सामग्री पर जाएँ

ब्रह्मपुराणम्/अध्यायः १३५

विकिस्रोतः तः
← अध्यायः १३४ ब्रह्मपुराणम्
अध्यायः १३५
वेदव्यासः
अध्यायः १३६ →
  1. अध्यायः १
  2. अध्यायः २
  3. अध्यायः ३
  4. अध्यायः ४
  5. अध्यायः ५
  6. अध्यायः ६
  7. अध्यायः ७
  8. अध्यायः ८
  9. अध्यायः ९
  10. अध्यायः १०
  11. अध्यायः ११
  12. अध्यायः १२
  13. अध्यायः १३
  14. अध्यायः १४
  15. अध्यायः १५
  16. अध्यायः १६
  17. अध्यायः १७
  18. अध्यायः १८
  19. अध्यायः १९
  20. अध्यायः २०
  21. अध्यायः २१
  22. अध्यायः २२
  23. अध्यायः २३
  24. अध्यायः २४
  25. अध्यायः २५
  26. अध्यायः २६
  27. अध्यायः २७
  28. अध्यायः २८
  29. अध्यायः २९
  30. अध्यायः ३०
  31. अध्यायः ३१
  32. अध्यायः ३२
  33. अध्यायः ३३
  34. अध्यायः ३४
  35. अध्यायः ३५
  36. अध्यायः ३६
  37. अध्यायः ३७
  38. अध्यायः ३८
  39. अध्यायः ३९
  40. अध्यायः ४०
  41. अध्यायः ४१
  42. अध्यायः ४२
  43. अध्यायः ४३
  44. अध्यायः ४४
  45. अध्यायः ४५
  46. अध्यायः ४६
  47. अध्यायः ४७
  48. अध्यायः ४८
  49. अध्यायः ४९
  50. अध्यायः ५०
  51. अध्यायः ५१
  52. अध्यायः ५२
  53. अध्यायः ५३
  54. अध्यायः ५४
  55. अध्यायः ५५
  56. अध्यायः ५६
  57. अध्यायः ५७
  58. अध्यायः ५८
  59. अध्यायः ५९
  60. अध्यायः ६०
  61. अध्यायः ६१
  62. अध्यायः ६२
  63. अध्यायः ६३
  64. अध्यायः ६४
  65. अध्यायः ६५
  66. अध्यायः ६६
  67. अध्यायः ६७
  68. अध्यायः ६८
  69. अध्यायः ६९
  70. अध्यायः ७०
  71. अध्यायः ७१
  72. अध्यायः ७२
  73. अध्यायः ७३
  74. अध्यायः ७४
  75. अध्यायः ७५
  76. अध्यायः ७६
  77. अध्यायः ७७
  78. अध्यायः ७८
  79. अध्यायः ७९
  80. अध्यायः ८०
  81. अध्यायः ८१
  82. अध्यायः ८२
  83. अध्यायः ८३
  84. अध्यायः ८४
  85. अध्यायः ८५
  86. अध्यायः ८६
  87. अध्यायः ८७
  88. अध्यायः ८८
  89. अध्यायः ८९
  90. अध्यायः ९०
  91. अध्यायः ९१
  92. अध्यायः ९२
  93. अध्यायः ९३
  94. अध्यायः ९४
  95. अध्यायः ९५
  96. अध्यायः ९६
  97. अध्यायः ९७
  98. अध्यायः ९८
  99. अध्यायः ९९
  100. अध्यायः १००
  101. अध्यायः १०१
  102. अध्यायः १०२
  103. अध्यायः १०३
  104. अध्यायः १०४
  105. अध्यायः १०५
  106. अध्यायः १०६
  107. अध्यायः १०७
  108. अध्यायः १०८
  109. अध्यायः १०९
  110. अध्यायः ११०
  111. अध्यायः १११
  112. अध्यायः ११२
  113. अध्यायः ११३
  114. अध्यायः ११४
  115. अध्यायः ११५
  116. अध्यायः ११६
  117. अध्यायः ११७
  118. अध्यायः ११८
  119. अध्यायः ११९
  120. अध्यायः १२०
  121. अध्यायः १२१
  122. अध्यायः १२२
  123. अध्यायः १२३
  124. अध्यायः १२४
  125. अध्यायः १२५
  126. अध्यायः १२६
  127. अध्यायः १२७
  128. अध्यायः १२८
  129. अध्यायः १२९
  130. अध्यायः १३०
  131. अध्यायः १३१
  132. अध्यायः १३२
  133. अध्यायः १३३
  134. अध्यायः १३४
  135. अध्यायः १३५
  136. अध्यायः १३६
  137. अध्यायः १३७
  138. अध्यायः १३८
  139. अध्यायः १३९
  140. अध्यायः १४०
  141. अध्यायः १४१
  142. अध्यायः १४२
  143. अध्यायः १४३
  144. अध्यायः १४४
  145. अध्यायः १४५
  146. अध्यायः १४६
  147. अध्यायः १४७
  148. अध्यायः १४८
  149. अध्यायः १४९
  150. अध्यायः १५०
  151. अध्यायः १५१
  152. अध्यायः १५२
  153. अध्यायः १५३
  154. अध्यायः १५४
  155. अध्यायः १५५
  156. अध्यायः १५६
  157. अध्यायः १५७
  158. अध्यायः १५८
  159. अध्यायः १५९
  160. अध्यायः १६०
  161. अध्यायः १६१
  162. अध्यायः १६२
  163. अध्यायः १६३
  164. अध्यायः १६४
  165. अध्यायः १६५
  166. अध्यायः १६६
  167. अध्यायः १६७
  168. अध्यायः १६८
  169. अध्यायः १६९
  170. अध्यायः १७०
  171. अध्यायः १७१
  172. अध्यायः १७२
  173. अध्यायः १७३
  174. अध्यायः १७४
  175. अध्यायः १७५
  176. अध्यायः १७६
  177. अध्यायः १७७
  178. अध्यायः १७८
  179. अध्यायः १७९
  180. अध्यायः १८०
  181. अध्यायः १८१
  182. अध्यायः १८२
  183. अध्यायः १८३
  184. अध्यायः १८४
  185. अध्यायः १८५
  186. अध्यायः १८६
  187. अध्यायः १८७
  188. अध्यायः १८८
  189. अध्यायः १८९
  190. अध्यायः १९०
  191. अध्यायः १९१
  192. अध्यायः १९२
  193. अध्यायः १९३
  194. अध्यायः १९४
  195. अध्यायः १९५
  196. अध्यायः १९६
  197. अध्यायः १९७
  198. अध्यायः १९८
  199. अध्यायः १९९
  200. अध्यायः २००
  201. अध्यायः २०१
  202. अध्यायः २०२
  203. अध्यायः २०३
  204. अध्यायः २०४
  205. अध्यायः २०५
  206. अध्यायः २०६
  207. अध्यायः २०७
  208. अध्यायः २०८
  209. अध्यायः २०९
  210. अध्यायः २१०
  211. अध्यायः २११
  212. अध्यायः २१२
  213. अध्यायः २१३
  214. अध्यायः २१४
  215. अध्यायः २१५
  216. अध्यायः २१६
  217. अध्यायः २१७
  218. अध्यायः २१८
  219. अध्यायः २१९
  220. अध्यायः २२०
  221. अध्यायः २२१
  222. अध्यायः २२२
  223. अध्यायः २२३
  224. अध्यायः २२४
  225. अध्यायः २२५
  226. अध्यायः २२६
  227. अध्यायः २२७
  228. अध्यायः २२८
  229. अध्यायः २२९
  230. अध्यायः २३०
  231. अध्यायः २३१
  232. अध्यायः २३२
  233. अध्यायः २३३
  234. अध्यायः २३४
  235. अध्यायः २३५
  236. अध्यायः २३६
  237. अध्यायः २३७
  238. अध्यायः २३८
  239. अध्यायः २३९
  240. अध्यायः २४०
  241. अध्यायः २४१
  242. अध्यायः २४२
  243. अध्यायः २४३
  244. अध्यायः २४४
  245. अध्यायः २४५
  246. अध्यायः २४६

