सामग्री पर जाएँ

ब्रह्मपुराणम्/अध्यायः १६७

विकिस्रोतः तः
← अध्यायः १६६ ब्रह्मपुराणम्
अध्यायः १६७
वेदव्यासः
अध्यायः १६८ →
  1. अध्यायः १
  2. अध्यायः २
  3. अध्यायः ३
  4. अध्यायः ४
  5. अध्यायः ५
  6. अध्यायः ६
  7. अध्यायः ७
  8. अध्यायः ८
  9. अध्यायः ९
  10. अध्यायः १०
  11. अध्यायः ११
  12. अध्यायः १२
  13. अध्यायः १३
  14. अध्यायः १४
  15. अध्यायः १५
  16. अध्यायः १६
  17. अध्यायः १७
  18. अध्यायः १८
  19. अध्यायः १९
  20. अध्यायः २०
  21. अध्यायः २१
  22. अध्यायः २२
  23. अध्यायः २३
  24. अध्यायः २४
  25. अध्यायः २५
  26. अध्यायः २६
  27. अध्यायः २७
  28. अध्यायः २८
  29. अध्यायः २९
  30. अध्यायः ३०
  31. अध्यायः ३१
  32. अध्यायः ३२
  33. अध्यायः ३३
  34. अध्यायः ३४
  35. अध्यायः ३५
  36. अध्यायः ३६
  37. अध्यायः ३७
  38. अध्यायः ३८
  39. अध्यायः ३९
  40. अध्यायः ४०
  41. अध्यायः ४१
  42. अध्यायः ४२
  43. अध्यायः ४३
  44. अध्यायः ४४
  45. अध्यायः ४५
  46. अध्यायः ४६
  47. अध्यायः ४७
  48. अध्यायः ४८
  49. अध्यायः ४९
  50. अध्यायः ५०
  51. अध्यायः ५१
  52. अध्यायः ५२
  53. अध्यायः ५३
  54. अध्यायः ५४
  55. अध्यायः ५५
  56. अध्यायः ५६
  57. अध्यायः ५७
  58. अध्यायः ५८
  59. अध्यायः ५९
  60. अध्यायः ६०
  61. अध्यायः ६१
  62. अध्यायः ६२
  63. अध्यायः ६३
  64. अध्यायः ६४
  65. अध्यायः ६५
  66. अध्यायः ६६
  67. अध्यायः ६७
  68. अध्यायः ६८
  69. अध्यायः ६९
  70. अध्यायः ७०
  71. अध्यायः ७१
  72. अध्यायः ७२
  73. अध्यायः ७३
  74. अध्यायः ७४
  75. अध्यायः ७५
  76. अध्यायः ७६
  77. अध्यायः ७७
  78. अध्यायः ७८
  79. अध्यायः ७९
  80. अध्यायः ८०
  81. अध्यायः ८१
  82. अध्यायः ८२
  83. अध्यायः ८३
  84. अध्यायः ८४
  85. अध्यायः ८५
  86. अध्यायः ८६
  87. अध्यायः ८७
  88. अध्यायः ८८
  89. अध्यायः ८९
  90. अध्यायः ९०
  91. अध्यायः ९१
  92. अध्यायः ९२
  93. अध्यायः ९३
  94. अध्यायः ९४
  95. अध्यायः ९५
  96. अध्यायः ९६
  97. अध्यायः ९७
  98. अध्यायः ९८
  99. अध्यायः ९९
  100. अध्यायः १००
  101. अध्यायः १०१
  102. अध्यायः १०२
  103. अध्यायः १०३
  104. अध्यायः १०४
  105. अध्यायः १०५
  106. अध्यायः १०६
  107. अध्यायः १०७
  108. अध्यायः १०८
  109. अध्यायः १०९
  110. अध्यायः ११०
  111. अध्यायः १११
  112. अध्यायः ११२
  113. अध्यायः ११३
  114. अध्यायः ११४
  115. अध्यायः ११५
  116. अध्यायः ११६
  117. अध्यायः ११७
  118. अध्यायः ११८
  119. अध्यायः ११९
  120. अध्यायः १२०
  121. अध्यायः १२१
  122. अध्यायः १२२
  123. अध्यायः १२३
  124. अध्यायः १२४
  125. अध्यायः १२५
