे गर्भे ततो हरिः।
लोकत्रयोपकाराय देवक्याः प्रविवेश वै।। १८२.२ ।।

योगनिद्रा यशोदायास्तस्मिन्नेव ततो दिने।
संभूता जठरे तद्वद्यथोक्तं परमेष्ठिना।। १८२.३ ।।

ततो ग्रहगणः सम्यक्प्रचचार दिवि द्विजाः।
विष्णोरंशे महीं यात ऋतवोऽप्यभवञ्शुभाः।। १८२.४ ।।

नोत्सेहे देवीकं द्रष्टुं कश्चिदप्यतितेजसा
जात्वल्यमानां तां दृष्ट्वा मनांसि क्षोभमाययुः।। १८२.५ ।।

अदृष्टां पुरुषैः स्त्रीभिर्देवकीं देवतागणाः।
बिभ्राणां वपुषा विष्णुं तुष्टुवुस्तामहर्निशम्।। १८२.६ ।।

देवा ऊचुः
त्वं स्वाहा त्वं स्वधा विद्या सुधा त्वं ज्योतिरेव च।
त्वं सर्वलोकरक्षार्थमवतीर्णा महीतले।। १८२.७ ।।

प्रसीद देवि सर्वस्य जगतस्त्वं शुभं कुरु।
प्रीत्यर्थं धारयेशानं धृतं येनाखिलं जगत्।। १८२.८ ।।

व्यास उवाच
एवं संस्तूयमाना सा देवैर्देवमधारयत्।
गर्भेण पुण्डलीकाक्षं जगतां त्राणकारणम्।। १८२.९ ।।

ततोऽखिलजगत्पद्‌मबोधायाच्युतभानुना।
देवक्याः पूर्वसंध्यायामाविर्भूतं महात्मना।। १८२.१० ।।

मध्यरात्रेऽखिलाधारे जायमाने जनार्दने।
मन्दं जगर्जुर्जलदाः पुष्पवृष्टिमुचः सुराः।। १८२.११ ।।

फुल्लेन्दीपरपत्राभं चतुर्बाहुमुदीक्ष्य तम्।
श्रीवत्सवक्षसं जातं तुष्टावाऽऽनकदुन्दुभिः।। १८२.१२ ।।

अभिष्टुय च तं वाग्भिः प्रसन्नाभिर्महामतिः।
विज्ञायापमास तदा कंसाद्भीतो द्विजोत्तमाः।। १८२.१३ ।।

वसुदेव उवाच
ज्ञातोऽसि देवदेवेश शङ्खचक्रगदाधर।
दिव्यं रूपमिदं देव प्रसादेनोपसंहर।। १८२.१४ ।।

अद्यैव देव कंसोऽयं कुरुते मम यातनाम्।
अवतीर्णमिति ज्ञात्वा त्वामस्मिन्मन्दिरे मम।। १८२.१५ ।।

देवक्युवाच
योऽनन्तरूपोऽखिलविश्वरूपो, गर्भेऽपि लोकान्वपुषा बिभर्ति।
प्रसीदतामेष स देवदेवः, स्वमाययाऽऽविष्कृतबालरूपः।। १८२.१६।।
उपसंहर सर्वात्मन् रूपमेतच्चतुर्भुजम्।
जानातु माऽवतारं ते कंसोऽयं दितजान्तक।। १८२.१७ ।।

श्रीभगवानुवाच
स्तुतोऽहं यत्त्वया पूर्वं पुत्रार्थिन्या तदद्य ते।
सफलं देवि संजातं जातोऽहं यत्तवोदरात्।। १८२.१८ ।।

व्यास उवाच
इत्युक्त्वा भगवांस्तूष्णीं बभूव मुनिसत्तमाः।
वसुदेवोऽपि तं रात्रावादाय प्रययौ बहिः।। १८२.१९ ।।

मोहिताश्चाभवंस्तत्र रक्षिणो योगनिद्रया।
मथुराद्वारपालाश्च व्रजत्यानकदुन्दुभौ।। १८२.२० ।।

वर्षतां जलदानां च तत्तोयमुल्बणं निशि।
संछाद्य तं ययौ शेषः फणैरानकदुन्दुभिम्।। १८२.२१ ।।

यमुनां चातिगम्भीरां नानावर्तशताकुलाम्।
वसुदेवो वहन्विष्णुं जानुमात्रवाहं ययौ।। १८२.२२ ।।

कंसस्य करमादाय तत्रैवाभ्वागतांस्तटे।
नन्दादीन्गोपवृद्धांश्च यमुनायां ददर्श।। १८२.२३ ।।

तस्मिन्काले यशोदाऽपि मोहिता योगनिद्रया।
तामेव कन्यां मुनयः प्रासूत मोहिते जने।। १८२.२४ ।।

वसुदेवोऽपि विन्यस्य बालगादाय दारिकाम्।
यसोदाशयने तूर्णमाजगामामितद्युतिः।। १८२.२५ ।।

ददर्श च विबुद्‌ध्वा सा यशोदा जातमात्मजम्।
नीलोत्पलदलश्यामं ततोऽत्यर्थं मुदं ययौ।। १८२.२६ ।।

आदाय वसुदेवोऽपि दारिकां निजमन्दिरम्।
देवकीशयने न्यस्य यथापूर्वमतिष्ठत।। १८२.२७ ।।

ततो बालध्वनिं श्रुत्वा रक्षिणः सहसोत्थिताः।
कंसमावेदयामासुर्देवकीप्रसवं द्विजाः।। १८२.२८ ।।

कंस्स्तूर्णमुपेत्यैनां ततो जग्राह बालिकाम्।
मुञ्च मुञ्चेति देवक्याऽऽसन्नकण्ठं निवारितः।। १८२.२९ ।।

चिक्षेप च शिलापृष्ठे सा क्षिप्ता वियति स्थितिम्।
अवाप रूपं च महत्सायुधाष्टमहाभुजम्।।
प्रजहास तथैवोच्चैः कंसं च रुषिताऽब्रवीत्।। १८२.३० ।।
योगमायोवाच
किं मयाऽऽक्षिप्तया कंस जातो यस्त्वां हनिष्यति।
सर्वस्वभूतो देवानामासीन्मृत्युः पुरा स ते।।
तदेतत्संप्रधार्याऽऽशु क्रियतां हितमात्मनः।। १८२.३१ ।।

व्यास उवाच
इत्युक्त्वा प्रययौ देवी दिव्यस्रग्गन्धभूषणा।
पश्यतो भोजराजस्य स्तुता सिद्धैर्विहायसा।। १८२.३२ ।।

इति श्रीमहापुराणे आदि ब्राह्मे श्रीकृष्णोत्पत्तिकथानिरूपणं नाम द्व्यशीत्यधिकशततमोऽध्यायः।। १८२ ।।