वाणीसंगमतीर्थवर्णनम्
ब्रह्मोवाच
वाणीसंगममाख्यातं यत्र वागीश्वरो हरः।
तत्तीर्थं सर्वपापानां मोचनं सर्वकामदम्।। १३५.१ ।।

तत्र स्नानेन दानेन ब्रह्महत्यादिनाशनम्।
ब्रह्मविष्ण्वोश्च संवादे महत्त्वे च परस्परम्।। १३५.२ ।।

तयोर्मध्ये महादेवो ज्योतिर्मूर्तिरभूत्किल।
तत्रैव वागुवाचेदं दैवी पुत्र तयोः शुभा।। १३५.३ ।।

अहमस्मि महांस्तत्र अहमस्मीति वै मिथः।
दैवी वाक्तावुभौ प्राह यस्त्वस्यान्तं तु पश्यति।। १३५.४ ।।

स तु ज्येष्ठो भवेत्तस्मान्मा वादं कर्तुमर्हथः।
तद्वाक्याद्विष्णुरगमदधोऽहं चोर्ध्वमेव च।। १३५.५ ।।

ततो विष्णुः शीघ्रमेत्य ज्योतिःपार्श्व उपाविशत्।
अप्राप्यान्तमहं प्रायां दूराद्‌दूरतरं मुने।। १३५.६ ।।