  126. अध्यायः १२६
  127. अध्यायः १२७
  128. अध्यायः १२८
  129. अध्यायः १२९
  130. अध्यायः १३०
  131. अध्यायः १३१
  132. अध्यायः १३२
  133. अध्यायः १३३
  134. अध्यायः १३४
  135. अध्यायः १३५
  136. अध्यायः १३६
  137. अध्यायः १३७
  138. अध्यायः १३८
  139. अध्यायः १३९
  140. अध्यायः १४०
  141. अध्यायः १४१
  142. अध्यायः १४२
  143. अध्यायः १४३
  144. अध्यायः १४४
  145. अध्यायः १४५
  146. अध्यायः १४६
  147. अध्यायः १४७
  148. अध्यायः १४८
  149. अध्यायः १४९
  150. अध्यायः १५०
  151. अध्यायः १५१
  152. अध्यायः १५२
  153. अध्यायः १५३
  154. अध्यायः १५४
  155. अध्यायः १५५
  156. अध्यायः १५६
  157. अध्यायः १५७
  158. अध्यायः १५८
  159. अध्यायः १५९
  160. अध्यायः १६०
  161. अध्यायः १६१
  162. अध्यायः १६२
  163. अध्यायः १६३
  164. अध्यायः १६४
  165. अध्यायः १६५
  166. अध्यायः १६६
  167. अध्यायः १६७
  168. अध्यायः १६८
  169. अध्यायः १६९
  170. अध्यायः १७०
  171. अध्यायः १७१
  172. अध्यायः १७२
  173. अध्यायः १७३
  174. अध्यायः १७४
  175. अध्यायः १७५
  176. अध्यायः १७६
  177. अध्यायः १७७
  178. अध्यायः १७८
  179. अध्यायः १७९
  180. अध्यायः १८०
  181. अध्यायः १८१
  182. अध्यायः १८२
  183. अध्यायः १८३
  184. अध्यायः १८४
  185. अध्यायः १८५
  186. अध्यायः १८६
  187. अध्यायः १८७
  188. अध्यायः १८८
  189. अध्यायः १८९
  190. अध्यायः १९०
  191. अध्यायः १९१
  192. अध्यायः १९२
  193. अध्यायः १९३
  194. अध्यायः १९४
  195. अध्यायः १९५
  196. अध्यायः १९६
  197. अध्यायः १९७
  198. अध्यायः १९८
  199. अध्यायः १९९
  200. अध्यायः २००
  201. अध्यायः २०१
  202. अध्यायः २०२
  203. अध्यायः २०३
  204. अध्यायः २०४
  205. अध्यायः २०५
  206. अध्यायः २०६
  207. अध्यायः २०७
  208. अध्यायः २०८
  209. अध्यायः २०९
  210. अध्यायः २१०
  211. अध्यायः २११
  212. अध्यायः २१२
  213. अध्यायः २१३
  214. अध्यायः २१४
  215. अध्यायः २१५
  216. अध्यायः २१६
  217. अध्यायः २१७
  218. अध्यायः २१८
  219. अध्यायः २१९
  220. अध्यायः २२०
  221. अध्यायः २२१
  222. अध्यायः २२२
  223. अध्यायः २२३
  224. अध्यायः २२४
  225. अध्यायः २२५
  226. अध्यायः २२६
  227. अध्यायः २२७
  228. अध्यायः २२८
  229. अध्यायः २२९
  230. अध्यायः २३०
  231. अध्यायः २३१
  232. अध्यायः २३२
  233. अध्यायः २३३
  234. अध्यायः २३४
  235. अध्यायः २३५
  236. अध्यायः २३६
  237. अध्यायः २३७
  238. अध्यायः २३८
  239. अध्यायः २३९
  240. अध्यायः २४०
  241. अध्यायः २४१
  242. अध्यायः २४२
  243. अध्यायः २४३
  244. अध्यायः २४४
  245. अध्यायः २४५
  246. अध्यायः २४६