ततः श्रान्तो निवृत्तोऽहं द्रष्टुमीशं तु तं प्रभुम्।
तदैवं मम धीरासीद्‌दृष्टश्चान्तो मया भृशम्।। १३५.७ ।।

अस्य देवस्य तद्विष्णोर्मम ज्यैष्ठ्यं स्फुटं भवेत्।
पुनश्चापि मम त्वेवं मतिरासीन्महामते।। १३५.८ ।।

सत्यैर्वक्त्रैः कथं वक्ष्ये पीडितोऽप्यनृतं वचः।
नानाविधेषु पापेषु नानृतात्पातकं परम्।। १३५.९ ।।

सत्यैर्वक्त्रैरसत्यां वा वाचं वक्ष्ये कथं त्विति।
ततोऽहं पञ्चमं वक्त्रं गर्दभाकृतिभीषणम्।। १३५.१० ।।

कृत्वा तेनानृतं वक्ष्य इति ध्यात्वा चिरं तदा।
अब्रवं तं हिरं तत्र आसीनं जगतां प्रभुम्।। १३५.११ ।।

अस्य चान्तो मया दृष्टस्तेन ज्यैष्ठ्यं जनार्दन।
ममेति वदतः पारश्वे उभौ तौ हरिशंकरौ।। १३५.१२ ।।

एकरूपत्वमापन्नौ सूर्याचन्द्रमसाविव।
तौ दृष्ट्वा विस्मितो भीतश्चास्तवं तावुभावपि।।
ततः क्रुद्धौ जगन्नाथौ वाचं तामिदमूचतुः ?।। १३५.१३ ।।

हरिहरावूचतुः
दुष्टे त्वं निम्नगा भूया नानृतादिस्ति पातकम्। १३५.१४ ।।

ब्रह्मोवाच
ततः सा विह्‌वला भूत्वा नदीभावमुपागता।
तद्‌दृष्ट्वा विस्मितो भीतस्तामब्रवमहं तदा।। १३५.१५ ।।

यस्मादसत्यमुक्ताऽसि ब्रह्मवाचि स्थिता सती।
तस्माददृश्या त्वं भूयाः पापरूपाऽस्यसंशयम्।। १३५.१६ ।।

एतच्छापं विदित्वा तु तौ देवौ प्रणता तदा।
विशापत्वं प्रार्थयन्ती तुष्टाव च पुनः पुनः।। १३५.१७ ।।

ततस्तुष्टौ देवदेवौ प्रार्थितौ त्रिदशार्चितौ।
प्रीत्या हरिहरावेवं वाचं वाचमथोचतुः।। १३५.१८ ।।

हरिहरावूचतुः
गङ्गया संगता भद्रे यदा त्वं लोकपावनी।
तदा पुनर्वपुस्ते स्यात्पवित्रं हि सुशोभने।। १३५.१९ ।।

ब्रह्मोवाच
तथेत्युक्ताव साऽपि देवी गङ्गया संगताऽभवत्।
भागीरथी गौतमी च ततश्चापि स्वकं वपुः।। १३५.२० ।।

देवी सा व्यागमद्‌भ्रह्मन्देवानामपि दुर्लभम्।
गौतम्यां सैव विख्याता नाम्ना वाणीति पुण्यदा।। १३५.२१ ।।

भागीरथ्यां सैव देवी सरस्वत्यभिधीयते।
उभयत्रापि विख्यातः संगमो लोकपूजितः।। १३५.२२ ।।

सरस्वतीसंगमश्च वीणीसंगम एव च।
गौतम्या संगता देवी वाणी वाचा सरस्वती।। १३५.२३ ।।

सर्वत्र पूजितं तीर्थं तत्र वाचा शिवं प्रभुम्।
देवेश्वरं पूजयित्वा विशापमगमद्यतः।। १३५.२४ ।।

ब्रह्म विधूव वाग्दौष्ट्यं स्वं च धामागमत्पुनः।
तस्मात्तत्र शुचिर्भूत्वा स्नात्वा तत्र च संगमे।। १३५.२५ ।।

वागीश्वरं ततो दृष्ट्वा तावता मुक्तिमाप्नुयात्।
दानहोमादिकं किंचितुपवासादिकां क्रियाम्।। १३५.२६ ।।

यः कुर्यात्संगमे पुण्ये संसारे न भवेत्पुनः।
एकोनविंशतिशतं तीर्थानां तीरयोर्द्वयोः।।
नानाजन्मार्जिताशेषपापक्षयविधायिनाम्।। १३५.२७ ।।

इति श्रीमहापुराणे आदिब्राह्मे तीर्थमाहात्म्ये वाणीसंगमवागीश्वराद्युभयतटस्थैकोनविंशतिशततीर्थवर्णनं नाम
पञ्चत्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। १३५ ।।

गौतमीमाहात्म्ये षट्षष्टिमोऽध्यायः।। ६६ ।।