विप्रतीर्थवर्णनम्
ब्रह्मोवाच
विप्रतीर्थमिति ख्यातं तथा नारायणं विदुः।
तस्याऽऽख्यानं प्रवक्ष्यामि श्रृणु विस्मयकारकम्।। १६७.१ ।।

अन्तर्वेद्यां द्विजः कश्चिद्‌ब्राह्मणो वेदपारगः।
तस्य पुत्रा महाप्राज्ञा गुणरूपदयान्विताः।। १६७.२ ।।

तेषां कनीयान्यो भ्राता शान्तो गुणगणैर्वृतः।
आसन्दिव इति ख्यातः सर्वज्ञानो महामतिः।। १६७.३ ।।

विवाहाय पिता तस्मा आसन्दिवाय यत्नवान्।
एतस्मिन्नन्तरे रात्रौ सुप्तं तं द्विजपुत्रकम्।। १६७.४ ।।

अविष्णुस्मरणं सौम्यशिरस्कमसमाहितम्।
आसन्दिवं क्रूररूपा राक्षसी कामरूपिणी।। १६७.५ ।।

तमादायागमच्छीघ्रं गौतम्या दक्षिणे तटे।
श्रीगिरेरुत्तरे पारे बहुब्राह्मणसेवितम्।। १६७.६ ।।

नगरं धर्मनिलयं लक्ष्म्या निलयमेव च।
तत्र राजा बृहत्कीर्तिः सर्वक्षत्रगुणान्वितः।। १६७.७ ।।

तस्यामितक्षेमसुभिक्षयुक्तं, निशावसाने द्विजपुत्रयुक्ता।
सा राक्षसी तत्पुरमाससाद, मनोज्ञरूपाणि बिभर्ति नित्यम्।। १६७.८ ।।

सा कामरूपेण चरत्यशेषां, महीमिमां तेन समं द्विजेन।
गोदावरीदक्षिणतीर्भागे, वृद्धाकृतिस्तं द्विजमाह भीमा।। १६७.९ ।।

राक्षस्युवाच
एषा तु गङ्गा द्विजमुख्य संध्या, उपास्यतां विप्रवरैः समेत्य।
यथोचितं विप्रवरास्तु काले, नोपासते यत्नत एव संध्याम्।। १६७.१० ।।

नीचास्त एवाभिहिताः सुरेशैरन्त्यावसायिप्रवरास्त एते।
अहं जनित्री तव चेति वाच्यं, नो चेदिदानीं त्वमुपैषि नाशम्।। १६७.११ ।।

मद्वाक्यकर्ताऽसि यदि द्विजेन्द्र, सुखं करिष्ये तव यत्प्रियं च।
पुनश्च देशं निलयं गुरूंश्च, संप्रापयिष्ये ननु सत्यमेतत्।। १६७.१२ ।।

ब्रह्मोवाच
स प्राह का त्वं द्विजपुंगवोऽपि, सोवाच तं राक्षसी कामरूपा।
विश्वासयन्ती शपथैरनेकैस्तं भ्रान्तचित्तं मुनिराजपुत्रम्।। १६७.१३ ।।

कङ्कालिनी नाम जगत्प्रसिद्धा, विप्रोऽसि तामाह निवेदितं यत्।
तदेव कर्ताऽस्मि न संशयोऽत्र, यत्तत्प्रियं वच्मि करोमि चैव।। १६७.१४ ।।

ब्रह्मोवाच
तद्विप्रवचनं श्रुत्वा राक्षसी कामरूपिणी।
वृद्धा तथाऽपि चार्वङ्गी दिव्यालंकारभूषणा।। १६७.१५ ।।

द्विजमादाय सर्वत्र मत्सुतोऽयं गुणाकरः।
एवं वदन्ती सर्वत्र याति वक्ति करोति च।। १६७.१६ ।।

तं विप्रं रूपसौभाग्यवयोविद्याविभूषितम्।
तां च वृद्धां गुणोपेतामस्य मातेति मेनिरे।। १६७.१७ ।।

तत्र द्विजवरः कश्चित्स्वां कन्यां भूषणान्विताम्।
राक्षसीं तां पुरस्कृत्य प्रादात्तस्मै द्विजातये।। १६७.१८ ।।

सा कन्या तं पतिं प्राप्य कृतार्थाऽस्मीत्यचिन्तयत्।
स द्विजोऽपि गुणैर्युक्तां पत्नीं दृष्ट्वा सुदुःखितः।। १६७.१९ ।।

द्विज उवाच
मामियं भक्षयेदेव राक्षसी पापरूपिणी।
किं करोमि क्व गच्छामि कस्यैतत्कथयामि वा।। १६७.२० ।।

महत्संकटमापन्नं रक्षयिष्यति कोऽत्र माम्।
भार्या ममेयं कल्याणी गुणरूपवयोयुता।।
एनामप्यशुभाऽकस्माद्भक्षयिष्यति राक्षसी।। १६७.२१ ।।

एतस्मिन्नन्तरे तत्र भार्या सा गुणशलिनी।
वृद्धाऽप्यतिदुराधर्षा सा गता कुत्रचित्तदा।। १६७.२२ ।।

प्रश्रयावनता भूत्वा बाला चापि पतिव्रता।
भर्तारं दुःखितं ज्ञात्वा पतिं प्राह रहः शनैः।। १६७.२३ ।।

भार्योवाच
कस्मात्ते दुःखमापन्नं स्वमिंस्तत्त्वं वदस्व मे।। १६७.२४ ।।

ब्रह्मोवाच
शनैः प्रोवाच तां भार्यां यथावत्पूर्वविस्तरम्।
किमकथ्यं प्रिये मित्रे कुलीनायां च योषिति।। १६७.२५ ।।

भर्तृवाक्यं निशम्येदं प्रोवाच वदतां वरा।। १६७.२६ ।।

भार्योवाच
अनात्मनः सर्वतोऽपि भयमस्ति गृहेष्वपि।
कुतो भयं ह्यात्मवतां किं पुनर्गौतमीतटे।। १६७.२७ ।।

वसतां विष्णुभक्तानां विरक्तानां विवेकिनाम्।
अत्रस्नात्वा शुचिर्भूत्वा स्तुहि देवमनामयम्।। १६७.२८ ।।

ब्रह्मोवाच
एतदाकर्ण्य गङ्गायां स्नात्वा विगतकल्मषः।
तुष्टाव गौतमीतीरे द्विजो नारायणं तथा।। १६७.२९ ।।

द्विज उवाच
त्वमन्तरात्मा जगतोऽस्य नाथ, त्वमेव कर्ताऽस्य मुकुन्द हर्ता।
त्वं पालकः पालयसे न दीनमनाथबन्धो नरसिंह कस्मात्।। १६७.३० ।।

श्रुत्वैतत्प्रार्थनं तस्य जगच्छोकनिवारणः।
नारायणोऽपि तां पापां निजघान स राक्षसीम्।। १६७.३१ ।।

सुदर्शनेन चक्रेण सहस्रारेण भास्वता।
तस्मै प्रादाद्वरानिष्टान्प्रापयच्च गुरुं प्रभुः।। १६७.३२ ।।

ततः प्रभृति तत्तीर्थं विप्रं नारायणं विदुः।
स्नानदानेन पूजाद्यैर्यत्र सिध्यति वाञ्छितम्।। १६७.३३ ।।

इति श्रीमहापुराणे आदिब्राह्मे तीर्थमाहात्म्ये विप्रानारायणतीर्थवर्णनं नाम सप्तषष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः।। १६७ ।।

गौतमीमाहात्म्येऽष्टनवतितमोऽध्यायः।। ९८ ।।